बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना और खालिदा जिया.
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया मंगलवार (7 जनवरी) को इलाज के लिए लिए लंदन रवाना हो गईं. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) का कहना है कि उनकी नेता की यात्रा मेडिकल कारणों से हो रही है और इसके राजनीतिक मायने नहीं निकाले जाए. हालांकि राजनीतिक उथल पुथल के दौर में जिया की विदेश यात्रा कई सवाल खड़ी करती है. सबसे अहम बात यह है कि देश की राजनीति पर कई दशकों तक हावी रहीं दो शीर्ष नेता अब विदेश में है.
पिछले साल शेख हसीना ने छोड़ा था देश
पूर्व पीएम और आवामी लीग की अध्यक्ष शेख हसीना को पिछले साल अगस्त में छात्र आंदोलन से उभरे आक्रोश के बाद सत्ता छोड़कर भारत भागना पड़ा था. इसके बाद नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया जो फिलहाल देश का सत्ता संभाल रही है.
जिया को हुई थी 17 साल की जेल
जिया को अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के शासन के दौरान भ्रष्टाचार के दो मामलों के कारण 17 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी. भ्रष्टाचार के ये दोनों कथित मामले उस वक्त के थे जब जिया 2001-2006 के दौरान प्रधानमंत्री थीं. उनके समर्थकों का दावा है कि आरोप राजनीति से प्रेरित थे, हालांकि हसीना सरकार इससे इनकार करती आई. यूनुस के शासन में, जिया को नवंबर में एक मामले में बरी कर दिया गया था, और दूसरे मामले की अपील पर मंगलवार को सुनवाई हो रही थी.
शेख हसीना की वतन वापसी मुश्किल
अंतरिम सरकार इस वर्ष दिसंबर में या 2026 की पहली छमाही में चुनाव कराने की योजना बना रही है. जिया और हसीना के देश में नहीं होने का सबसे अधिक असर उनकी पार्टियों की चुनावी तैयारियों पर पड़ेगा. निकट भविष्य में शेख हसीना की वतन वापसी मुश्किल दिख रही है. वहीं खालिदा जिया की वापसी देश की राजनीति में बड़ा उल्टफेर ला सकती हैं लेकिन सबकुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि वह कब स्वदेश लौटती हैं.
ऐसा माना जाता है कि युनूस सरकार खालिदा जिया और उनकी पार्टी के प्रति नरम रुख अपना रही है. बीएनपी पारंपरिक रूप से पाकिस्तान समर्थक रही है. उसे आवामी लीग के मुकाबले अधिक सांप्रदायिक विचारधारा वाली पार्टी माना जाता रहा है. यूनुस सरकार भी इस्लामाबाद के साथ लगातार संबंध सुधारने में लगी है.
कट्टरवादी ताकतों को मजबूती मिली
अंतरिम सरकार के वजूद में आने के बाद से देश में कट्टरवादी ताकतों को मजबूती मिली है. अल्पसंख्यक समुदायों और उनके धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया जा रहा है. सरकार पर अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव बरतने के आरोप लग रहे हैं. क्या इस घोर सांप्रदायिक युग में पुरानी पार्टियां प्रासंगिक बन गई हैं.
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राजनीतिक रूप से संवेदनशील समय में दो पूर्व पीएम का देश में नहीं होना क्या इस बात का संकेत है कि बांग्लादेश अब नए राजनीतिक युग में प्रवेश कर रहा है. पुरानी पार्टियों के लिए आने वाला दौर काफी चुनौतिपूर्ण साबित हो सकता है.
-भारत एक्सप्रेस
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