
AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने रविवार को भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ हालिया टिप्पणियों पर करारा पलटवार किया. उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा के सदस्य इतने कट्टरपंथी हो गए हैं कि वे अब न्यायपालिका को धार्मिक युद्ध की धमकी दे रहे हैं.
Asaduddin Owaisi ने किया पलटवार
ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने आगे कहा, आप लोग सत्ता में हैं और आप इतने कट्टरपंथी हो गए हैं कि आप कोर्ट को धार्मिक युद्ध की धमकी दे रहे हैं. मोदी जी, अगर आप इन लोगों को नहीं रोकेंगे तो देश कमजोर हो जाएगा. देश आपको माफ नहीं करेगा और कल आप सत्ता में नहीं रहेंगे. भारत का हिंदू भी जान चुका है कि वक्फ का कानून बनने से क्या मुझे नौकरी मिलेगी? हिंदू जान चुका है कि मुसलमानों की नफरत को दिखाकर बीजेपी वोट बटोरती आई है. दिखाने के लिए कुछ नहीं है. 4.5 फीसदी युवा बेरोजगार हैं. इनकी बेरोजगारी को दूर करने का कोई प्लान नहीं है.
Asaduddin Owaisi ने भाजपा का मज़ाक उड़ाते हुए कहा, “आप लोग ( भाजपा ) ट्यूबलाइट हैं. इस तरह से अदालत को धमका रहे हैं. क्या आपको पता भी है कि अनुच्छेद 142 क्या है? इसे बीआर अंबेडकर ने बनाया था”. उन्होंने संवैधानिक प्रावधान का हवाला देते हुए कहा कि यह सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी मामले में पूर्ण न्याय देने का अधिकार देता है. ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की टिप्पणी भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा द्वारा सुप्रीम कोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीश के बारे में दिए गए विवादास्पद बयानों के बाद आई है .
#WATCH हैदराबाद, तेलंगाना: भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के सुप्रीम कोर्ट पर दिए गए बयान पर AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, "… आप लोग (भाजपा) ट्यूबलाइट हैं… इस तरह से कोर्ट को धमका रहे हैं… क्या आपको पता है कि (अनुच्छेद) 142 (संविधान का) क्या है?, इसे बी.आर. अंबेडकर ने… pic.twitter.com/xO14xfFwFx
— ANI_HindiNews (@AHindinews) April 20, 2025
निशिकांत दुबे ने क्या कहा था?
इससे पहले भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट “धार्मिक युद्धों को भड़का रहा है” और इसके अधिकार पर सवाल उठाते हुए सुझाव दिया कि अगर सुप्रीम कोर्ट को कानून बनाना है तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिए. दुबे ने कहा, “शीर्ष अदालत का एक ही उद्देश्य है: ‘मुझे चेहरा दिखाओ, और मैं तुम्हें कानून दिखाऊंगा’. सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमाओं से परे जा रहा है. अगर किसी को हर चीज के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना है , तो संसद और राज्य विधानसभा को बंद कर देना चाहिए.”
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पिछले अदालती फैसलों का हवाला देते हुए निशिकांत दुबे ने समलैंगिकता और धार्मिक विवादों के उन्मूलन जैसे मुद्दों से निपटने के लिए न्यायपालिका की आलोचना की. “एक धारा 377 थी जिसमें समलैंगिकता को बहुत बड़ा अपराध माना गया था. ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि इस दुनिया में सिर्फ़ दो ही लिंग हैं, या तो पुरुष या फिर महिला…चाहे हिंदू हो, मुस्लिम हो, बौद्ध हो, जैन हो या सिख हो, सभी मानते हैं कि समलैंगिकता एक अपराध है. एक सुबह सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस मामले को खत्म करते हैं…अनुच्छेद 141 कहता है कि हम जो कानून बनाते हैं, जो फैसले देते हैं, वो निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लागू होते हैं . अनुच्छेद 368 कहता है कि संसद को सारे कानून बनाने का अधिकार है, और सुप्रीम कोर्ट कानून की व्याख्या करने की शक्ति है. शीर्ष अदालत राष्ट्रपति और राज्यपाल से पूछ रही है कि वे बताएं कि उन्हें विधेयकों के संबंध में क्या करना है. जब राम मंदिर, कृष्ण जन्मभूमि या ज्ञानवापी का मुद्दा उठता है, तो आप (SC) कहते हैं, ‘हमें कागज दिखाओ’. मुगलों के आने के बाद जो मस्जिद बनी है उनके लिए कह रहो हो कागज कहा से दिखाओ,”
निशिकांत दुबे ने आगे आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट इस देश को “अराजकता” की ओर ले जाना चाहता है. “आप नियुक्ति प्राधिकारी को कैसे निर्देश दे सकते हैं? राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं. संसद इस देश का कानून बनाती है. आप उस संसद को निर्देश देंगे ? … आपने नया कानून कैसे बनाया? किस कानून में लिखा है कि राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना है? इसका मतलब है कि आप इस देश को अराजकता की ओर ले जाना चाहते हैं. उन्होंने कहा, ” जब संसद बैठेगी, तो इस पर विस्तृत चर्चा होगी.”
दिनेश शर्मा ने भी दिया बयान
इसी तरह की भावनाओं को दोहराते हुए, भाजपा नेता दिनेश शर्मा ने कहा कि कोई भी राष्ट्रपति को चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि राष्ट्रपति सर्वोच्च हैं. लोगों में यह आशंका है कि जब डॉ. बीआर अंबेडकर ने संविधान लिखा था, तो विधायिका और न्यायपालिका के अधिकार स्पष्ट रूप से लिखे गए थे. भारत के संविधान के अनुसार, कोई भी लोकसभा और राज्यसभा को निर्देश नहीं दे सकता. राष्ट्रपति ने पहले ही इस पर अपनी सहमति दे दी है. कोई भी राष्ट्रपति को चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि राष्ट्रपति सर्वोच्च हैं.”
बीजेपी ने बयान से किया किनारा
हालांकि, भाजपा ने दुबे और शर्मा की टिप्पणियों से खुद को अलग करते हुए एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि पार्टी उनके बयानों को पूरी तरह से खारिज करती है. दोनों सांसदों को भविष्य में ऐसी टिप्पणियां करने से बचने के लिए कहा गया है.
-भारत एक्सप्रेस
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