
दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ा.

दिल्ली की नवनिर्वाचित सरकार ने सत्ता सँभालते ही कई कड़े निर्णय लेने शुरू कर दिये हैं. इनमें अहम निर्णय दिल्ली की हवा को प्रदूषण से मुक्त करवाना है. इसके चलते दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मंजिंदर सिंह सिरसा ने ये घोषणा कर दी कि 31 मार्च 2025 के बाद दिल्ली के सभी पेट्रोल पम्पों पर 15 साल पुरानी गाड़ियों को ईंधन नहीं दिया जाएगा. यह निर्णय कड़ा अवश्य है परंतु देखना यह होगा कि क्या केवल ऐसे एक ही सख़्त निर्णय से दिल्ली की वायु साफ़ हो पाएगी? क्या प्रदूषण के अन्य पहलुओं को अनदेखा किया जाएगा? क्या वाहन निर्माताओं के विरुद्ध भी कड़े निर्देश जारी किए जाएँगे जिसके तहत उनके द्वारा निर्मित गाड़ियों में से प्रदूषण की मात्रा की रोकथाम में भी सहयोग लिया जाए? क्या ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से देर रात में दिल्ली से गुज़रने वाले भारी वहनों को भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा रोकने की दिशा में भी ऐसा ही कोई कड़ा कदम उठाया जाएगा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि कौनसा निर्णय प्रदूषण की जिन्न पर भारी पड़ेगा.
नई गाड़ी खरीदने से पहले पुरानी का निपटान जरूरी
एक सर्वे के मुताबिक़ दिल्ली जैसे महानगर में औसतन 1800 नये वाहन प्रतिदिन जुड़ते हैं. ऐसे में दिल्ली की वायु को दूषित करने के लिए ये वाहन अकेले ही लगभग 50 प्रतिशत तक ज़िम्मेदार हैं. ज़ाहिर सी बात है कि जब पुराने वाहनों की उम्र सीमा तय की जाएगी तो लोग नये वाहन तो लेंगे ही. लेकिन ऐसे में क्या सरकार की यह ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि यदि कोई भी व्यक्ति नई गाड़ी ख़रीद रहा हो तो नई गाड़ी के पंजीकरण के समय इस बात को सुनिश्चित कर लिया जाए कि उसी व्यक्ति के नाम पर कोई पुरानी गाड़ी न हो. यदि हो तो पहले उस गाड़ी को बेचा जाए और उसके प्रमाण के बाद ही नई गाड़ी का पंजीकरण किया जाए. ऐसे में यदि कोई व्यक्ति एक से अधिक गाड़ी अपने नाम या अपनी संस्था के नाम लेता है तो उससे पंजीकरण की फ़ीस अधिक ली जाए. इतना ही नहीं ऐसे नियमों को केवल दिल्ली में ही नहीं देश भर में लागू किया जाए. यदि पुरानी गाड़ियाँ वास्तव में अधिक प्रदूषण करती हैं तो उनकी समय सीमा पूरी होने पर देश भर में कहीं भी चलने की अनुमति न दी जाए. ऐसी गाड़ियों को स्क्रैप किए जाने के सख़्त आदेश लागू किए जाएँ.
सरकारी वाहनों पर नहीं होती कोई कार्रवाई
ऐसा भी देखा गया है कि प्रदूषण की रोकथाम के लिए ऐसे कड़े नियम आमतौर पर आम जनता के लिए ही होते हैं. सरकारी वाहनों पर इनका कोई भी डंडा नहीं चलता. अक्सर ऐसा भी देखा गया है कि जब सरकारी वाहनों में से निकलता हुआ गंदा धुँआ आसपास के सैकड़ों वाहनों से कहीं अधिक होता है. लेकिन इन वाहनों पर किसी भी तरह की कार्यवाही नहीं की जाती. चालान और वाहन ज़ब्त करने की गाज तो आम जनता पर ही गिरती है. सरकारी अस्पतालों में या अन्य सरकारी भवनों में पुरानी कबाड़ा या दुर्घटनाग्रस्त गाड़ियों को सड़ने दिया जाता है. उनका ज़ंग खा कर गलने और मलबे में बदलने का इंतज़ार किया जाता है. वहीं दूसरी ओर यदि किसी कालोनी में किसी आम नागरिक की गाड़ी इस हालत में पाई जाती है तो उसके ख़िलाफ़ नगर निगम और पुलिस कड़ी कार्यवाही करती है.
खराब सड़कों के कारण बढ़ता प्रदूषण
देश भर के पुलिस थानों के बाहर या उनसे सटे मैदानों में दुर्घटनाग्रस्त या किसी अपराध में शामिल गाड़ियों के ढेर भी कोई अच्छा दृश्य नहीं देते. इन वाहनों के कारण सड़कों पर जाम भी लग जाता है जिसके कारण भी वायु प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है. जाम की बात ही करें तो दिल्ली जैसे शहर में ऐसी कई महत्वपूर्ण सड़कें हैं जो चौड़ी तो अवश्य हैं लेकिन समय-समय पर रखरखाव न हो पाने के कारण ख़स्ता हाल में हैं. इन टूटी-हटी सड़कों के कारण भी वाहनों को चलने में दिक़्क़त होती है. इस कारण भी ट्रैफ़िक जाम लगता है जो वायु प्रदूषण का कारक बनता है. ऐसे में जिन वाहनों को पुराना समझ कर प्रतिबंधित किया जाता है, उनसे कहीं ज़्यादा मात्रा में नये वाहनों द्वारा प्रदूषण होता है. इसलिए लोक निर्माण विभाग की यह ज़िम्मेदारी होनी चाहिए कि वह सड़कों को दुरुस्त रखें जिससे प्रदूषण को बढ़ावा न मिले.
क्या आम नागरिकों को ट्रैफिक प्रबंधन में समान सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए?
ऐसा भी देखा गया है कि जब भी कभी देश के किसी भी कोने में किसी वीवीआईपी का दौरा होता है तो सड़कों पर ट्रैफ़िक पुलिस की तैनाती इस कदर की जाती है कि जाम लगना असंभव हो. यदि इलाक़े की ट्रैफ़िक पुलिस किसी अतिविशिष्ट व्यक्ति की सेवा में ट्रैफ़िक संचालन को इतने सुचारू रूप से चला सकती है तो आम नागरिकों से इतना सौतेला व्यवहार क्यों? क्या किसी भी सरकार ने इस दिशा में कोई पहल की है? यदि इन बिंदुओं को गंभीरता से लिया जाए तो न सिर्फ़ दिल्ली बल्कि पूरे देश की हवा बदलेगी.
दिल्ली की हवा ख़राब होते ही पुराने वाहनों पर रोक लगाने से सरकार को क्या हासिल होता है, यह समझ में नहीं आता. ज़रा सोचिए, यदि आपका वाहन दस साल से अधिक पुराना नहीं है और उसमें एक वैध पीयूसी सर्टिफिकेट भी है तो आपका वाहन प्रदूषण के तय माणकों की सीमा में ही माना जाएगा. या यूँ कहें कि आपका वाहन अनियंत्रित प्रदूषण नहीं कर रहा. अपनी गाड़ियों की नियमित ‘पीयूसी’ जाँच करवाने वालों पर ऐसे प्रतिबंध लगाना कहाँ तक उचित है? बहरहाल दिल्ली की नई सरकार के पास ऐसी कई चुनौतियाँ हैं जिनका समाधान उन्हें जनता के हितों को केंद्र में रख कर व सोच-समझकर ही निकालना पड़ेगा, जल्दबाज़ी में नहीं.
-भारत एक्सप्रेस
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