प्रतीकात्मक तस्वीर
Delhi News: दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस के उप-निरीक्षक को जमानत देते हुए कहा कि जहां अदालत को गुण-दोष के आधार पर रिहा करना सही लगता है, वहां से उसे जमानत न देना दंड के समान है.
जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने यह कहते हुए भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार दिल्ली पुलिस के उप-निरीक्षक युद्धवीर सिंह को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है. युद्धवीर सिंह को ढाई लाख रुपए रिश्वत लेते हुए सीबीआई ने गिरफ्तार किया था.
नियमित जमानत के मामले में नियम को न भूला जाए
जस्टिस सिंह ने कहा कि अदालतों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 483 के तहत नियमित जमानत के मामले में राज्य के व्यापक हित को ध्यान में रखा जाना चाहिए. इसके अलावे किसी सरकारी अधिकारी के खिलाफ रिश्वतखोरी के आरोपों से संबंधित अपराधों से निपटने के दौरान एक संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है, क्योंकि इससे उन सरकारी कर्मचारियों पर जनता का भरोसा कम होता है, जो उनकी रक्षा करने के लिए बाध्य है.
जमानत आवेदन को मंजूर या खारिज करना अदालत का जिम्मा
जस्टिस सिंह ने यह भी कहा कि जमानत आवेदन को मंजूर या खारिज करना अदालतों के न्यायिक विवेक पर निर्भर करता है. प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए विवेक का प्रयोग किया जाता है. इस दशा में जमानत एक नियम है और जेल एक अपवादहै के सिद्धांत का पालन किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि आरोपी के खिलाफ जो आरोप है उसमें अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान है। इसकी जांच पूरी हो चुकी है.
कोर्ट ने कहा कि निसंदेह याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपी गंभीर प्रकृति के है. जनता की नैतिकता के खिलाफ है. साथ ही इस अदालत को इस स्थापित कानून को ध्यान में रखना और उसका मूल्यांकन करना आवश्यक है कि सजा के तौर पर जमानत नही रोकी जानी चाहिए.
– भारत एक्सप्रेस