दिल्ली हाईकोर्ट ने राजधानी की सभी अदालतों को निर्देश दिया है कि वे अपने फैसले के लिए तारीख तभी निर्धारित करें जब पूरा फैसला लिख लिया गया हो. साथ ही जब फैसला सुनाया जाए जाए तो तुरंत उसकी एक कॉपी अभियुक्त को दिया जाए, जिससे वह अपने दोष सिद्धि को ऊपर अदालत में चुनौती दे सके.
जिला न्यायाधीशों को भेजी जाए फैसले की कॉपी
न्यायमूर्ति नवीन चावला ने ये आदेश देने के साथ ही ये भी कहा कि अपने फैसले की प्रति सभी जिला न्यायाधीशों को भेजी जाए. जिससे वे अपनी सभी अधीनस्थ अदालतों को मामले को लेकर संवेदनशील बना सकें. न्यायमूर्ति नवीन चावला ने जिला न्यायाधीशों से यह भी आग्रह किया है कि वे अपने सभी न्यायिक अधिकारियों को इसको लेकर संवेदनशील बनाएं. कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त को जो कॉपी दी जाए, वो पूरी तरह से नि:शुल्क होनी चाहिए.
न्यायमूर्ति ने यह दिशा-निर्देश दो लोगों की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया. जिन्हें दोषी ठहराए जाने के बाद हिरासत में ले लिया गया था, लेकिन उन्हें दोषसिद्धि के फैसले की प्रति नहीं दी गई थी. क्योंकि फैसला पूरी तरह नहीं लिखा जा सका था. न्यायमूर्ति ने कहा कि अगर फैसला तैयार था तो उसकी प्रति अभियुक्तों को देने के लिए आगे की तारिख देने का कोई औचित्य नहीं था.
अभियुक्त को दोषसिद्धि का कारण जानने का अधिकार
अभियुक्त या उसके वकील के अवलोकन के लिए फैसले की प्रति उपलब्ध कराना महत्वपूर्ण है. अभियुक्त सजा पर आदेश की प्रतीक्षा किए बिना तुरंत दोषसिद्धि के आदेश या निर्णय के विरुद्ध अपील कर सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि एक अभियुक्त को अपनी दोषसिद्धि का कारण जानने का भी अधिकार है. यह जानने का अधिकार है कि उसे क्यों हिरासत में लिया जा रहा है और क्यों उसकी स्वतंत्रता छीनी जा रही है.
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अभियुक्त को दोषी ठहराए जाने के तुरंत बाद फैसले की प्रति न दिया जाना संबंधित अदालत का अनुचित कदम है. ऐसा होने से अभियुक्त का वैधानिक अधिकार के साथ उसका संवैधानिक अधिकार वंचित होता है, क्योंकि फैसला खुली अदालत में समग्र रूप से नहीं पढ़ा गया था.
-भारत एक्सप्रेस
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