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आपराधिक अवमानना के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने वकील को सुनाई 4 महीने जेल की सजा

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की खंडपीठ ने 6 नवंबर के आदेश में कहा कि वकील ने अपने कार्यों के लिए कोई पश्चाताप या माफी नहीं दिखाई.

delhi high court

दिल्ली हाईकोर्ट.

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक वकील को आपराधिक अवमानना के लिए चार महीने की जेल की सजा सुनाई है. उसे न्यायाधीशों के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी करने और उनके तथा पुलिस अधिकारियों के खिलाफ बार-बार निराधार शिकायतें दर्ज कराने का दोषी पाया गया .न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की खंडपीठ ने 6 नवंबर के आदेश में कहा कि वकील ने अपने कार्यों के लिए कोई पश्चाताप या माफी नहीं दिखाई, उसका व्यवहार स्पष्ट रूप से न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को बदनाम करने और उसे कलंकित करने के इरादे से किया गया था.

वकील ने किया था ये काम

न्यायालय ने यह भी देखा कि न्यायिक अधिकारियों, पुलिस अधिकारियों और इस न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ अवमाननाकर्ता द्वारा 30 से 40 शिकायतें दर्ज करना स्पष्ट रूप से न्यायालय को बदनाम करने और इसकी गरिमा और अधिकार को कम करने के उसके इरादे को दर्शाता है. पिछले कुछ मौकों पर सुनवाई के बावजूद अवमाननाकर्ता ने अपने आचरण के लिए कोई पश्चाताप या माफी नहीं जताई.

कोर्ट ने क्या कहा?

न्यायालय ने आगे कहा कि अवमाननाकर्ता द्वारा लगाए गए सभी आरोपों को विभिन्न मजिस्ट्रेट, सत्र और जिला न्यायाधीशों के साथ-साथ इस न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों द्वारा उचित रूप से संबोधित किया गया था.

कोर्ट ने कहा ऐसे मामलों को तुच्छ और निराधार शिकायतों का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए.” इसके अतिरिक्त न्यायालय द्वारा जारी किए गए कारण बताओ नोटिस के लिखित उत्तर में जिस तरह से अवमाननाकर्ता ने एकल न्यायाधीश का उल्लेख किया और उसने जो विभिन्न आरोप लगाए, वे पूरी तरह से अस्वीकार्य और घृणित थे.

पीठ ने आगे कहा कि इस स्तर पर, अवमाननाकर्ता ने कुछ समय के लिए सजा को निलंबित करने का अनुरोध किया, ताकि उसे आज पारित आदेश के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय से संपर्क करने का समय मिल सके. हालांकि, न्यायालय ने उल्लेख किया कि सामान्य रूप से न्यायपालिका और विशेष रूप से कई न्यायाधीशों के खिलाफ अवमाननाकर्ता के चल रहे बदनामी अभियान के साथ-साथ अवमानना कार्यवाही के दौरान जिस बेशर्मी से उसने प्रस्तुतियाँ दी, उसके मद्देनजर न्यायालय को आदेश को निलंबित करने का कोई कारण नहीं मिला.

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पीठ ने यह भी कहा कि अवमाननाकर्ता को पिछली सुनवाई में वकील द्वारा प्रतिनिधित्व करने के लिए बार-बार अवसर दिए गए थे, लेकिन उसने व्यक्तिगत रूप से मामले पर बहस करना चुना. फिर भी, न्यायालय ने निर्देश दिया कि यदि अवमाननाकर्ता वकील की सहायता लेना चाहता है, तो दिल्ली उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति (डीएचसीएलएससी) उसे कानूनी सहायता प्रदान करेगी.

-भारत एक्सप्रेस

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