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26/11 Mumbai Attack: 9 साल की देविका की गवाही ने दिलाई थी कसाब को फांसी, आतंकी ने मारी थी पैर में गोली

Mumbai Attack: कसाब को सजा दिलाने और आतंक के खिलाफ इस लड़ाई को अपनी गवाही से उसके अंजाम तक पहुंचाने में इस बहादुर लड़की ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

Mumbai Attack Devika rotawan Story

Mumbai Terror Attack: समुद्र के किनारे बसे मुंबई को हिंदुस्तान की आर्थिक राजधानी कहा जाता है. फिल्मी दुनिया की चकाचौंध वाला यह महानगर, महाराष्ट्र जैसे बड़े सूबे की राजधानी भी है. दिन हो या रात इस शहर की रफ्तार कभी कम नहीं होती. लेकिन 26 नवंबर 2008 की रात न केवल यह पूरा शहर थम गया, बल्कि सारे देश के लोगों की सहमी निगाहें, इसकी सलामती की दुआएं मांग रही थीं. इसी समुद्र के रास्ते दबे पांव पाकिस्तान से आए 10 आतंकवादियों ने मासूम लोगों के खून से इसकी धरती को लाल कर दिया. इतिहास में काले दिन के रूप में दर्ज इसे गुजरे आज 14 बरस हो चुके हैं, लेकिन लगता है कि जख्म आज भी हरा है.

इस हमले में एकमात्र जिंदा बचे खूंखार आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को लगभग चार साल तक चले मुकदमे के बाद 21 नवंबर, 2012 को फांसी दे दी गई. हमलावर जब छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस भवन के अंदर गोलियों की बैछार कर रहे थे, इसी दरमियान दहशतगर्दों की एक गोली 8 साल की छोटी सी एक बच्ची, जिसका नाम देविका था, उसके दाहिने पैर में आ लगी. जिसके बाद वह अगले दिन तक बेहोश रही. किसी तरह बच्ची को पास के ही सर जेजे. अस्पताल ले जाया गया. एके -47 की उस गोली को निकालने के लिए डॉक्टरों को एक बड़ी सर्जरी करनी पड़ी. कसाब को सजा दिलाने और आतंक के खिलाफ इस लड़ाई को अपनी गवाही से उसके अंजाम तक पहुंचाने में इस बहादुर लड़की ने  महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

क्या कहती हैं देविका उस काली रात के बारे में

आज देविका 23 साल की हो चुकी हैं. घटना (26/11 Terrorist Attack) को याद करके वह बताती हैं कि उस दिन वह अपने पिता नटवरलाल रोटावन के साथ अपने भाई भरत और उसके परिवार से मिलने के लिए पुणे जाने वाली ट्रेन का इंतजार कर रही थीं. तभी हमने गोलियों की कई आवाजें सुनीं, वहां मौजूद लोग चीख और रो रहे थे, चारों तरफ भगदड़ का माहौल था. हमने भी इस परिस्थिति में खुद को फंसा हुआ पाया. दूसरों की देखादेखी भागने की कोशिश की और अचानक लड़खड़ा कर वहीं गिर गई. तभी मुझे पैर में दर्द महसूस हुआ और अगले दिन ही होश में आई.

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हमले के बाद सदमें में था परिवार

देविका के पिता नटवरलाल के अनुसार उस समय देविका बहुत छोटी थी. इस भयावह घटना (26/11 Mumbai Terrorist Attack) से दो साल पहले ही उसकी मां सारिका इस दुनिया से चली गई. हमले के शुरुआती तीन साल पूरे परिवार के लिए किसी सदमें की तरह थे. इसके बाद देविका पाली जिले (राजस्थान) के अपने पैतृक गांव सुमेरपुर चली गई, जहां के पूरे कबीले ने उसका अच्छे से ख्याल रखा.

26/11 के मुकदमे में कसाब के खिलाफ अदालती कार्यवाही में भाग लेने के लिए उन लोगों को एक बार फिर मुंबई बुलाया गया. देविका के पिता भी 26/11 के मुकदमे में अभियोजन पक्ष के मुख्य गवाहों में से एक थे. देविका और नटवरलाल के बयानों ने कसाब को फांसी के फंदे तक पहुंचा दिया.

किन जगहों को बनाया था आतंकवादियों ने निशाना 

साल 2008 के नवंबर महीने की उस काली रात को सपनों की नगरी मुंबई एकाएक गोलियों की तेज आवाज से दहल उठी थी. लश्कर-ए-तैयबा के प्रशिक्षित और आधुनिक हथियारों से लैस खूंखार आतंकवादियों ने दो पांच सितारा होटलों, एक अस्पताल, रेलवे स्टेशनों और एक यहूदी केंद्र को अपना निशाना बनाया था.

सरहद पार से आए दहशतगर्दों द्वारा किए गए इस हमले में 166 लोग मारे गए थे, जिनमें 29 विदेशी नागरिक भी शामिल थे. भारतीय सुरक्षाबलों ने जवाबी कार्रवाई में 9 आतंकियो को मौत को घाट उतार दिया, जबकि एक आतंकवादी अजमल आमिर कसाब (Terrorist Ajmal Kasab) को जिंदा गिरफ्तार कर लिया गया था.

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