Bharat Express

जी कृष्णैया और UPSC की परीक्षा

1985 बैच के बिहार कैडर के एक ऐसे आईएएस अधिकारी बने जी कृष्णैया, जिनका जन्म तेलंगाना के महबूबनगर के भूमिहीन परिवार में हुआ था.

 

संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी (UPSC) ने सिविल सर्विसेज की परीक्षा और इंटरव्यू का फाइनल रिजल्ट जारी कर दिया है. इशिता किशोर ने यूपीएससी 2022 की परीक्षा में टॉप किया है. यूपीएससी के मुताबिक इस बार कुल 933 अधिकारियों का चयन इस परीक्षा के माध्यम से किया गया है. कुल 933 सफल उम्मीदवारों में कई ऐसे भी हैं, जिन्होंने मुश्किल हालातों से लड़कर कामयाबी हासिल की और उन लोगों के लिए एक मिसाल बने हैं जो थोड़ी से परेशानी आने पर हिम्मत हार जाते हैं. इन उम्मीदवारों में से ही एक उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के कुरावली कस्बे के रहने वाले सूरज तिवारी हैं, जिन्हें 917 रैंक मिली है. सूरज ने यह सफलता पहले प्रयास में हासिल की है. मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले सूरज तिवारी दिव्यांग हैं, सूरज तो दिव्यांग हैं लेकिन ऐसे सैकड़ों अभ्यर्थी सफल हुए हैं जिन्होंने इस सफलता के लिए बहुत मेहनत करने के साथ – साथ बड़ा त्याग किया है.

परीक्षा का परिणाम आते ही उत्तीर्ण अभ्यर्थियों से जाति, क्षेत्र और रिश्तेदारी जोड़कर लोग बधाई देकर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं और सार्वजनिक तौर पर यह बताते हुए नहीं थक रहे हैं कि अब मेरी भी मजबूत पकड़ प्रशासन में हो चुकी है. लेकिन जब वही सफल अभ्यर्थी प्रशासन को चलाते समय झंझावातों का सामना करता है तो ना कोई रिश्तेदार नज़र आता है और ना ही कोई जाति के नाम पर खुशी मनाने वाला, उस मुश्किल दौर में नाम मात्र के ही लोग होते हैं जो मजबूती से साथ खड़े रहते हैं.

1985 बैच के बिहार कैडर के एक ऐसे आईएएस अधिकारी बने जी कृष्णैया, जिनका जन्म तेलंगाना के महबूबनगर के भूमिहीन परिवार में हुआ था. उनके पिता कुली थे और परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. इसकी वजह से कृष्णैया भी अपने पिता के साथ कुछ दिन कुली का काम किया. बाद के दिनों में कुछ समय तक उन्होंने पत्रकारिता भी की लेकिन उन्होंने साथ में अपनी पढ़ाई जारी रखी और सरकारी विभाग में बतौर क्लर्क की नौकरी भी की.

उनके सलेक्शन के समय भी लोगों ने खूब खुशियां मनाई होंगी जाति और धर्म जोड़कर, लेकिन जब बेवजह जी कृष्णैया की हत्या कर दी जाती है तो न्याय दिलाना तो दूर की बात है बल्कि न्याय दिलाने की बात करने वाला भी कोई सगा सम्बन्धी सामने नहीं आता है. जी कृष्णैया के हत्या का मामला बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के सदर थाने में एफआईआर संख्या 216-1994 के रूप में दर्ज है.

1994 में जी कृष्णैया गोपालगंज के जिलाधिकारी हुआ करते थे. उन दिनों सूबे में चुनाव का माहौल था. वह एक बैठक के बाद हाजीपुर से लौट रहे थे. उसी समय कौशलेंद्र शुक्ला उर्फ छोटन शुक्ला की शव यात्रा में मुजफ्फरपुर के सदर थाने के खबरा गांव में हाइवे नंबर 28 पर उनकी कार फंस गई. उस शव यात्रा में हजारों की भीड़ उमड़ी थी. कृष्णैया को गाड़ी में देखते ही भीड़ आगबबूला हो गई. भीड़ ने एम्बेसडर कार से जी कृष्णैया के बॉडीगार्ड को बाहर खींचा. कृष्णैया ने बॉडीगार्ड को बचाने के लिए ड्राइवर दीपक से कार रोकने के लिए कहा और कार रुकते ही भीड़ ने उन पर हमला कर दिया और जी कृष्णैया की मौके पर ही मृत्यु हो गई. जब जी कृष्णैया की हत्या हुई तब वह मात्र 37 वर्ष के थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के गृह जिले गोपालगंज जिले के जिलाधिकारी के रूप में कार्यरत थे.

इस घटना में आरोपित रहे पूर्व सांसद आनन्द मोहन की रिहाई के लिए बिहार सरकार ने कानून में संशोधन तक कर दिया. आनन्द मोहन की रिहाई के वक्त आईएएस एसोसिएशन अपना विरोध दर्ज कराता रहा लेकिन फिर भी समाज का कोई भी तबका विशेषकर अभ्यर्थियों के सफलता पर खुद को उनसे जोड़कर देखने वाले भी सामने नहीं आये और ना ही कोई सामाजिक संगठन उस व्यक्ति को न्याय दिलाने के लिए सामने आया जो अपनी ड्यूटी करते समय असमय काल का ग्रास बन गया था.

-भारत एक्सप्रेस



इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.

Also Read