Bharat Express

जिमखाना में भ्रष्टाचार की जांच के नाम पर फेल हुई सरकार !

साढ़े तीन साल पहले दिल्ली जिमखाना क्लब में भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई तथाकथित सरकारी मुहिम सिरे से फेल हो गई है. NCLAT के ताजा आदेश के बाद कंपनी कार्य मंत्रालय का कामकाज और नौकरशाही की कार्यशैली सवालों के घेरे में है.

government-failed-in-the-name-of-investigating-corruption-in-gymkhana

साल 2020 में दिल्ली जिमखाना क्लब में भ्रष्टाचार का मामला सुर्ख़ियों का हिस्सा बन रहा था. मामले में खुद भारत सरकार ने मोर्चा संभाला और 15 फ़रवरी 2021 को NCLAT ने क्लब की कार्य समिति को भंग करके कमान कंपनी कार्य मंत्रालय के हाथ में थमा दी. जिसके बाद यहां पूर्व नौकरशाह विनोद यादव को प्रशासक नियुक्त किया गया. लेकिन वह खुद आरोपों के घेरे में घिर गए. इसके बाद विवादित अधिकारी ओम पाठक को प्रशासक का जिम्मा सौंपा गया. लेकिन उन पर तो खुद भ्रष्टाचार में शामिल होने के आरोप लगने लगे. शायद यही वजह रही कि एक आदेश के बाद मंत्रालय ने उन्हें भी हटाकर यहां बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स नियुक्त कर दिए. अब NCLAT ने 31 मार्च तक उन्हें भी यहां से रुखसत होने का आदेश दिया है.

यह था मामला

दिल्ली जिमखाना क्लब में भाई-भतीजावाद से लेकर फर्जी तरीके से सदस्य बनाने के आरोप तो काफी समय से लग रहे थे, लेकिन विभिनन योजनाओं के नाम पर वित्तीय अनियमितता के आरोपों ने क्लब की साख पर बट्टा लगा दिया. परिणाम यह हुआ कि NCLT तक पहुंची लड़ाई के तहत NCLAT ने क्लब की कार्य समिति को भंग करके इसकी कमान MCA के हाथ में सौंप दी. लेकिन पहले दोनों प्रशासक विनोद यादव और ओम पाठक खुद विवाद का हिस्सा बन गए और अब यहां तैनात क्लब चेयरमेन मलय सिन्हा पर भी गंभीर आरोप लग रहे हैं.

करोड़ों के घपले के आरोप

खुद सरकार का यह दावा रहा है कि क्लब में करीब 40 करोड़ रुपए की वित्तीय अनियमितता को अंजाम दिया गया है. हैरानी की बात यह है कि सरकारी नुमाइंदों ने जांच के नाम पर आज तक कोई कदंम नहीं उठाया. अलबत्ता अदालती मामलों में वकीलों को फीस देने के नाम पर जरूर क्लब के करीब नौ करोड़ रुपए खर्च कर दिए. इतना ही क्लब के अध्यक्ष मलय सिन्हा पर क्लब की फोरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट में भी हेराफेरी करने का आरोप लगा. इस रिपोर्ट को आज तक भी पूरी तरह सार्वजानिक नहीं किया गया है. आरोप है की मलय सिन्हा कुछ आरोपियों को बचाने के लिए ऐसा कर रहे हैं.

पुलिस भी सवालों के घेरे में

क्लब की लड़ाई केवल NCLT या MCA तक सीमित नहीं रही, यहां हुए भ्रष्टाचार का मामला अदालत तक भी पहुँच गया. दो साल पहले प्रधानमंत्री आवास के साथ ड्रोन उड़ाने का मामला इस कदर गरमाया कि नई दिल्ली जिला की तत्कालीन DCP से लेकर स्थानीय पुलिस तक पर आरोप लगे. गवाहों को धमकी देने का सिलसिला भी शुरू हुआ. परिणाम यह हुआ कि पटियाला हाउस अदालत ने इसी साल 29 मई को पुलिस के कामकाज पर सवाल उठाते हुए स्पेशल सीपी EOW और ज्वाइंट सीपी नई दिल्ली को मामले की फिर से जांच के आदेश दिए. लेकिन दोनों ने ऐसा नहीं किया.

NCLT के कामकाज पर भी उठ रहा सवाल

दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में सरकार के साथ खड़े क्लब के पूर्व सचिव कर्नल आशीष खन्ना नौकरशाही के ही निशाने पर आ गए. यहां तक कि NCLT ने तो अपने एक विवादित आदेश के तहत उनकी ईमेल आईडी ही बंद करा दी. इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय की जस्टिस नीना कृष्ण बंसल की पीठ ने NCLT प्रेजिडेंट और तकनीकि सदस्य के अलावा, गूगल, सेक्रेटरी IT, सेक्रेटरी MCA और DG को नोटिस जारी कर जवाब माँगा है.

NCLT में हुई नियुक्ति पर विवाद

जिमखाना में ड्रोन उड़ाने के मामले में क्लब के तत्कालीन निदेशक आशीष वर्मा पर भी आरोप लगा था. मामले की शिकायत कंपनी कार्य मंत्रालय की फाइलों में भी दर्ज थी. बावजूद इसके उन्हें NCLT का सदस्य नियुक्त कर दिया गया. जस्टिस नीना कृष्ण बंसल ने इसके लिए भी कम्पनी कार्य मंत्रालय से जवाब तलब किया है.

गवाहों को निकालने पर विवाद

एक गंभीर आरोप यह भी है कि अदालती प्रक्रिया का हिस्सा बने मामलों में क्लब का जो भी कर्मचारी गवाह के तौर पर बयान दर्ज कराता है, मलय सिन्हा की अध्यक्षता वाले सरकारी नुमाइंदे उसे क्लब की नौकरी से बर्खास्त कर देते हैं. निजी सपरा नामक शिकायकर्ता के इस आरोप के बाद NCLAT ने ऐसे सभी लोगों को विटनेस प्रोटेक्शन सेल में शिकायत दर्ज कराने के लिए कहा है.

सरकारी कवायद को लगा पलीता

NCLAT में जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने आदेश दिया है कि 31 मार्च 2025 तक सभी प्रक्रिया पूरी करके क्लब की कार्य समिति के चुनाव कराने होंगे. चुनी हुई समिति ही क्लब का कामकाज और प्रबंधन संभालेगी. इसके साथ ही सरकार द्वारा नियुक्त निदेशकों को मौजूदा शिकायतों का निपटारा भी 31 मार्च तक करने का आदेश दिया गया है. ऐसे में सवाल यह है कि जो सरकारी नुमाइंदे तीन साल में एक भी मामले की जांच करने में असफल साबित रहे, वह भला पांच महीने में क्या कर पाएंगे? ऐसे में सरकार के नुमाइंदों ही नहीं बल्कि कंपनी कार्य मंत्रालय की नौकरशाही भी सवालों के घेरे में है!

— भारत एक्सप्रेस

Also Read