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Women Reservation Bill: महिला आरक्षण बिल लागू हुआ तो कितनी बदल जाएगी देश की सियासत? जानें

मोदी सरकार की तरफ से बुलाए गए संसद का विशेष सत्र पांच दिनों तक चलेगा. इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से 8 विधेयक पेश किए जा सकते हैं. जिसमें महिला आरक्षण बिल भी शामिल है.

महिला आरक्षण बिल

मोदी सरकार की तरफ से बुलाए गए संसद का विशेष सत्र पांच दिनों तक चलेगा. इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से 8 विधेयक पेश किए जा सकते हैं. जिसमें महिला आरक्षण बिल भी शामिल है. महिला आरक्षण बिल को बीते सोमवार (18 सितंबर) को हुई मोदी कैबिनेट की बैठक में मंजूरी दे दी गई थी. इससे पहले 17 सितंबर को जब सर्वदलीय बैठक हुई थी तो उसमें विपक्ष के नेताओं ने भी महिला आरक्षण बिल को लाने की वकालत की थी. अब ऐसे में माना जा रहा है कि मोदी सरकार आज (19 सितंबर) लोकसभा में इस बिल को पेश कर सकती है. तो आइये जानते हैं क्या है महिला आरक्षण बिल और इसको लेकर क्यों इतनी चर्चा हो रही है ?

क्या है महिला आरक्षण बिल का इतिहास ?

महिला आरक्षण बिल की लड़ाई काफी पुरानी है. इस विधेयक को 12 सितंबर 1996 में एचडी देवगौड़ा की सरकार में संसद में पेश किया गया था, लेकिन पास नहीं हो सका था. तब से लेकर अब तक ये बिल ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है. इस विधेयक का उद्देश्य महिलाओं को लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं में 15 सालों तक 33 फीसदी सीटें आरक्षित करना है.

देवगौड़ा सरकार में पेश होने के बाद दूसरा मौका अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में आया. जब इस विधेयक को साल 1998 में दोबारा लोकसभा में पेश किया गया, लेकिन पास नहीं हो सका. जिसको लेकर अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 में 15 अगस्त के मौके पर लाल किले से महिलाओं के 33 फीसदी आरक्षण का जिक्र किया था.

कांग्रेस की सरकार के दौरान इस बिल को 6 मई 2008 को राज्यसभा में पेश किया गया. जिसके बाद इस बिल को 9 मई 2008 को स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा गया. बाद में स्टैंडिंग कमेटी ने 17 दिसंबर 2009 को अपनी रिपोर्ट पेश की. फरवरी 2010 में केंद्रीय कैबिनेट ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी. मंजूरी मिलने के बाद महिला आरक्षण बिल राज्यसभा से पारित हो गया, लेकिन लोकसभा में फिर से अटक गया. लोकसभा में इस बिल का विरोध समाजवादी पार्टी और लालू प्रसाद यादव की आरजेडी ने ये कहते हुए विरोध किया कि जाति के हिसाब से महिला आरक्षण तय हो.

अभी महिलाओं का कितना है प्रतिनिधित्व?

अभी मौजूदा समय में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की बात करें तो संसद और देश के अधिकतर राज्यों की विधानसभाओं में उनकी भागीदारी 15 प्रतिशत से भी कम है. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि राज्य की 19 विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी 10 फीसदी से भी कम है. इसके अलावा लोकसभा में भी 543 सांसदों में सिर्फ 78 महिला सदस्य है. जो 15 फीसदी से भी कम है. वहीं ये आंकड़ा राज्यसभा में 14 प्रतिशत है. कई प्रदेशों की विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से कुछ ज्यादा है. जिसमें बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और दिल्ली शामिल है. वहीं गुजरात में 8.2 प्रतिशत और हिमाचल प्रदेश विधानसभा में सिर्फ एक महिला विधायक है.

इसलिए जरूरी है महिला आरक्षण बिल

महिला आरक्षण बिल लागू होने से देश की तस्वीर बदलेगी. आधी आबादी का प्रतिनिधित्व संसद से लेकर ग्राम पंचायतों के चुनाव तक दावेदारी मजबूत होगी. लोकसभा, विधानसभा, विधान परिषदों में महिलाओं की संख्या बढ़गी. जिससे सरकार से लेकर निजी क्षेत्रों तक उनकी पहुंच होगी. बिल को कानूनी दर्जा मिलने के बाद आधी आबादी देश के विकास में भी बढ़-चढ़कर योगदान के लिए आगे आ सकेंगी. इसके साथ ही अब तक सिर्फ बयानों में नारी सशक्तिकरण की होने वाली बात को भी बल मिलेगा.

पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण

बता दें कि पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए आरक्षण दिया गया है. अनुच्छेद 24D ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित किया है. चुनाव के जरिए भरी जाने वाली सीटों की कुल संख्या और पंचायतों के अध्यक्षों के पदों की संख्या में महिलाओं के लिए कम से कम एक तिहाई आरक्षण का प्रावधान है.

देश के 21 राज्यों में 50 फीसदी महिला आरक्षण

वहीं 21 राज्यों ने भी अपने-अपने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण को लागू किया है. जिसमें आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल शामिल है.

दुनिया के 40 देशों में मिलता है महिलाओं को आरक्षण

राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए दुनिया के तमाम देश महिला आरक्षण को लागू कर चुके हैं. स्वीडन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस (आईडीईए) की मानें तो विश्व के 40 देशों में संवैधानिक संशोधन के जरिए या फिर चुनावी कानूनों में बदलाव करके महिलाओं के लिए संसद में कोटे को निर्धारित किया है.

जिन देशों में महिलाओं के लिए आरक्षण लागू किया गया है उसके अलावा भी 50 ऐसे देश हैं जहां पर राजनीतिक पार्टियों ने अपनी स्वेच्छा से पार्टी के कानून में महिलाओं के लिए कोटे का प्रावधान किया है. पड़ोसी देश पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में महिलाओं के लिए 60 प्रतिशत सीटें रिजर्व हैं. इसके अलावा बांग्लादेश की संसद में महिलाओं के लिए 50 फीसदी सीटें आरक्षित हैं. नेपाल में 33 फीसदी आरक्षण महिलाओं को दिया जा रहा है.

यह भी पढ़ें- Women Reservation Bill: संसद के विशेष सत्र का सबसे बड़ा सरप्राइज, महिला आरक्षण बिल को मोदी कैबिनेट की बैठक में मिली मंज़ूरी

अफगानिस्तान में तालिबान का शासन शुरू होने से पहले संसद में महिलाओं के लिए 27 फीसदी का आरक्षण लागू था. यूएई की फेडरल नेशनल काउंसिल में महिलाओं के लिए 50 फीसदी सीटें आरक्षित हैं. इसके अलावा कई अफ्रीकी, यूरोपीय, दक्षिण अमेरिकी देशों में भी महिलाओं की राजनीति में भागीदारी के लिए आरक्षण की व्यवस्था को लागू किया गया है.

महिला आरक्षण बिल पर मोदी सरकार का बड़ा कदम

अब ऐसे में भारत भी इस ओर अपने कदम बढ़ाने की कवायद कर रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महिला सशक्तिकरण और सरकार से लेकर हर जगहों पर उनकी उनकी भागीदारी की बात करते रहे हैं. ऐसे में मोदी सरकार की तरफ से महिला आरक्षण बिल लाने को बड़ा कदम माना जा रहा है. जिसके पक्ष में विपक्ष के भी कई दलों के नेता समर्थन करते हुए दिखाई दे रहे हैं.

-भारत एक्सप्रेस

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