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पाकिस्तान के हमलों से देश की सुरक्षा करने वाले S-400 को क्यों मिला ‘सुदर्शन’ नाम? पढ़िए परमेश्वर श्रीकृष्ण के दिव्य चक्र की कहानी – समझिए वायु रक्षा प्रणाली

S-400 एयर डिफेंस सिस्टम विश्व की सबसे उन्नत और लंबी दूरी तक मार करने वाली वायु रक्षा प्रणालियों में शुमार है. भारत में इसे ‘सुदर्शन’ नाम दिया गया है. यह नाम भगवान विष्णु के शस्त्र ‘सुदर्शन चक्र’ से लिया गया है. आइए जानते हैं इस दिव्यास्त्र की कहानी –

shri krishna sudarshan chakra and s 400

भारत ने पहली बार PAK के खिलाफ S400 एयर डिफेंस सिस्टम का इस्तेमाल किया. यह डिफेंस सिस्टम कुछ-कुछ सुदर्शन चक्र जैसा ही है.

S-400 / Sudarshan Chakra: 7-8 मई की देर रात पाकिस्तान ने भारत के 15 शहरों पर मिसाइल और ड्रोन हमले की कोशिश की, लेकिन भारत की S-400 वायु रक्षा प्रणाली ने इसे पूरी तरह नाकाम कर दिया. इस प्रणाली को ‘सुदर्शन चक्र’ के नाम से जाना जाता है, जो हमारे पौराणिक शस्त्र ‘सुदर्शन चक्र’ से प्रेरित है.

भारत-पाकिस्तान तनाव अब युद्ध का रूप ले चुका है. पहलगाम आतंकी हमले का जवाब देने के लिए भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ठिकानों पर सटीक मिसाइल हमले किए. इसके जवाब में पाकिस्तान ने अवंतीपुरा, श्रीनगर, जम्मू, पठानकोट, अमृतसर, कपूरथला, जालंधर, लुधियाना, आदमपुर, बठिंडा, चंडीगढ़ और भुज जैसे शहरों पर हमला करने की कोशिश की, लेकिन S-400 ने सभी हमलों को विफल कर दिया.

S-400 एयर डिफेंस सिस्टम विश्व की सबसे उन्नत और लंबी दूरी तक मार करने वाली वायु रक्षा प्रणालियों में शुमार है. भारत में इसे ‘सुदर्शन’ नाम दिया गया है. यह नाम भगवान विष्णु एवं उनके मनुष्यवतार श्रीकृष्ण के पौराणिक शस्त्र ‘सुदर्शन चक्र’ से लिया गया है. आइए जानते हैं इस दिव्यास्त्र की कहानी-


सुदर्शन चक्र और उसकी शक्ति


पुराणों में उल्लेख है कि ‘सुदर्शन चक्र’ सर्वोच्च दिव्यास्त्र है. तमिल भाषा में इसे ‘चक्रत्तालवार’ और थाईलैंड में ‘चक्री वंश’ के नाम से जाना जाता है. मान्यताएं हैं कि सुदर्शन चक्र भगवान श्रीहरि विष्णु को शिवजी से प्राप्त हुआ था. लाखों-करोड़ों वर्षों से यह दिव्यास्त्र भगवान श्रीहरि विष्णु के अवतारों के पास घूमता रहा है. भगवान ने जब द्वापर युग में श्रीकृष्ण के रूप में मनुष्यवतार धारण किया, तो सुदर्शन चक्र उन्हें अग्निदेव के कहने पर वरुणदेव ने प्रदान किया. यह कथा विश्व के सबसे बड़े महाकाव्य महाभारत में बतलाई गई है. श्रीकृष्ण और अर्जुन ने खांडव वन जलाने में अग्निदेव की मदद की थी, तब श्रीकृष्ण ने कौमुदकी गदा और चक्र का प्रयोग किया था.


पुराणों के अनुसार, श्रीकृष्ण सुदर्शन चक्र को अपनी छोटी उंगली पर धारण करते थे. यह दिव्यास्त्र अधर्मियों/शत्रु को नष्ट कर वापस श्रीकृष्ण के पास लौट आता था. इसकी गति बहुत तीव्र होती थी और इसे ढाल बनाकर भक्तजनों की रक्षा भी की जा सकती थी. कहा जाता है​ ​कि इस चक्र के दांते वज्र जैसे थे.

सुदर्शन चक्र का प्रयोग


ऋग्वेद, यजुर्वेद और पुराणों के अनुसार, सुदर्शन चक्र विनाश के लिए था. श्रीकृष्ण ने इसी चक्र से बुराइयों के पर्याय शिशुपाल का सिर काट दिया था. समुद्र मंथन में मंदराचल पर्वत को काटने और गोवर्धन पर्वत को सहारा देने में भी इसका प्रयोग हुआ. हालांकि, श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध में इसका उपयोग नहीं किया था.

सुदर्शन चक्र की उत्पत्ति


एक कथा के अनुसार, सुदर्शन चक्र देवताओं के वास्तुकार विश्वकर्मा ने बनाया. उनकी बेटी संज्ञा, सूर्य की पत्नी, सूर्य के तेज से परेशान थीं. विश्वकर्मा ने सूर्य का तेज कम किया और बची ‘दिव्य धूल’ से पुष्पक विमान, शिवजी का त्रिशूल और विष्णुजी का सुदर्शन चक्र बनाया.

दूसरी कथा यह है कि सृष्टि में जब असुरों के अत्याचार बहुत बढ़ गए थे, तो देवता भगवान विष्णु के पास गए. विष्णुजी ने शिवजी की अराधना की. शिवजी ध्यान में लीन थे, उन्हें प्रसन्न करने के लिए विष्णुजी ने हजार कमल के पुष्प उन्हें चढ़ाए. अंततः शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया.

सुदर्शन चक्र का स्वरूप


शास्त्रों में सुदर्शन चक्र गोल, तीक्ष्ण और नुकीले कांटों से युक्त बताया गया है. इसके किनारे दो पंक्तियों में विपरीत दिशाओं में घूमते हैं. इसे इच्छाशक्ति से चलाया जाता था, और यह शत्रु को पहचानकर नष्ट करता था.

S-400 को ‘सुदर्शन’ नाम इसकी अचूकता और शक्ति के कारण मिला, जो पौराणिक सुदर्शन चक्र की तरह दुश्मनों को भयभीत करता है. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में इसने भारत की रक्षा-ताकत को साबित किया.

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  • भारत एक्सप्रेस


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