प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की सत्ता की बागडोर संभालने के बाद भारत के वैश्विक संबंधों को मजबूती देने के लिए हर संभव प्रयास किया है. इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मई 2024 तक, 75 विदेशी यात्राएं की हैं, जिसमें उन्होंने 66 देशों का दौरा किया है.
अब यह लाजमी है की जब किसी देश का प्रधानमंत्री किसी दूसरे देश में जाएगा तो दोनों देशों के सम्बन्धों में मजबूती आएगी और कुछ व्यवसायिक बाते भी होंगे जिसमें दोनों देशों का हित होगा.
2016 में 15 साल बाद भारत का कोई प्रधानमंत्री ईरान गया. नरेंद्र मोदी मोदी के इस दौरे को काफ़ी सफल माना गया था क्योंकि तब भारत, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान ने मई 2016 में एक अंतरराष्ट्रीय यातायात मार्ग बनाने का निर्णय लिया था, और तब से चाबहार बंदरगाह पर काम चल रहा है.
भारत के लिए यह मध्य एशिया, रूस और यहां तक कि यूरोप तक पहुंचने का प्रयास था. चाबहार बंदरगाह को रेल नेटवर्क से भी जोड़ने का प्रस्ताव था और इसमें भारत भी मदद करने वाला था. साथ ही चाबहार बंदरगाह की क्षमता भी बढ़ाए जाने की बात थी.
भारत इस रास्ते का इस्तेमाल अफ़ग़ानिस्तान तक बिन पाकिस्तान हुए पहुंचने के लिए करना चाहता है. वैसे भारत से अफ़ग़ानिस्तान पहुंचने का आसान तरीका तो पाकिस्तान के रास्ते है, लेकिन दोनों देशों के बीच संबंध लंबे दौर से अच्छे नहीं हैं और दोनों के दरवाज़े एक – दूसरे के लिए बंद होते और खुलते रहते हैं. इसलिए अरब सागर के किनारे इस नये मार्ग को बनाने की कवायत चल रही है.
इस चाबहार पोर्ट को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का जवाब भी माना जा रहा था. ग्वादर पोर्ट चाबहार से सड़क के रास्ते तकरीबन 400 किलोमीटर दूर है जबकि समुद्र के जरिए यह दूरी महज 100 किलोमीटर के आसपास है.
चीन और पाकिस्तान मिलकर ईरानी सीमा के क़रीब ग्वादर पोर्ट को विकसित कर रहे हैं. भारत, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान को जोड़ने वाले चाबहार पोर्ट को ग्वादर पोर्ट के लिए चुनौती के तौर पर देखा जाता है. चाबहार पोर्ट चीन की अरब सागर में मौजूदगी को चुनौती देने के लिहाज से भी भारत के लिए मददगार साबित हो सकता है.
चाबहार पोर्ट की अहमियत क्या है?
भारत में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे उसी वक्त 2003 में ईरान के तटीय शहर चाबहार में बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच सहमति बनी थी. साल 2016 में पीएम नरेंद्र मोदी के ईरान दौरे में इस समझौते को मंज़ूरी मिली.
2019 में पहली बार इस पोर्ट का इस्तेमाल करते हुए अफ़ग़ानिस्तान से माल भारत आया था. चाबहार पोर्ट इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर यानी आईएनएसटीसी के लिए काफ़ी अहमियत रखता है.
इस कॉरिडोर के तहत भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अज़रबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्ग का 7,200 किलोमीटर लंबा नेटवर्क तैयार होना है.
इस रूट से भारत की यूरोप तक पहुंच आसान हो जाती, साथ ही ईरान और रूस को भी फ़ायदा होता. इस परियोजना के लिए ईरान का चाबहार बंदरगाह बहुत अहम है.
दिल्ली में हुए जी-20 सम्मेलन के दौरान जब एक नए ट्रेड रूट को बनाने पर सहमति बनी थी, तब इस परियोजना के भविष्य पर सवाल उठने लगे थे. कहा गया कि अगर ये इंडिया-यूरोप-मिडिल ईस्ट कॉरिडोर बन गया तो चाबहार पोर्ट की बहुत अहमियत नहीं रह जाएगी. इसे ईरान की उपेक्षा के तौर पर भी देखा गया था. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे के दरम्यान रेल प्रोजेक्ट के समझौते में देरी को लेकर भी ईरान की नाराज़गी देखने को मिली थी.
ईरान चाहता है कि भारत इस प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा करे. न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भी इस पोर्ट को विकसित करने में देरी हुई. जब भारत और ईरान के बीच ये समझौता हुआ था, तब भी अमेरिका की ओर से कड़ी आपत्ति जताई गई थी.
मगर अब भारत और ईरान के बीच चाबहार पर अहम समझौता हो गया है. इसे दोनों देशों के रिश्तों में अच्छे माहौल के तौर पर देखा जा रहा है. भारत और ईरान ने सोमवार को एक ऐसा समझौता किया है, जिसे पाकिस्तान और चीन के लिए झटके के तौर पर देखा जा रहा है.
क्या है नया समझौता?
भारत और ईरान ने ये समझौता चाबहार स्थित शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के संचालन के लिए किया है. शाहिद बेहेस्ती ईरान का दूसरा सबसे अहम बंदरगाह है. यह समझौता इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और पोर्ट्स एंड मैरीटाइम ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ ईरान के बीच हुआ है. इस समझौते के वक्त भारत के जहाज़रानी मंत्री सरबानंद सोनोवाल ने अपने ईरानी समकक्ष के साथ इस अहम समझौते पर हस्ताक्षर किए.
साल 2016 में ईरान और भारत के बीच शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के संचालन के लिए भी समझौता हुआ था. नए समझौते को 2016 समझौते का ही नया रूप बताया जा रहा है. लंबी अवधि का ये समझौता दस साल के लिए है और इसके बाद ये ख़ुद ही आगे के लिए बढ़ जाएगा.
At Tehran, Iran today, delighted to be part of the signing of the Long Term Bilateral Contract on Chabahar Port Operations in presence of HE Mehrdad Bazrpash, Minister of Roads & Urban Development, Iran.
India will develop and operate Iran's strategic Chabahar Port for 10… pic.twitter.com/iXwekIk8ey
— Sarbananda Sonowal (Modi Ka Parivar) (@sarbanandsonwal) May 13, 2024
समझौते के बाद भारत के विदेश मंत्रालय का रुख?
विदेश मंत्रालय के मुताबिक़, ये समझौता क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाएगा और अफ़ग़ानिस्तान, मध्य एशिया और यूरेशिया के लिए रास्ते खोलेगा.
न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, इस समझौते के तहत इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड तकरीबन 120 मिलियन डॉलर का निवेश करेगी. इस निवेश के अतिरिक्त 250 मिलियन डॉलर की वित्तीय मदद की जाएगी. इससे ये समझौता तकरीबन 370 मिलियन डॉलर का हो जाएगा.
इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड ने इस पोर्ट का संचालन सबसे पहले 2018 के आख़िर में शुरू किया था.
इस समझौते के लिए दोनों देशों के बीच पिछले तीन साल से वार्ता चल रही थी. भारत ईरान के चाबहार बंदरगाह के ज़रिए अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया तक अपनी पहुंच को और आसान करना चाहता है.
यह बंदरगाह भारत के रणनीतिक और कूटनीतिक हितों के लिए भी बेहद अहम है. भारत और ईरान के बीच ये समझौता ऐसे दौर के बाद हुआ है, जब दोनों देशों के बीच चाबहार पोर्ट के मुद्दे पर दूरियां देखने को मिली थीं.
Long-term Main Contract for development of Shahid Beheshti Port Terminal, Chabahar signed between India Port Global Limited (IPGL) and Ports and Maritime Organization (PMO) of Iran
Union Minister @sarbanandsonwal visited Chabahar, Iran on 13 May 2024 to witness the signing… pic.twitter.com/DwnWQesZVg
— PIB India (@PIB_India) May 13, 2024
जानकारों के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद भारत का मध्य एशिया से सीधा संपर्क घट गया था. चाबहार के रास्ते भारत अब ज़रूरत पड़ने पर काबुल तक भी अपनी पहुँच बना पाएगा और साथ ही सेंट्रल एशियाई देशों से व्यापार में भी बढ़ोतरी हो सकती है. इससे भारत को तेल और गैस के एक बड़ा बाज़ार तक पहुँच मिल जाएगी.
-भारत एक्सप्रेस