

7 मई की आधी रात के बाद भारत ने आतंक के खिलाफ अपनी अब तक की सबसे साहसी सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया. “ऑपरेशन सिंदूर” नाम की इस जवाबी कार्रवाई की शुरुआत उस वक्त हुई जब जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 पर्यटकों की बेरहमी से हत्या कर दी गई. इसके बाद भारत ने पाकिस्तान के भीतर गहराई तक जाकर नौ ठिकानों को निशाना बनाया. इनमें लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के मुख्यालय मुरिदके और बहावलपुर भी शामिल थे.
एक्शन का नया अंदाज
इस बार की जवाबी कार्रवाई पहले जैसी प्रतीकात्मक नहीं थी. 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक या 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक की तुलना में ऑपरेशन सिंदूर ज्यादा सटीक, योजनाबद्ध और बहुस्तरीय था. भारत ने स्टैंड-ऑफ हथियारों, एयर-लॉन्च क्रूज़ मिसाइलों, लॉइटरिंग म्यूनिशन और लॉन्ग-रेंज ड्रोन का इस्तेमाल किया. इसका उद्देश्य सीधा था – दुश्मन की क्षमताओं को नष्ट करना और आतंकवाद को पनाह देने वाले ढांचे को गंभीर नुकसान पहुंचाना.
हिंसा की कीमत चुकानी होगी
2001 से 2016 तक भारत ने संयम की नीति अपनाई, फिर बालाकोट के साथ जोखिम उठाने की रणनीति और अब एक “नियमित जवाब” देने का दौर शुरू हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को दिए भाषण में साफ कहा – “न्यूक्लियर धमकियों से भारत नहीं डरता. अब आतंकवाद का जवाब सिर्फ सीमा पर नहीं, बल्कि उसके गढ़ में दिया जाएगा.”
अब पाकिस्तान के लिए कोई जगह सुरक्षित नहीं
इस ऑपरेशन का असर सिर्फ बमबारी तक सीमित नहीं रहा. पाकिस्तान में बैठे आतंकियों के लिए मनोवैज्ञानिक झटका और डर का माहौल बन गया है. अब लश्कर और जैश जैसे संगठनों को हर कदम सोच-समझकर उठाना होगा, क्योंकि भारत ने दिखा दिया है कि उसके लिए कोई इलाका दूर नहीं है.
आतंकी नेटवर्क पर असर
लीडरशिप टारगेटिंग: मसूद अजहर पर हमले और उसके परिवार के कई सदस्यों की मौत ने संगठन के भीतर डर और अविश्वास पैदा कर दिया है.
संसाधनों पर दबाव: अब इन्हें अपनी सुरक्षा में ज्यादा निवेश करना होगा, जिससे भारत के खिलाफ ऑपरेशन की योजना बनाना मुश्किल हो जाएगा.
मानसिक दबाव: पाकिस्तान में जिन्हें अब तक ‘सुरक्षित पनाहगाह’ माना जाता था, वे अब खतरे में हैं. प्रशिक्षण, भर्ती और लॉजिस्टिक्स जैसे बुनियादी काम भी अब जोखिम भरे बन गए हैं.
इजराइल से तुलना क्यों हो रही है?
भारत की यह रणनीति इजराइल की “मौइंग द ग्रास” नीति से मिलती-जुलती है – यानी दुश्मन को पूरी तरह खत्म करने की जगह, समय-समय पर उसकी ताकत को काटते रहना. जैसे इजराइल हमास और हिज्बुल्ला से शांति की उम्मीद नहीं करता, वैसे ही भारत ने अब मान लिया है कि पाकिस्तान से आतंकवाद खत्म नहीं होगा – लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है.
चुनौतियां क्या हैं आगे?
गुप्त रूप से छिपना: आतंकियों को अब लगातार छिपकर रहना होगा, जिससे उनकी कार्यक्षमता कम हो सकती है, लेकिन भारत की खुफिया क्षमताओं को और मजबूत करना होगा.
देश की उम्मीदें: मोदी सरकार की कड़ी नीति से लोगों की उम्मीदें बढ़ी हैं. हर हमले के बाद जवाब की मांग अब आम हो गई है.
राजनीतिक और कूटनीतिक संतुलन: सिर्फ सैन्य जवाबी कार्रवाई काफी नहीं होगी. भारत को आर्थिक, कूटनीतिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान पर दबाव बनाना होगा – जैसे आतंकवाद की फंडिंग रोकना या सिंधु जल संधि जैसे मुद्दों पर रणनीतिक फैसले लेना.
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-भारत एक्सप्रेस
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