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भारतीय नौसेना होगी और मजबूत, भारतीय और जर्मन फर्मों के बीच पनडुब्बियों के निर्माण के लिए 42,000 करोड़ रुपये का करार

रक्षा शिपयार्ड मझगांव डॉक्स (एमडीएल) और जर्मन कंपनी थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (TKMS ) के बीच बुधवार को पनडुब्बी उत्पादन में सहयोग करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए.

Rajnath Singh

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (फोटो फाइल).

तेजी से विकास के पथ पर अग्रसर भारत की सेना दुनिया के विशालतम सेनाओं में से एक है. सेना को आधुनिकतम हथियारों और तकनीक से लैस करने के लिए सरकार द्वारा तेजी से कार्य किए जा रहे हैं. इसी क्रम में रक्षा शिपयार्ड मझगांव डॉक्स (एमडीएल) और जर्मन कंपनी थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (TKMS ) के बीच बुधवार को पनडुब्बी उत्पादन में सहयोग करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए, जिसमें नौसेना के लिए 42,000 करोड़ रुपये के 6 डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के निर्माण का कार्य भी शामिल है. इस “गैर-बाध्यकारी और गैर-वित्तीय” समझौता ज्ञापन पर जर्मन रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए.

TKMS के साथ संयुक्त परियोजना

एमओयू के अनुसार, TKMS पनडुब्बियों की इंजीनियरिंग और डिजाइन के साथ-साथ इस संयुक्त परियोजना के लिए परामर्श सहायता में योगदान देगा. बदले में एमडीएल पनडुब्बियों के निर्माण और आपूर्ति की जिम्मेदारी लेगी. स्पैनिश फर्म नवांटिया और दक्षिण कोरियाई देवू ‘प्रोजेक्ट-75 इंडिया’ परियोजना की दौड़ में अन्य विदेशी दावेदार हैं, जिसे पहली बार नवंबर 2007 में भारतीय रक्षा मंत्रालय द्वारा “आवश्यकता के लिए स्वीकृति” प्रदान की गई थी.

P-75I को मई 2017 में घोषित “रणनीतिक साझेदारी” नीति के तहत पहली परियोजना माना जाता है, लेकिन इसमें काफी देरी हुई है. जुलाई 2021 में अंततः जारी वैश्विक निविदा के तहत, MDL या निजी लार्सन एंड टुब्रो शिपयार्ड को विदेशी सहयोग से जमीन पर हमला करने वाली क्रूज मिसाइलों और वायु-स्वतंत्र प्रणोदन (AIP) दोनों के साथ छह स्टील्थ पारंपरिक पनडुब्बियों के निर्माण के लिए चुना जाएगा. कई बार तारीख बढ़ाने के बाद अब वाणिज्यिक-तकनीकी बोलियां एक अगस्त तक जमा करनी होंगी. रक्षा क्षेत्र में होने वाले इन सौदों में फ्रांसीसी और रूसी कंपनियां दौड़ से बाहर हैं, क्योंकि उनके पास एआईपी परिचालन वाली पनडुब्बियां नहीं हैं.

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एक दशक का लगेगा समय

बता दें कि इस अनुबंध पर हस्ताक्षर होने के बाद ऐसी पहली पनडुब्बी को तैयार होने में लगभग एक दशक का समय लगेगा. एमडीएल में 23,000 करोड़ रुपये से अधिक `प्रोजेक्ट -75′ के तहत निर्मित छह नई फ्रांसीसी मूल की स्कॉर्पीन पनडुब्बियों के अलावा, नौसेना अपने पारंपरिक पानी के नीचे के बेड़े में सिर्फ छह पुरानी रूसी किलो-क्लास और चार जर्मन एचडीडब्ल्यू पनडुब्बियों से काम चला रही है. वहीं चीन के पास 50 से अधिक डीजल-इलेक्ट्रिक और 10 परमाणु पनडुब्बी हैं. यह पाकिस्तान को AIP के साथ आठ नई युआन-श्रेणी की डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों की आपूर्ति भी कर रहा है.

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