आईआईटीएम, पुणे
Indian Ocean: कई सालों से हम ये महसूस कर रहे हैं कि जब बारिश होनी चाहिए तब बारिश नहीं होती, जब बर्फ गिरनी चाहिए तब पहाड़ी इलाकों में सन्नाटा पसरा रहता है. पहले बारिश इस तरह होती थी कि किसानों को पता होता था कि किस समय किस फसल को लगाना है और बारिश वाली फसल के लिए पर्याप्त पानी भी मिल जाता था, तब न ट्यूबबेल की जरूरत होती थी और न ही नदियों का सहारा लेना पड़ता था लेकिन इधर कई सालों से मौसम ने कुछ यूं करवट ली है कि किसानों के साथ ही पूरा मानव त्रस्त है. गर्मी भी इतनी भीषण पड़ती है कि एसी-कूलर तक सब फेल हो जाते हैं.
इस मौसम को लेकर एक रिपोर्ट सामने आ रही है. पुणे स्थित भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल के नेतृत्व में एक अध्ययन किया गया है जिसमें बताया गया है कि हिंद महासागर में वर्ष 2020 और 2100 के बीच समुद्री सतह के 1.4 डिग्री सेल्सियस से तीन डिग्री सेल्सियस तक गर्म होने की उम्मीद है. रिपोर्ट में बताया गया है कि इसकी वजह से चक्रवात में तेजी आएगी और ये मानसून को प्रभावित करेगा साथ ही समुद्र के जल स्तर को भी बढ़ाएगा.
खत्म हो जाता है मूंगों का रंग
अध्ययन में ये भी बताया गया है कि समुद्री ‘हीटवेव’ (समुद्र के तापमान के असमान्य रूप से अधिक रहने की अवधि) के प्रतिवर्ष 20 दिन (1970-2000) से बढ़कर प्रतिवर्ष 220-250 दिन होने का अनुमान है, जिससे उष्ण कटिबंधीय हिंद महासागर 21वीं सदी के अंत तक स्थायी ‘हीटवेव’ स्थिति के करीब पहुंच जाएगा. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि समुद्री हीटवेव बढ़ने की वजह से मूंगों का रंग खत्म हो जाता है, समुद्री घास नष्ट हो जाती है और जलीय पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचता है. इसके दुष्परिणाम को लेकर रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे मत्स्य पालन क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. यह चक्रवात के कम अवधि में जोर पकड़ने की भी एक प्रमुख वजह है.
एक परमाणु बम विस्फोट जैसी होगी ऊर्जा
बता दें कि इस अध्ययन रिपोर्ट का शीर्षक ‘उष्णकटिंबंधीय हिंद महासागर के लिए भविष्य के पूर्वानुमान’है. रिपोर्ट को लेकर कोल ने कहा कि हिंद महासागर के जल का तेजी से गर्म होना केवल इसके सतह तक सीमित नहीं है. रिपोर्ट में बताया गया है कि हिंद महासागर में उष्मा की मात्रा सतह से 2,000 मीटर की गहराई तक वर्तमान में 4.5 जेटा जूल प्रति दशक की दर से बढ़ रही है और इसमें भविष्य में 16-22 जेटा-जूल प्रति दशक की दर से वृद्धि होने की सम्भावना है. रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि उष्मा की मात्रा में भविष्य में होने वाली वृद्धि एक परमाणु बम (हिरोशिमा में हुए) विस्फोट से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा के समान होगी. कोल ने आगे बताया कि अधिकतम ‘वार्मिंग’ अरब सागर सहित उत्तर पश्चिम हिंद महासागर में होगी, जबकि सुमात्रा और जावा के तटों पर कम ‘वार्मिंग’ होगी.
-भारत एक्सप्रेस
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