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रामचरितमानस की एक एक चौपाई में हैं तुलसी के हृदय के उदगार- डॉ. दिनेश शर्मा

Dinesh Sharma: पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा कि कहा कि संत नरहरिदास ने इसके बाद तुलसी का पालन पोषण किया था।उन्होंने बताया कि तुलसी के जीवन को बदलने का काम उनकी पत्नी ने किया।

दिनेश शर्मा (फोटो फाइल)

Lucknow News: श्री रामलीला समिति ऐशबाग एवं संत गाडगे सभागार में तुलसी जयंती एवं अवधी दिवस के अलग-अलग तुलसी जयन्ती के कार्यक्रमों में बोलते हुए उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा कि आज का दिन सबसे अधिक महत्वपूर्ण इसलिए है कि तुलसीदास ने पृथ्वी से सूर्य की दूरी के बारे में एक दोहा लिखा था जिसमें उल्लेखित दूरी को अमेरिका के नासा ने भी सही बताया है और आज ही चन्द्रयान-3 चन्द्रमा की धरती पर सफलतापूर्वक उतरा है। सभी वैज्ञानिकों एवं इसरो से संबंधित अधिकारियों को बधाई देश के प्रधानमंत्री मोदी भी विशेष तौर पर बधाई और साधुवाद के पात्र हैं जिनकी प्रेरणा से भारत नित्य नई ऊंचाइयां छू रहा है।उन्होंने कहा कि देश के महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रन्थों में अंतरिक्ष के विज्ञान एवं खगोल शास्त्र के बारे बहुत सुन्दर तरीके से लिखा गया है।उनका कहना था कि तुलसी जयन्ती पर तुलसी का स्मरण किया जाता है।तुलसी के जन्म के बारे में अलग अलग मत हैं इसलिए उनका यहा पर उल्लेख करना उचित नही है।

तुलसीदास का जब जन्म हुआ तो नक्षत्र सही नही था तथा उनका जन्म 12 महीने के गर्भधारण करने के बाद हुआ ऐसा कहा जाता है । जब उनका जन्म हुआ तो उनके मुंह में सभी 32 दांत थे और उनके मुंह से राम शब्द निकला।चूंकि उनके पिता आत्माराम स्वयं ज्येातिषी थे इसलिए उन्होंने खराब मुहूर्त में उत्पन्न हुए उस बालक को घर में रखने की जगह घर की सेविका को दे दिया।इधर सेविका उसे लेकर गई उधर उनकी माता हुलसी का निधन हो गया।उन्होंने कहा कि अशुभ नक्षत्र के कारण कुछ समय बाद सेविका का भी निधन हो गया। कहा तो यह जाता है स्वयं भगवान शंकर और माता पार्वती का आदेश तुलसी को पालने के लिए आया था।

पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा कि कहा कि संत नरहरिदास ने इसके बाद तुलसी का पालन पोषण किया था।उन्होंने बताया कि तुलसी के जीवन को बदलने का काम उनकी पत्नी ने किया। विवाह के बाद जब तुलसी एक बार अपनी पत्नी के पास उस समय पहुंचे जब वह अपने मायके में थी तो उनकी पत्नी ने उनसे कहा था कि वे जितना स्नेह उनसे करते हैं उतना यदि भगवान श्रीराम से करते तो उन्हें मोक्ष प्राप्त होता और उनका जीवन धन्य हो जाता। पत्नी का यही वाक्य तुलसी के जीवन की दिशा बदलने का कारण बन गया।

तुलसी शोध संस्थान ऐशबाग एवं बौद्ध शोध संस्थान के सभागार में अवधी विकास संस्थान द्वारा तुलसी जयन्ती कार्यक्रम के अवसर पर आयोजित अवधी कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह में अपना वक्तव्य जारी रखते हुए डॉ. शर्मा ने कहा कि वे एक प्रसंग की प्रासांगिता पर जाने की जगह जैसा सुना उसे यहां कह रहे हैं। ।उन्होंने कहा कि कहा जाता है उसकी चर्चा भी होती है कि श्रीराम के जीवन का चरित्र पहली बार हनुमान जी ने लिखा था तथा वे उसे लेकर महर्षि बाल्मीकि के पास गए थे । उन्होंने महर्षि बाल्मीकि से अनुरोध किया था कि वे इसमें यदि कोई त्रुटि हो तो ठीक कर दें।कहा तो यह जाता है कि महर्षि बाल्मीकि उस ग्रन्थ को नौका विहार करते समय चन्द्रमा की रोशनी में पढ़ा था तथा पढ़ते पढ़ते वे इतने भाव विभोर हो गए थे िकवह ग्रन्थ उनके हाथ से पानी में गिर गया था अैार नष्ट हो गया था।इससे बजरंगबली को बड़ा दुख हुआ और उन्होंने बाल्मीकि से कहा कि अब यह उन्हें कंठस्थ हो गया होगा इसलिए वे इसे लिपिबद्ध करें किंतु लिपिबद्ध करने के पहले बाल्मीकि का शरीर पूरा हो गया ।

उक्त प्रसंग को जारी रखते हुए डॉ. शर्मा ने कहा कि कहीं-कहीं यह संदर्भ आता है कि आचार्य तुलसी दास जी जब 77 वर्ष के हो गए तो एक बार वे चित्रकूट में विचरण कर रहे थे । उनके हाथ में लोटे में पानी था ।उन्होंने उसे जब एक सूखे वृक्ष में डाल दिया तो वह वृक्ष हरा भरा हो गया उसमें एक यक्ष प्रगट हुए जिन्होंने उनसे वरदान मांगने को कहा। तुलसी ने उससे कहा कि वे राम जी के जीवन का चरित्र वर्णन लिखना चाहते हैं इसमें उन्हें कहां से मदद मिलेगी।यक्ष ने कहा कि यह कार्य हनुमान जी ही कर सकते हैं और जहां राम कथा हो रही हो वहां जो व्यक्ति सबसे पहले आए और बाद में जाए वही हनुमान जी हो सकते हैं। इस कथा के वर्णन की सत्यता की चर्चा हम नहीं करते लेकिन कुछ लोग इसका उल्लेख करते हैं इसके बाद तुलसी की कथा में एक व्यक्ति ब्राह्मण के वेश में कथा में पहले आया और जब अन्त तक बैठा रहा तो तुलसी उसके चरण पकड़ लिए और समझ गए कि वे ही श्री हनुमान हैं और उससे रामकथा कहने का अनुरोध किया ।

पूर्व उपमुख्यमंत्री ने आगे कहा कि हनुमान जी ने तुलसी से श्रीराम को अन्तर्मन से स्मरण करने को कहा किंतु दो बार राम के आने के बावजूद वे उन्हें पहचान न सकें। इसके बाद उन्होंने तोते के रूप में बताया। जिस समय तोते ने उन्हें बताया उस समय तुलसी चन्दन घिस रहे थे और इसीलिए कहा जाता है कि ’’’चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर। तुलसीदास चन्दन धिसे तिलक देत रघुबीर।”इसके बाद वे श्रीराम के चरणों में गिर जाते हैं और राम उन्हें आशीर्वाद देकर अंतध्र्यान हो जाते हैं।’इस प्रसंग की प्रामाणिकता पर जाने की जगह उसे प्रस्तुत लोगों की जानकारी के लिए कह रहे है। जो कथाओं में अलग-अलग तरह से प्रचलित है।

डॉ. शर्मा ने बताया कि तुलसी ने रामचरित मानस की रचना दो साल 7 महीना 26 दिन में की थी। जब वे उसे पूरी कर चुके तो रात में वे उसे बाबा विश्वनाथ के धाम में उसे रख आए। कहा जाता है कि जब वे उसे लेने सुबह पहुंचे तो उसमें लिखा था “सत्यम शिवम सुन्दरम”।बाद में तुलसीदास उसे लेकर आ गए।उन्होंने बताया कि कहा तो यह जाता है कि ऐशबाग की प्राचीन रामलीला में तुलसीदास जी के शिष्यों द्वारा इस मंच पर सबसे पहले रामलीला का मंचन किया गया था।इससे बढकर तुलसी जयन्ती और नही मनाई जा सकती।डा0 शर्मा ने आज अयोध्या शेाध संस्थान व संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश शासन के सहयोग से अवधी विकास संस्थान द्वारा आयोजित तुलसी जयन्ती समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में सहभागिता की । कार्यक्रम के आयोजक विनोद मिश्रा एवं संचालक प्रसिद्ध हास्य कवि सर्वेश अस्थाना थे इस अवसर पर वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अखिलेश मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार वासेंद्र विश्व आईआरएस अधिकारी नंदेश्वर सिंह लव कुश त्रिवेदी एवं  दिनेश सहगल राजेश पांडे प्रफुल पांडे जगमोहन रावत तरुण सिंह पाठक को सम्मानित किया गया इसी प्रकार श्री रामलीला समिति ऐशबाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में आयोजक हरिश्चंद्र अग्रवाल तथा संचालक आदित्य द्विवेदी थे इस अवसर पर प्रसिद्ध अवधी कवि राम कुमार तिवारी, कमलेश मौर्य, दिनेश अवस्थी को सम्मानित किया गया।

– भारत एक्सप्रेस

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