
राज्यसभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर लोकसभा में उपाध्यक्ष की नियुक्ति की मांग की है.
खरगे ने अपने पत्र में लिखा है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली लोकसभा से लेकर सोलहवीं लोकसभा तक, हर कार्यकाल में लोकसभा के उपाध्यक्ष की नियुक्ति की जाती रही है. यह एक सुस्थापित संसदीय परंपरा रही है कि उपाध्यक्ष का पद मुख्य विपक्षी दल के किसी वरिष्ठ सांसद को दिया जाता है. इससे न केवल सदन की कार्यवाही में संतुलन बना रहता है, बल्कि सभी पक्षों को प्रतिनिधित्व भी मिलता है.
हालांकि, सत्रहवीं लोकसभा (2019–2024) में उपाध्यक्ष पद पर कोई नियुक्ति नहीं हुई. अब जब अठारहवीं लोकसभा का गठन हो चुका है, तब भी यह पद रिक्त है. यह भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार हुआ है कि लगातार दो लोकसभा कार्यकालों तक यह महत्वपूर्ण संवैधानिक पद खाली रहा है. मल्लिकार्जुन खरगे ने इसे “चिंताजनक मिसाल” बताते हुए लोकतंत्र की नींव के लिए हानिकारक करार दिया है.
लोकतंत्र की भावना पर आघात
लोकसभा उपाध्यक्ष का कार्य केवल अध्यक्ष की अनुपस्थिति में सदन की अध्यक्षता करना नहीं है, बल्कि वह पूरे सदन का प्रतिनिधि होता है और एक निष्पक्ष संचालक के रूप में कार्य करता है. उसकी अनुपस्थिति में, विशेष रूप से जब विपक्ष की भूमिका पहले से सीमित हो, संसद का संतुलन और निष्पक्षता प्रभावित होती है. इससे लोकतंत्र की कार्यप्रणाली में असंतुलन उत्पन्न होता है.
भारतीय संविधान लोकसभा में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की नियुक्ति की स्पष्ट रूपरेखा प्रदान करता है. उपाध्यक्ष की नियुक्ति को लंबे समय तक टालना या टालते रहना संविधान की भावना के प्रतिकूल है. यह स्थिति न केवल एक प्रशासनिक चूक है, बल्कि एक लोकतांत्रिक जिम्मेदारी से भी बचने का संकेत देती है.
लोकसभा उपाध्यक्ष का पद कोई औपचारिकता नहीं, बल्कि एक संवैधानिक जिम्मेदारी है. इस पद को रिक्त रखना केवल एक परंपरा का उल्लंघन नहीं है, यह भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और संविधान की मूल भावना के प्रति उदासीनता का संकेत है.
अब समय आ गया है कि प्रधानमंत्री इस विषय पर गंभीरता से विचार करें और लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखते हुए लोकसभा में उपाध्यक्ष की नियुक्ति शीघ्र सुनिश्चित करें.
-भारत एक्सप्रेस
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