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Patanjali Misleading Advertisement Case: पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन से जुड़े मामले में सुनवाई के दौरान उत्तराखंड की आयुष विभाग ने कोर्ट को बताया है कि उसने हलफनामा दाखिल कर दिया है. वही सुप्रीम कोर्ट ने कथित भ्रामक विज्ञापन मामले में वकील सादान फरासत को एमिक्सक्यूरी नियुक्त किया है. वही IMA ने कहा कि वो इस पर अपना जवाब दाखिल करना चाहते है. इसके लिए कोर्ट ने समय दे दिया है.
साथ ही IMA के अध्यक्ष अशोकन की ओर से पेश वकील ने सुप्रीम कोर्ट बताया कि उसके द्वारा कोर्ट को लेकर दिए गए अपने विवादित बयान के लिए अपने वेबसाइट, मैगजीन और PTI के जरिए बिना शर्त माफी मांग ली है. कोर्ट 6 अगस्त को इस मामले में अगली सुनवाई करेगा. जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच सुनवाई कर रही है. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने आईएमए अध्यक्ष से पूछा था कि आपने भी सार्वजनिक माफी क्यों नहीं मांगी? सब कुछ काले और सफेद रंग में लिखा गया था. अगर आप वास्तव में माफी मांगना चाहते थे तो आपने संशोधन माफीनामा क्यों नहीं दायर किया?
बता दें कि आचार्य बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल करते हुए कहा कि आईएमए अध्यक्ष डॉक्टर आर. वी. अशोकन के जानबूझकर दिए गए बयान तात्कालिक कार्यवाही में सीधा हस्तक्षेप है और न्याय की प्रक्रिया में दखलंदाजी करते है. उन्होंने अशोकन के बयान को निंदनीय प्रकृति का बताया और कहा कि यह टिप्पणी जनता की नजर में इस माननीय न्यायालय की गरिमा और कानून की महिमा को कम करने का एक स्पष्ट प्रयास है. बालकृष्ण की अपनी याचिका में अशोकन के खिलाफ कानून के अनुरूप कार्रवाई की मांग की है.
आईएमए के अध्यक्ष अशोकन ने एक न्यूज चैनल से बातचीत करते हुए कहा था कि ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है, कि सुप्रीम कोर्ट ने आईएमए और प्राइवेट डॉक्टरों की प्रैक्टिस की आलोचना की. उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ बयानों ने प्राइवेट डॉक्टरों का मनोबल कम किया है और हमें ऐसा लगता है कि उन्हें देखना चाहिए था कि उनके सामने क्या जानकारी रखी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम के लिए यह भी कहा कि प्रख्यात और सार्वजनिक हस्तियों को किसी उत्पाद का समर्थन करने के दौरान जिम्मेदाराना व्यवहार करना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि किसी विज्ञापन को जारी करने की अनुमति देने से पहले, केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के अनुसार विज्ञापनदाताओं से एक स्व घोषणा पत्र हासिल किया जाए. वर्ष 1994 के इस कानून का नियम-7 एक विज्ञापन संहिता का प्रावधान करता है, जिसमें कहा गया है कि विज्ञापन देश के कानूनों के अनुरूप बनाये जाने चाहिए. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा 2022 में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि पतंजलि और योग गुरु रामदेव ने कोविड टीकाकरण और चिकित्सा की आधुनिक प्रणालियों को बदनाम करने का अभियान चलाया. कोर्ट ने पतंजलि के उत्पादों के बारे में भ्रामक विज्ञापनों की आलोचना की. इन विज्ञापनों को अब निषिद्ध कर दिया गया है, लेकिन वे विभिन्न इंटरनेट चैनलों पर अब भी उपलब्ध है.
-भारत एक्सप्रेस