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जरूरत पड़ने पर सार्वजनिक हित के लिए किया जा सकता है निजी संपत्ति का इस्तेमाल- सुप्रीम कोर्ट

चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 9 जजों की संविधान पीठ इस पर विचार कर रही है कि क्या किसी की निजी संपत्ति को संविधान के आर्टिकल 39 बी के तहत ‘सामुदायिक भौतिक संसाधन’ माना जा सकता है.

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट

निजी संपत्ति को समुदाय का भौतिक संसाधन मानने को लेकर 32 साल पुरानी याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निजी संपत्ति का इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर सार्वजनिक हित के लिए भी किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा ये मानना गलत होगा कि किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति को आर्टिकल 39 बी के तहत सामुदायिक भौतिक संसाधन नहीं माना जा सकता और सरकार इसका वितरण आम लोगों की भलाई के लिए नहीं कर सकती.

CJI ने की गांधीवादी विचारधारा की हिमायत

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने गांधीवादी विचारधारा की हिमायत की. सीजेआई ने कहा कि संविधान के नीति निर्देशक तत्व गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित है.  सीजेआई डीवाई चंद्रचुड़ ने अपनी टिप्पणी में पूंजीवादी, समाजवादी विचारधारा का जिक्र किया. सीजेआई कहा कि पूंजीवादी विचारधारा जहां संपत्ति के निजी स्वामित्व पर जोर देती है, वही समाजवादी विचारधारा यहां तक कहती है कि कोई संपत्ति निजी संपत्ति नहीं है, सभी संपत्ति समाज की है. सीजेआई ने कहा कि हमारे नीति निर्देशक तत्व गांधीवादी विचारधारा का अनुकरण करते हैं. हम न तो अति पूंजीवाद और न ही अति समाजवादी विचारधारा को अपनाते है. हम सोशलिस्ट मॉडल की उस हद तक नहीं जाते हैं जहां कोई निजी संपत्ति नहीं होती. हम संपत्ति उसे मानते है जिसे हम आने वाली पीढ़ी को सुपुर्द करने के लिए संजो कर रखते है. पर आज की पीढ़ी के लिए जो सम्पति हम रखते है, वो इस विश्वास के साथ भी संजो कर रखी जाती है कि वो आने वाले कल में समाज के व्यापक हितों के लिए इस्तेमाल हो पाएगी.

निजी संपत्ति से जुड़े मामले पर विचार

चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 9 जजों की संविधान पीठ इस पर विचार कर रही है कि क्या किसी की निजी संपत्ति को संविधान के आर्टिकल 39 बी के तहत ‘सामुदायिक भौतिक संसाधन’ माना जा सकता है और क्या इसका इस्तेमाल सरकार सार्वजनिक हित के लिए कर सकती है. आर्टिकल 39 बी में कहा गया है कि सरकार अपनी नीति ऐसी बनाएगी कि सामुदायिक भौतिक संसाधनों का वितरण ऐसे हो कि जिससे आम जनता का हित सध सके.

मामले की सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल एन वेंकटरमणी ने कहा कि हम एक समाज के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आयामों के इस समामेलन के बारे में बात कर रहे हैं. लंबे समय से हमारे बीच यह संवाद था कि नागरिक और राजनीतिक अधिकारों को सामाजिक और आर्थिक अधिकारों पर प्राथमिकता दी जाएगी, लेकिन यह सब मानवाधिकार के अंतर्गत आता है. वे सभी एक सामान्य मानवाधिकार प्रयास का हिस्सा हैं. इसलिए इसके बीच अंतर्संबंध था. इसलिए अगर 39बी को एक प्राकृतिक मौत मरना था, तो एक बार मार्क्सवाद मर गया. यह एक अलग उत्तर है. एजी ने मुस्कुराते हुए आगे कहा कि मुझे नहीं लगता कि हम शायद इसका जवाब देना चाहते हैं. वैसे भी इस बात पर विवाद था कि मार्क्सवाद मर गया है या नहीं, शुक्र है कि सीजेआई को गांधीजी का मुद्दा मिल गया. जब गांधीजी ने एक बहुत ही दिलचस्प प्रस्ताव रखा था तो बड़ी मात्रा में आलोचना हुई थी. इसमें काफी संभावनाएं थीं. क्योंकि वहां मार्क्सवादियों ने गांधीजी की यह कहते हुए आलोचना की थी कि वे मार्क्सवादी अभिव्यक्ति उधार लेने के लिए पूंजीपति वर्ग के हित की सेवा कर रहे हैं.

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सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में 30 अप्रैल को भी सुनवाई जारी रहेगा. पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कहना खतरनाक होगा कि किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति को समुदाय का भौतिक संसाधन नही माना जा सकता है और सार्वजनिक भलाई के लिए राज्य द्वारा उसका अधिग्रहण नही किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों को जर्जर इमारतों को अपने कब्जे में लेने का अधिकार देने वाला महाराष्ट्र का कानून वैध है या नही, यह पूरी तरह से अलग मुद्दा है और इसका फैसला स्वतंत्र रूप से किया जाएगा.



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