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राहुल गांधी का संगठन सृजन अभियान — क्या 1970 के दशक की कांग्रेस आज की राजनीति में हो पाएगी सफल?

राहुल गांधी कांग्रेस संगठन में बड़े बदलाव की अगुवाई कर रहे हैं. ‘शादी के घोड़े’ से ‘रेस के घोड़े’ तक की उनकी नई रणनीति का उद्देश्य निष्क्रिय नेताओं को हटाकर जमीनी कार्यकर्ताओं को आगे लाना है.

Rahul Gandhi
Edited by Akansha

भाजपा के विजय रथ को थामने के उद्देश्य से कांग्रेस ने यह साल पूरी तरह संगठनात्मक सुधार और आंतरिक लोकतंत्र के पुनरुत्थान को समर्पित करती नजर आ रही है.  इस परिवर्तन का नेतृत्व खुद विपक्ष के नेता राहुल गांधी कर रहे हैं. संसद में मुखर भूमिका निभाने के साथ-साथ वह ग्रामीण भारत में जमीनी दौरे कर रहे हैं — सिर्फ प्रचार के लिए नहीं, बल्कि निष्क्रिय और समझौतावादी नेताओं को पहचानने और संगठन से बाहर करने के लिए.

‘शादी के घोड़े’ से ‘रेस के घोड़े’ तक: राहुल गांधी की नई राजनीतिक भाषा

गुजरात दौरे के बाद राहुल गांधी ने खुलकर माना कि पार्टी को राज्य में पीछे धकेलने वाले ‘शादी के घोड़े’ हैं — ऐसे नेता जो सिर्फ रस्म अदायगी करते हैं, लेकिन जमीनी काम से दूर हैं. उनका मानना है कि अब वक्त आ गया है ‘रेस के घोड़ों’ पर दांव लगाने का — यानी वे कार्यकर्ता और नेता जो वाकई परिवर्तन ला सकते हैं.

अब उनके शब्दकोश में नया शब्द जोड़ा है — ‘अपंग घोड़े’, उन नेताओं के लिए जो निष्क्रिय, अप्रभावी और संगठन के लिए बोझ बन चुके हैं. भोपाल में हालिया संबोधन में उन्होंने साफ किया: “ऐसे नेताओं के लिए अब कांग्रेस में कोई जगह नहीं है.”

कांग्रेस अब 1970 के दशक की इंदिरा गांधी मॉडल की वापसी कर रही है — लेकिन इस बार विकेंद्रीकरण के साथ.

गुजरात को इस अभियान का पायलट प्रोजेक्ट बनाया गया है, जहां जिला कांग्रेस समितियों (DCC) की नियुक्ति लगभग पूरी हो चुकी है. इसी मॉडल को अब मध्य प्रदेश, हरियाणा और ओडिशा में लागू किया जा रहा है.

सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी खुद इन नियुक्तियों की व्यक्तिगत निगरानी कर रहे हैं. लक्ष्य है — संगठन की जड़ों को मज़बूत बनाना, न कि सिर्फ ऊपर से सुधार करना. हालांकि अभियान में जोश है, लेकिन सवाल भी हैं.

गुजरात से कांग्रेस विधायक जिग्नेश मेवाणी ने हाल ही में सोशल मीडिया पर सवाल उठाया अगर यह पूरी प्रक्रिया पारदर्शी है, तो अक्षम नेता अब भी संगठन के शीर्ष पदों पर क्यों हैं?” यह सवाल दिखाता है कि राहुल गांधी की राह आसान नहीं है. पुराने गुट, पदलोलुप नेता और अंदरूनी जयचंद अब भी कांग्रेस के कायाकल्प में सबसे बड़ी बाधा हैं.

आगामी समय में छह राज्यों में चुनाव होने हैं. कांग्रेस को उम्मीद है कि यह संगठनात्मक सुदृढ़ीकरण उसे भाजपा के खिलाफ मज़बूत विकल्प बनाएगा. लेकिन क्या 1970 के दशक का मॉडल 2025 की राजनीति में भी कारगर होगा? राहुल गांधी को अब न सिर्फ सही घोड़ों पर दांव लगाना है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि ट्रैक पर दौड़ते वक्त कोई ‘अपंग घोड़ा’ रेस न बिगाड़ दे.

-भारत एक्सप्रेस 



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