सात साल पहले महंगे डेटा युग में जब रिलायंस जियो ने साल भर फ्री सेवा के साथ प्रवेश किया तो डेटा के क्षेत्र में एक अलग क्रांति आ गई. कह सकते हैं कि उस समय महंगे डेटा का युग समाप्त होता दिखा था. हालांकि, अन्य कंपनियों ने भी प्रतिस्पर्धा की इस लड़ाई में कई नए प्लान लान्च किए. लेकिन देश के डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्टर में जियो की भूमिका बढ़ती गई. इसने सस्ते इंटरनेट के जरिए आम इंसान की जिंदगी की प्राथमिकताओं को बदलने का काम किया. एक नजर जियो के इस सफर पर.
सस्ते डेटा युग का आरंभ
5 सितंबर 2016 को अपने लॉन्च के पहले ही दिन रिलायंस जियो ने आउटगोइंग कॉल फ्री करते हुए रोजाना के लिए भरपूर डेटा देना शुरु कर दिया. जियो के बाजार में आने से पहले औसतन 255 रुपए प्रति जीबी की दर से मिलने वाला डेटा 10 रुपए से भी कम कीमत पर मिलने लगा. डेटा खपत में दुनिया में 155वें नंबर पर आने वाला भारत आज पहले दो में शामिल है.
ऑनलाइन होती दुनिया
ऑनलाइन होटल बुकिंग से लेकर ई-कॉमर्स तक हर चीज छोटे से मोबाइल में सिमट गई. कोरोना काल में जब हर चीज ऑनलाइन थी तब इसकी कम कीमतों ने बड़ी राहत दी. इसी दौरान डिजिटल पेमेंट का उपयोग बढ़ना शुरु हो गया.
साल 2017 में कंपनी द्वारा जियोफोन लाया गया. इसने 2जी ग्राहकों को 4जी में तेजी से बदलना शुरु कर दिया. गांव तक इसके नेटवर्क की पहुंच और सस्ती सेवा ने एक तरह से गावों का डिजिटलीकरण कर दिया.
डिजिटल इकोनॉमी में खास भूमिका
जियो की लॉन्चिंग से पहले देश में जहां केवल सिर्फ 4-5 यूनीकॉर्न थे वहीं अब इनकी संख्या 108 हो गई है. बता दें कि 1 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्यांकन वाले स्टार्टअप्स को यूनीकॉर्न कहते हैं. इनमें से अधिकांश डिजिटल इकोनॉमी का भाग हैं और जियो ने इसमें खास भूमिका निभाई है. भारतीय अर्थशास्त्रियों ने इस बात की आशा व्यक्त की है कि भारतीय डिजिटल इकोनॉमी जल्द ही 1 ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा पार कर सकती है.
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भविष्य की योजनाएं
तेजी से बढ़ती तकनीक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को मुहैया कराने की बात हाल ही में मुकेश अंबानी द्वारा कही गई है. 5जी स्पीड पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भारतीय नागरिकों के विकास के लिए काफी अहम साबित हो सकती है.