तत्कालीन अमेरिकी प्रेसिडेंट जॉर्ज डब्ल्यू बुश के साथ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए लिया गया एक साहसिक और ऐतिहासिक निर्णय आज भी याद किया जाता है – भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता. यह कदम न केवल भारत के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था, बल्कि भारत और अमेरिका के रिश्तों को भी नई दिशा देने वाला था. हालांकि, इसे लागू करने में डॉ. सिंह को कई राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और नेतृत्व ने उन्हें इन मुश्किलों से पार पाने में मदद की.
यूपीए सरकार चलाने के दौरान उन्हें राजनीतिक दलों और वामपंथी पार्टियों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा. हालांकि, उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की मदद से कुछ दलों का समर्थन हासिल कर लिया.
राजनैतिक विरोध के बावजूद हासिल की सफलता
वामपंथी दलों ने इस समझौते का पुरजोर विरोध किया और सरकार से समर्थन वापस ले लिया. समाजवादी पार्टी ने पहले वामपंथियों का साथ दिया, लेकिन बाद में उसने अपना रुख बदल लिया. इसके बावजूद, सिंह की सरकार ने विश्वास प्रस्ताव में सफलता हासिल की.
भारत-अमेरिका रिश्तों को किया मजबूत
मनमोहन सिंह और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने 18 जुलाई 2005 को इस समझौते की घोषणा की. यह समझौता औपचारिक रूप से अक्टूबर 2008 में लागू हुआ. यह भारत के लिए एक बड़ी जीत थी. इस समझौते ने भारत और अमेरिका के रिश्तों को मजबूत किया.
संजय बारू ने अपनी किताब में किया जिक्र
संजय बारू ने अपनी किताब “द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर: द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह” में लिखा, “परमाणु समझौते पर मनमोहन सिंह के निर्णय ने सोनिया गांधी के प्रति उनकी अधीनता की छवि को मिटा दिया. बारू के मुताबिक, इस फैसले के बाद लोगों ने उन्हें एक मजबूत नेता के रूप में देखा. उन्होंने इस समझौते को डॉ. सिंह का सबसे बड़ा गौरव माना.
-भारत एक्सप्रेस
इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.