देश के राजनीतिक इतिहास के पन्नों से आज हम एक ऐसे अध्याय से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं, जिसके बारे में चर्चा करने से उस जमाने में लोग बचा करते थे. हालांकि ये घटना ऐसी थी कि दबे पांव पूरी देश में जंगल की आग की तरह फैल गई थी और इसका शोर विदेशों तक में भी सुनाई दिया था.
ये बात देश में आपातकाल यानी इमरजेंसी (Emergency) लागू होने से थोड़े पहले की है और यह उस दौर की सबसे ताकतवर राजनीतिक हस्ती से जुड़ी हुई है. इमरजेंसी से आप समझ ही गए होंगे कि किसकी बात हो रही है. ये वाकया देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) से जुड़ा हुआ है.
इमरजेंसी के दौरान एक अमेरिकी पत्रकार को भारत से निर्वासित कर दिया गया था. पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित इस पत्रकार का नाम लुईस एम. सिमंस (Lewis M. Simons) है. ये अब लगभग 85 वर्ष के हैं. इमरजेंसी लागू होने से पहले तक वह दिल्ली में अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट के संवाददाता हुआ करते थे.
ये कहानी इस पत्रकार को इंदिरा गांधी और उनके छोटे बेटे संजय गांधी (Sanjay Gandhi) से जोड़ती है. दरअसल लुईस की लिखी एक खबर ने तब राजनीतिक गलियारों के साथ पूरे देश में भूचाल ला दिया था. अपनी खबर में उन्होंने बताया था कि एक डिनर पार्टी के दौरान संजय गांधी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कई थप्पड़ मारे थे.
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हालांकि इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं और न ही कभी किसी ने सार्वजनिक तौर पर इसकी पुष्टि की है. लुईस ने इस खबर को सूत्रों के हवाले लिखा था, लेकिन वह इस बात को लेकर दृढ़ रहे हैं कि यह घटना हुई थी. उन्होंने कुछ साल पहले एक इंटरव्यू में इस बारे में विस्तार से बातचीत भी की थी.
लुईस ने साल 2015 में समाचार वेबसाइट Scroll.in के साथ दिए गए एक इंटरव्यू में बताया था कि थप्पड़ मारने की घटना इमरजेंसी लागू होने से पहले एक निजी डिनर पार्टी में हुई थी और उन्होंने इस खबर को तुरंत नहीं लिखा था. जब उनसे पूछा गया कि किस बात के कारण संजय ने ऐसा कि था तो उन्होंने बताया कि उन्हें अब यह याद नहीं कि उनके पास ऐसी जानकारी है कि किस बात ने संजय को उकसाया होगा. अब तो 40 साल से अधिक का समय (2015 तक) गुजर चुका है.
इंटरव्यू में लुईस एम. सिमंस ने बताया कि दो सूत्र थे, जो एक-दूसरे को जानते थे और जो उस डिनर पार्टी में शामिल हुए थे. उनमें से एक ने इमरजेंसी से एक शाम पहले मेरी पत्नी और मुझसे मिलने के दौरान (दिल्ली में) हमारे घर पर थप्पड़ मारने की घटना का जिक्र किया था. दूसरे ने इसकी पुष्टि की थी.
उन्होंने यह भी बताया किया कि इस खबर को अन्य विदेशी मीडिया आउटलेट्स द्वारा व्यापक रूप से उठाया गया था, जिसमें न्यूयॉर्कर पत्रिका में अत्यधिक सम्मानित लेखक वेद मेहता का एक लेख भी शामिल था.
उन्होंने बताया, ‘सूत्रों की विश्वसनीयता में कोई गड़बड़ी न थी और न रहेगी. मैंने उस पार्टी में शामिल किसी दूसरे मेहमान का इंटरव्यू नहीं लिया. जहां तक मेरी खबर की बात है तो मुझे इसे लिखने का अफसोस नहीं है. मेरा मानना है कि इसने उस समय मां और बेटे के बीच के अजीब रिश्ते पर रोशनी डाली थी, जब यह रिश्ता भारत के लोगों पर व्यापक प्रभाव डाल रहा था.’
इस बातचीत में उन्होंने यह भी कहा, ‘मेरा अपने सूत्रों की जानकारी उजागर करने का कोई इरादा नहीं है. मैंने शुरू में ही ऐसा न करने के लिए अपनी बात रखी थी, जैसा कि मैंने कई अन्य गोपनीय मामलों में किया है और मैं अपनी बात पर कायम हूं. ऐसा करना एक विश्वसनीय पत्रकार और इंसान के रूप में मेरी प्रतिष्ठा के लिए जरूरी है.’
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इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को इमरजेंसी लागू कर दिया था और 21 मार्च 1977 को इसे हटाया गया था. 1977 में इंदिरा गांधी को जनता ने सत्ता से बाहर कर दिया था. लुईस बताते हैं कि वह इन सूत्रों से इमरजेंसी से पहले, उसके दौरान और उसके बाद कई बार मिले थे.
कुछ लोगों का मानना है कि थप्पड़ कांड की खबर करने के कारण उन्हें भारत से निष्कासित कर दिया गया था. हालांकि लुईस ने स्पष्ट किया है कि इस वजह से उन्हें निष्कासन का सामना नहीं करना पड़ा, बल्कि वह खबर दूसरी थी.
वह याद करते हुए कहते हैं, ‘मुझे पांच घंटे के नोटिस पर जाने का आदेश दिया गया और जैसा कि मैंने पहले भी संकेत दिया है, मेरे निष्कासन का थप्पड़ मारने की खबर से कोई लेना-देना नहीं था, जो मैंने तब तक लिखा भी नहीं था. यह (निष्कासन) एक दूसरी खबर से संबंधित था, जिसमें भारतीय सेना के कई अधिकारियों ने मुझे इमरजेंसी लगाए जाने और उसके कारण इंदिरा गांधी के व्यवहार के प्रति अपनी नापसंदगी के बारे में बताया था.’
वे कहते हैं, ‘मुझे बिना किसी सूचना के मेरे घर/कार्यालय पर राइफल से लैस पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर इमिग्रेशन ऑफिस ले जाया गया. वहां एक अधिकारी, जिसे मैं पहले से जानता था, ने मुझे बताया कि मुझे दिल्ली से बाहर जाने वाले पहले विमान में बिठाया जाएगा.’ उनके अनुसार, अधिकारी ने इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया. फिर उन्हें बैंकॉक जाने वाले विमान में बैठा दिया गया था. वहीं, एक होटल के कमरे में उन्होंने थप्पड़ मारने की घटना की खबर लिखी थी.
उनके मुताबिक, ‘इस दौरान उनकी एक दर्जन नोटबुक जब्त कर ली गई थीं, जो उन्हें कई महीनों के बाद लौटाया गया था. इन नोटबुक में हर नाम को लाल रंग से मार्क किया गया था. बाद में पता चला कि उनमें से कई लोगों को जेल भेज दिया गया था. उन्होंने बताया, ‘इस अनुभव ने मुझे सिखाया कि किसी संवेदनशील स्टोरी को कवर करते समय कभी भी किसी का नाम नहीं लेना चाहिए.’
इमरजेंसी के दौरान भारत में उनके टेलीफोन काट दिए गए. उनकी पत्नी को उनके बैंक खातों को एक्सेस करने की अनुमति नहीं दी गई. उनके घर के बाहर सशस्त्र गार्ड तैनात कर दिए गए. मिलने आने वालों की गाड़ियों के लाइसेंस प्लेट नंबर लिखे जाते थे. उनका दावा था कि उनकी बेटियों को भी डराया गया था.
लुईस एम. सिमंस बताते हैं कि इमरजेंसी के बाद वह इंदिरा गांधी से मिले थे, तब तक उनका कार्यकाल खत्म हो गया था. मोरारजी देसाई सरकार ने उन्हें वापस लौटने के लिए आमंत्रित किया था. इंदिरा गांधी से इंटरव्यू के दौरान एक ब्रिटिश पत्रकार भी मौजूद थे, जिसे इमरजेंसी के दौरान भारत से निष्कासित कर दिया गया था.
वे कहते हैं, ‘हमने उनसे पूछा कि उन्होंने हमें क्यों निकाला. तो उन्होंने जवाब दिया कि उनका इस कार्रवाई से कोई लेना-देना नहीं है.’ वे आगे बोले, ‘मैंने उनसे थप्पड़ मारने की घटना के बारे में नहीं पूछा. मुझे लगता है, हिम्मत नहीं थी.’
लुईस इमरजेंसी के बाद की उस यात्रा के दौरान एक प्राइवेट डिनर पार्टी में राजीव गांधी और उनकी पत्नी सोनिया से भी मिले थे. वे बताते हैं, ‘शाम में डिनर टेबल पर मौजूद सभी लोगों को किसी ने बताया कि मैं वह पत्रकार हूं, जिसने थप्पड़ मारने की घटना के बारे में लिखा था. इस पर राजीव ने सिर हिलाया और मुस्कुरा दिया था. फिर मैंने उनसे इस बारे में पूछा. उन्होंने सिर हिलाया और फिर से मुस्कुराए, उन्होंने कुछ नहीं कहा. हालांकि सोनिया गुस्से में दिखीं, लेकिन उन्होंने भी कुछ नहीं कहा.’ वे कहते हैं कि वह संजय गांधी से कभी नहीं मिले.
इमरजेंसी के बाद ब्रिटिश टीवी होस्ट डेविड फ्रॉस्ट ने इंदिरा गांधी का इंटरव्यू लिया था और उनसे इमरजेंसी, चुनाव, उनके बेटे संजय गांधी की गतिविधियों, थप्पड़ मारने की घटना, उनकी मन:स्थिति और आगे की योजनाओं पर सवाल किए थे.
यह इंटरव्यू का एक अंश India Today के 15 और 31 अगस्त 1977 के एडिशन में प्रकाशित किया गया था. इस बातचीत में इंदिरा गांधी से जब थप्पड़ मारने की घटना के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा था, ‘यह – जैसा कि मेरे पिता कहते थे – एक शानदार बकवास (Fantastic Nonsense) है. मुझे अब तक अपनी जिंदगी में कभी किसी ने थप्पड़ नहीं मारा है और उसने (संजय गांधी) भी कभी किसी को थप्पड़ नहीं मारा है.’
-भारत एक्सप्रेस
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