सुप्रीम कोर्ट.
Supreme Court: कोलकाता हाई कोर्ट के 2023 के फैसले के खिलाफ पश्चिम बंगाल सहित अन्य द्वारा दायर विभिन्न याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने कोलकाता हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने जजों के लिए दिशा निर्देश जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने जजों के लिए किशोरों से जुड़े मामलों में निर्णय लिखने के तरीके के बारे में भी दिशानिर्देश जारी किया है. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइया की बेंच ने यह फैसला दिया है.
कोलकाता हाई कोर्ट ने एक आरोपी को बरी करते हुए कहा था कि नाबालिग लड़कियों को दो मिनट के मजे की जगह अपनी यौन इच्छाओं पर कंट्रोल रखना चाहिए और नाबालिग लड़कों को युवा लड़कियों और महिलाओं और उनकी गरिमा का ख्याल रखना चाहिए. इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था.
जजों निजी राय व्यक्त नहीं करना चाहिए
पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जजों को अपनी निजी राय व्यक्त नहीं करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दोषियों को बरी करना भी पहली नजर में उचित नहीं लग रहा है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एमिकस क्यूरी माधवी दिवान ने कोर्ट को सुझाव दिया था कि लड़की की क्लीनिकल काउंसलिंग कर समुचित परामर्श दिया जाना चाहिए. इसके अलावे एक रिपोर्ट बनाकर कोर्ट में पेश किया जाना चाहिए.
माता-पिता पहले शिक्षक होने चाहिए
वहीं ममता बनर्जी की सरकार ने भी 18 अक्टूबर 2023 को दिए हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी. बता दें कि पोक्सो कानून में 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ सहमति से बनाए गए यौन संबंध को भी रेप माना जाता है. अदालत ने किशोरों को यौन शिक्षा दिए जाने पर भी जोर दिया. कहा कि इसकी शुरुआत घर से होनी चाहिए. माता-पिता पहले शिक्षक होने चाहिए. बच्चों खासकर लड़कियों को Bad Touch, अश्लील इशारों के बारे में बताना जरूरी है.
कोलकाता हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में ये भी कहा था कि, हमें कभी ये नहीं सोचना चाहिए कि केवल एक लड़की ही दुर्व्यवहार का शिकार होती है. लड़के भी दुर्व्यवहार के शिकार हो सकते हैं. माता-पिता के मार्गदर्शन के अलावा, इन पहलुओं और रिप्रोडक्टिव हेल्थ और हाइजीन पर जोर देने वाली यौन शिक्षा हर स्कूल में दी जानी चाहिए.
-भारत एक्सप्रेस
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