गुजरात हाईकोर्ट में न्यायिक अधिकारियों के प्रमोशन को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मेरिट कम सीनियॉरिटी का मतलब तुलनात्मक योग्यता नहीं. 65 फीसदी कोटा के लिए न्यायिक अधिकारी के लिए उपयुक्तता मानदंड निर्धारित करना हाईकोर्ट का काम है.
अदालत ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट की पद्दोन्नति नीति में कोई दोष नहीं है. अगर इस याचिका को अनुमति दी जाती है तो 65 प्रतिशत कोटा और 10 प्रतिशत कोटा पर जिला जजों के बीच अंतर मिट जाएगा, जो सिर्फ योग्यता पर है.
फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आज इस मामले में फैसला सुनाना था, लेकिन मैं J-20 शिखर सम्मेलन के लिए ब्राजील गया था. ब्राजील से लौटने के दौरान ही मैंने विमान इंटरनेट का इस्तेमाल किया और इस दौरान जस्टिस पारदीवाला ने मेरे साथ ड्राफ्ट डॉक्यूमेंट साझा किया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रमोशन योग्यता सह-वरिष्ठता के सिद्धांत और उपयुक्तता परीक्षण पास करने के आधार पर की जानी चाहिए.
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जानें क्या था अधिकारियों के प्रमोशन वाला मामला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाईकोर्ट की सिफारिशें और बाद में सरकार द्वारा जारी अधिसूचना अवैध है. दरअसल, कांग्रेस नेता राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराने वाले न्यायिक मजिस्ट्रेट हरीश हसमुखभाई वर्मा सहित 68 न्यायिक अधिकारियों की पद्दोन्नति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इन जजों को 65 फीसदी कोटा नियम के आधार पर पद्दोन्नति दी गई थी, जिसे सीनियर सिविल जज कैडर के दो न्यायिक अधिकारियों रविकुमार मेहता और सचिन प्रताप राय मेहता ने चुनौती दी है.
याचिका में 10 मार्च को गुजरात हाईकोर्ट द्वारा जारी की गई सूची और राज्य सरकार द्वारा उनकी नियुक्ति की अधिसूचना को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. साथ ही याचिका में गुजरात हाईकोर्ट को नियुक्ति के लिए योग्यता और वरिष्ठता के आधार पर नई सूची जारी करने का निर्देश देने की भी मांग की गई थी. इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने पद्दोन्नति को गुजरात राज्य सेवा न्यायिक सेवा नियम 2005 उल्लंघन मानते हुए सूरत मुख्य न्यायिक हंसमुख भाई वर्मा समेत गुजरात के 68 लोअर न्यायिक अधिकारियों के पद्दोन्नति पर रोक लगा दी थी.
-भारत एक्सप्रेस