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आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती: संघ के सह सरकार्यवाह बोले- उन्होंने समाज की चेतना को जागृत किया

Swami Dayanand Saraswati 200th Birth Anniversary: आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती के अवसर पर दिल्ली के डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। उस कार्यक्रम में अखिल भारतीय दयानंद सेवा आश्रम संघ के अध्यक्ष और जय भारत मारुति लिमिटेड के चेयरमैन सुरेंद्र कुमार आर्य एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह अरुण कुमार मुख्य वक्ता रहे।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह अरुण कुमार ने कहा कि “महापुरुषों की जयंती केवल उनके जीवन का स्मरण नहीं होता। उसके साथ चार बातें जुड़ी होती हैं। इसका उद्देश्य केवल उनके जीवन पर चर्चा करना नहीं होता। जब हम उस महापुरुष का स्मरण करते हैं तो उस कालखंड का भी स्मरण करते हैं। उस कालखंड की चुनौतियों का भी स्मरण करते हैं और उन चुनौतियों के सामने उस महापुरुष के योगदान का भी स्मरण करते हैं। जब हम उनको अपना आदर्श मानते हैं तो हम सबको अपने आत्म जीवन का आत्मावलोकन का भी अवसर होता है। इसका एक उद्देश्य महर्षि दयानंद सरस्वती के जीवन, योगदान एवं उनके दिखाए गए मार्ग की दृष्टिकोण में आज की चुनौतियों का उत्तर पाना भी है।”

‘इस्लामी आक्रांताओं के कालखंड में हमारी संस्थाएं नष्ट हो गईं’

अरुण कुमार ने दिल्ली में कार्यक्रम के दौरान गुरुवार, 21 मार्च 2024 को कहा, “महर्षि दयानंद के जीवन के सभी पक्षों का अध्ययन करने की जरूरत है। उन्होंने जिस पृष्ठभूमि में कार्य किया वह समझना भी जरूरी है। इस देश के महापुरुषों ने दूसरे देशों में जाकर कहा कि हमको देखो और हममें कुछ खास लगे तो हमारी तरह बन जाओ, लेकिन इस्लाम का आक्रमण देश का ऐसा कालखंड था जिसमें हमारी सभी संस्थाएं नष्ट हो गईं। अकल्पनीय अत्याचार हुआ। विश्व गुरु एवं ज्ञान के केंद्र भारत में समाज का अवमूल्यन हुआ। समाज रूढ़िवादी हो गया, खोल में चला गया, आत्म केंद्रित हो गया।”

‘महर्षि दयानंद सरस्वती ने देश की चेतना को जगाया था’

अरुण कुमार बोले— “समाज में जो कुरीतियां दिखाई दे रही हैं, यह इस्लाम के आक्रमण के बाद पनपे हालातों का परिणाम हैं। अंग्रेजों के आने के बाद समाज की आत्म स्मृति नष्ट हो गई और वह हीन भावना का शिकार हो गया। अंग्रेजी शासन के समय में स्वामी दयानंद सरस्वती ने देश की चेतना को झकझोरा, जड़ता को समाप्त कर समाज की चेतना को जागृत किया। महर्षि ने कहा कि अपने स्व को समझना है तो अपने मूल ग्रंथों को अपने स्व के आधार पर अध्ययन करना होगा। हम क्या हैं समझना है और क्या करना है तो वेदों को पढ़िए।”

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुरेंद्र कुमार आर्य ने कहा कि वेदों की ओर लौटने का जो मार्ग महर्षि दयानंद सरस्वती ने दिखाया..वह उनका सबसे बड़ा योगदान है।

‘सनातन आरंभ में भी सत्य, भविष्य में भी सत्य रहेगा’

आर्य समाज के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. विनय कुमार विद्यालंकार ने कहा कि प्रश्न सभी के मन में आते हैं, लेकिन उसे प्रश्न का कारण खोजने के लिए जब कोई व्यक्ति खड़ा हो जाता है तो वह विचारक हो जाता है। उन्होंने सनातन का अर्थ बताते हुए कहा कि सनातन वह है जो सृष्टि के आरंभ में भी सत्य था, सृष्टि के मध्य में भी सत्य था, आज भी सत्य है और भविष्य में भी सत्य रहेगा।

महर्षि दयानंद सरस्वती जन्मोत्सव आयोजन समिति द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिल्ली प्रांत संघचालक डॉ अनिल अग्रवाल एवं आर्य समाज के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ विनय कुमार विद्यालंकार भी विशिष्ट अतिथि रहे।

— भारत एक्सप्रेस

Vijay Ram

ऑनलाइन जर्नलिज्म में रचे-रमे हैं. हिंदी न्यूज वेबसाइट्स के क्रिएटिव प्रेजेंटेशन पर फोकस रहा है. 10 साल से लेखन कर रहे. सनातन धर्म के पुराण, महाभारत-रामायण महाकाव्यों (हिंदी संकलन) में दो दशक से अध्ययनरत. सन् 2000 तक के प्रमुख अखबारों को संग्रहित किया. धर्म-अध्यात्म, देश-विदेश, सैन्य-रणनीति, राजनीति और फिल्मी खबरों में रुचि.

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