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Uttarakhand: अवैध कब्जों पर एक्शन में धामी सरकार, दोषी पाए जाने पर होगी 10 साल की सजा और वसूली, कैबिनेट में अध्यादेश पास देवभूमि उत्तराखंड प्राकृतिक तौर पर जितना समृद्ध और खूबसूरत है, वहां की जमीनें उतनी ही बेशकीमती हैं. पर्यटन के क्षेत्र में भी उत्तराखंड में अपार संभावनाएं हैं. इस बात की तस्दीक सरकार द्वारा आंकड़े भी करते नजर आते हैं. जमीनों पर अवैध तरीके से कब्जा कोई नई बात नहीं है, यह लगभग हर एक राज्य की समस्या है और इससे सबसे ज्यादा प्रभावित भारत का रेल मंत्रालय है. रेलवे की जमीनों पर लाखों जगहों पर ऐसे अवैध कब्जे हैं जो रेल मंत्रालय की जमीन कोई अपना बताते हुए काबिज हैं.
उत्तराखंड में सरकारी तो सरकारी आमजन की व्यक्तिगत जमीनों पर अवैध कब्जा करने वालों की नजरे हैं, अवैध कब्जेदारों ने तो बिना मालिकान के जानकारी के ही जमीनों को किसी और को बेच दिया है. देश में कई जगहों पर मरे हुए लोगों को कागजों पर जिंदा दिखाकर उनकी जमीन किसी को बेच देने और जिंदा लोगों को कागजों पर मार कर उनकी जमीनों को बेचने का खेल बड़े पैमाने पर चल रहा है जिसे रोकने के लिए उत्तराखंड सरकार आगे आई है.
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प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कैबिनेट में उत्तराखंड भूमि अतिक्रमण (निषेध) अध्यादेश पास कराया है, अब इस अध्यादेश को विधानसभा में पास कराने की तैयारी हो रही है. विधानसभा से पास होने के बाद प्रदेश का नया कानून बन जाएगा. उत्तराखंड भूमि अतिक्रमण (निषेध) अध्यादेश में पहली बार निजी भूमि को भी शामिल किया गया है. नए कानून के तहत शिकायतकर्ता सीधे डीएम से इस तरह के मामलों की शिकायत कर सकेगा. डीएम की अध्यक्षता में राज्य सरकार की ओर से अधिसूचित समिति प्रकरण की विवेचना पुलिस के निरीक्षक रैंक या उससे ऊपर के अधिकारी से कराएगी. कानून में पीड़ित व्यक्ति को राहत देते हुए भूमि अतिक्रमणकर्ता या आरोपी पर ही मालिकाना हक साबित करने का भार डाला गया है.
आरोप सही साबित होने पर न्यूनतम सात या अधिकतम 10 साल तक कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है, साथ ही अतिक्रमणकर्ता को ऐसी संपत्तियों के बाजार मूल्य के बराबर जुर्माने से भी दंडित किया जाएगा. नए कानून में पुराने कब्जों को भी शामिल करते हुए कार्रवाई की जा सकेगी और ऐसे मामलों के लिए विशेष न्यायालयों का गठन होगा. इनमें डीएम या डीएम की ओर से अधिकृत किसी अधिकारी की संस्तुति पर भूमि अतिक्रमण या हथियाने के प्रत्येक मामले का संज्ञान लेकर सुनवाई की जाएगी. इसके बाद न्यायाधीश की ओर से आदेश पारित किया जाएगा. हालांकि, विशेष न्यायालय के आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकेगी.
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