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‘मंदिर-मस्जिदों में वंदे मातरम गाना चाहिए…, कौन देशभक्त और कौन देशद्रोही पता चल जाएगा’: धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री

धीरेंद्र शास्त्री ने राष्ट्र की एकता को बढ़ावा देने और सभी समुदायों के बीच साझा सम्मान को बढ़ाने के लिए पहल की महत्वता पर जोर दिया, जबकि बागेश्वर बाबा ने हिंदू एकता को सशक्त करने की बात की. उन्होंने आदिवासी समुदाय को “अनादिवासी” कहकर उन्हें भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बताया.

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बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने वंदे मातरण को लेकर अजीबो गरीब बयान दिया है. गुरुवार को धीरेंद्र शास्त्री ने अपना सुझाव देते हुए कहा कि मंदिरों और मस्जिदों में आरती के बाद वंदे मातरम गाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इससे सच्चे देशभक्तों की पहचान करने में मदद मिलेगी. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार बागेश्वर बाबा ने कहा, मंदिरों और मस्जिदों में वंदे मातरम गाया जाना चाहिए. अगर ये लागू होता है तो इससे साफ हो जाएगा कि कौन सच्चा देशभक्त है और कौन राष्ट्र विरोधी है.

धीरेंद्र शास्त्री का अनोखा बयान

धीरेंद्र शास्त्री ने इस पहल को देश की एकता का प्रतीक बताया, और कहा कि यह सभी समुदायों के बीच साझा सम्मान को उजागर करता है. उनका कहना था, “यह कदम न केवल देशभक्ति को बढ़ावा देगा, बल्कि यह लोगों के इरादों और वफादारी को भी स्पष्ट करेगा.” शास्त्री ने इस विचार को भी साझा किया कि ऐसे प्रयास राष्ट्रीय एकता को मजबूत कर सकते हैं और धार्मिक अंतरों को पार करते हुए नागरिकों के बीच संबंधों को और प्रगाढ़ बना सकते हैं.

हिंदू एकता का है यह माहौल

बागेश्वर बाबा ने अपनी सनातन एकता पदयात्रा के बारे में बात करते हुए इसे हिंदू समुदाय को एकजुट करने और जातिवाद को समाप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया. उनका कहना था, “हिंदू भावना में तेजी से वृद्धि हो रही है और यह एक नई पहचान का रूप ले रही है. यह समय स्वतंत्रता संग्राम के दिनों की याद दिलाता है, और आज भी उसी प्रकार उत्साही हिंदू आंदोलन दिखाई दे रहे हैं. वर्तमान समय में हिंदू एकता की भावना गहरी हो रही है. लोग बहुत उत्साहित हैं और इस यात्रा में भाग लेने के लिए जोश से भरे हुए हैं. यह वास्तव में हमें एक नई ऊर्जा प्रदान करता है.”

शास्त्री के अनुसार, इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य देश में एकता का प्रचार करना है. इसमें विभिन्न पृष्ठभूमियों के लोग, जैसे कि बच्चे, महिलाएं, और विकलांग लोग भी भाग लेंगे, जो इसे एक समावेशी और विविधतापूर्ण पहल बनाते हैं.


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‘आदिवासी’ शब्द को किया अस्वीकार

धीरेंद्र शास्त्री ने आदिवासी समुदाय के बीच धार्मिक रूपांतरण के मुद्दे पर बात करते हुए ‘आदिवासी’ शब्द को नकारा और उन्हें भारतीय संस्कृति से गहरे रूप में जुड़े हुए व्यक्तियों के रूप में पहचानने की बात की. उन्होंने इसे संदर्भित करते हुए कहा, “हम इन लोगों को एक नई पहचान देना चाहते हैं. वे सिर्फ आदिवासी नहीं हैं, बल्कि वे अनादिवासी हैं – इस भूमि के मूल निवासी हैं, जो हमेशा हमारे साथ रहे हैं. वे भगवान श्री राम के साथ खड़े थे और माता सबरी के वंशज हैं. उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए और उन्हें अपनी सांस्कृतिक धारा में पूरी तरह से शामिल किया जाना चाहिए.”

-भारत एक्सप्रेस



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