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Lok Sabha Election 2024: उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव को देखते हुए सभी पार्टियों ने अपनी रणनीति बनाना शुरू कर दिया है. एक तरफ बीजेपी लोकसभा चुनाव में सभी 80 सीटों पर जीत हासिल करने के लिए मिशन 80 पर काम कर रही है तो वहीं समाजवादी पार्टी गांव-गांव घूम कर बड़ा आंदोलन करने की तैयारी कर रही है. वहीं इन सब के बीच सपा की सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल ने भी तैयारियां करना शुरू दिया है. रालोद की कमान एक बार फिर से जयंत चौधरी के हाथों में सौंप दी गई है.
अब पश्चिमी यूपी में बीजेपी को हटाने के लिए जयंत ने नयी-नयी रणनीतियां पर काम करना शुरू कर दिया है. सबसे पहले तो रालोद ने जो पार्टी में बदलाव किए हैं उससे यह साफ दिखता है कि जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) मुस्लिम नेताओं को पार्टी के फ्रंट रो हटाकर बैकसीट पर बैठा रहे हैं. मुस्लिम नेताओं की जगह पर ठाकुर, गुर्जर या दूसरे समाज के नेताओं को तवज्जो देकर जाति कनेक्शन बनाए जा रहे हैं.
2022 के विधानसभा चुनाव में रालोद ने सपा के साथ मिलकर 2017 के चुनावों के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन 2022 में मिली हार में बाद जयंत ने रालोद के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष पद से डा. मसूद अहमद (Masood Ahmed) को हटाकर रामाशीष राय को पार्टी की कमान सौंपी थी. वह पूर्वांचल के देवरिया से आते हैं और बीजेपी युवा मोर्चा (BJP Yuva Morcha) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं. इसके अलावा रालोद युवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से वसीम रजा को हटाकर चंदन चौहान को जिम्मेदारी दी है. चंदन चौहान गुर्जर समुदाय से आते हैं और सपा से आए हैं. रालोद में हुए इन बदलावों के बाद से दोनों ही मुस्लिम नेताओं को अपने पद से बेदखल होना पड़ा.
जयंत चौधरी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में जाट-मुस्लिम का कनेक्शन बनाकर अपने 9 विधायक जरूर बना लिए, लेकिन बीजेपी को रोकने के लिए यह काफी नहीं हुआ. इसलिए नई सोशल इंजीनियरिंग बनाने की तैयारी की जा रही हैं. उनका पहला प्रयोग खतौली उपचुनाव में सफल रहा. जयंत ने खतौली में गुर्जर समुदाय के मदन भैया को टिकट देकर बीजेपी को हार का स्वाद चखा दिया था. जिसके बाद ही उन्होंने चंदन चौहान को पार्टी के युवा संगठन की कमान सौंपी है. इसके अलावा उन्होंने अपने विधायकों से दलित बहुल इलाके में अपनी विधायक निधि का तीस फीसदी खर्च करने का निर्देश दिया है. वहीं जयंत का दलित नेता चंद्रशेखर के साथ भी केमिस्ट्री जम रही है.
जयंत चौधरी की हाल ही की रणनीति देखते हुए ऐसा लगता है कि वो 2024 के लिए दलित-गुर्जर समुदाय को जोड़ने पर काम कर रहे हैं. क्योंकि विधानसभा के चुनाव में जाट और मुस्लिम सुमदाय के साथ अच्छा प्रदर्शन तो किया था लेकिन वह काफी नहीं था. इसलिए अब जयंत जाट-मुस्लिमों के साथ अगर गुर्जर-दलित को भी जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं जिससे बीजेपी को कड़ी टक्कर दी जा सकें.
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