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Adani University ICIDS: विकसित भारत बनने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास और स्थिरता जरूरी- इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में बोले एक्सपर्ट्स

इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी (ICIDS) में द रॉयल ऑर्डर ऑफ ऑस्ट्रेलिया से जुड़े सदस्यों और अदाणी विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष प्रो. अरुण शर्मा ने अपनी बात रखी. विकास के लिए रोडमैप पर चर्चा हुई.

Adani University ICIDS

ICIDS अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे संस्करण का आयोजन

सस्टेनेबल इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास, ग्रीन ट्रांजिशन और फाइनेंसिंग (ICIDS) में उभरती चुनौतियों पर अदाणी विश्वविद्यालय में 2 दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस सम्मेलन में शिक्षा जगत के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों, इंडस्ट्री एक्सपर्ट और सरकारी एजेंसियों के प्रतिनिधियों ने सस्टेनेबल इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास पर अपनी बात रखी.

सम्मेलन का उद्देश्य भारत और दुनिया भर के शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों को एक साथ लाना है, जिसमें इकोनॉमिक डेवलपमेंट, पर्यावरणीय चुनौतियों और सामाजिक समानता जैसे मुद्दों पर चर्चा की हुई. ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास राष्ट्रीय और वैश्विक स्थिरता एजेंडे 2030 को आकार दिया जा सके. अदाणी विश्वविद्यालय के प्रोवोस्ट प्रोफेसर रवि पी. सिंह ने इन्फ्रास्ट्रक्चर और एनर्जी के क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में भारत की अविश्वसनीय प्रगति पर जोर दिया.

अभी 450 गीगावाट एनर्जी कैपेसिटी

भारत में वर्तमान में लगभग 450 गीगावाट ऊर्जा क्षमता है, जिसमें से लगभग 50% गैर-जीवाश्म ईंधन से आता है. भारत का इरादा 2030 तक 500 गीगावाट ऊर्जा उत्पादन तक पहुंचने का है. अदाणी विश्वविद्यालय एनर्जी इंजीनियरिंग और एनर्जी मैनेजमेंट में पांच साल का इंटीग्रेटेड करिकुलम भी पेश कर रहा है, जिसमें भारत के एनर्जी फ्यूचर में योगदान देने के लिए दुनिया भर से छात्रों की भर्ती की जा रही है.

इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी (ICIDS) में द रॉयल ऑर्डर ऑफ ऑस्ट्रेलिया के प्राप्तकर्ता और अदाणी विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष प्रोफेसर अरुण शर्मा ने भारत और वैश्विक समुदाय के सामने आने वाली गंभीर चुनौतियों को संबोधित किया. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है, वे देश के लिए अनोखी नहीं हैं, बल्कि एशिया के अधिकांश हिस्सों में साझा की गई हैं, और कई आयामों पर विचार करने के लिए वैश्विक स्तर पर समाधान तलाशे जाने चाहिए.

“एशियाई शताब्दी” की अवधारणा

रिसर्च सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट एंड इनोवेशन, स्कूल ऑफ ग्लोबल स्टडीज, थम्मासैट यूनिवर्सिटी, थाईलैंड से प्रोफेसर भरत दहिया ने भारत और एशिया में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए प्रमुख चुनौतियों और अवसरों पर प्रकाश डाला. “एशियाई शताब्दी” की अवधारणा पर विचार करते हुए, उन्होंने पूरे एशिया में आकांक्षात्मक और सांस्कृतिक एकता पर जोर देते हुए, इसकी प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण पांच आयामों को रेखांकित किया. ओकाकुरा काकुज़ो को उद्धृत करते हुए, उन्होंने भारतीय और चीनी सभ्यताओं की साझा विरासत का जिक्र करते हुए कहा, “एशिया एक है.”

भविष्य के विकास के लिए रोडमैप पेश

शहरी और क्षेत्रीय ट्रांसपोर्ट में उभरते रुझान, ऊर्जा परिवर्तन और इन्फ्रास्ट्रक्चर, शहरी परिवर्तन- भविष्य के मॉडल और अभ्यास और इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में पीपीपी को पुनर्जीवित करने जैसे कई मुद्दों पर बात हुई. सभी एक्सपर्ट ने ऊर्जा परिवर्तन और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में भविष्य के विकास के लिए एक रोडमैप पेश किया. सम्मेलन के पहले दिन 250 से अधिक उद्योग प्रतिनिधियों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं और बुनियादी ढांचे, स्थिरता के एक्सपर्ट्स ने हिस्सा लिया. सम्मेलन के दूसरे दिन दुनिया भर के रिसर्च स्कॉलर द्वारा संबंधित क्षेत्रों में 50 से ज्यादा रिसर्च पेपर पत्र प्रस्तुत किये गये.

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