
सांकेतिक तस्वीर

दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े एक लूट और आगजनी के मामले में 11 आरोपियों को बरी कर दिया है. अदालत ने कहा कि अभियोजन द्वारा पेश किए गए गवाह विश्वसनीय नहीं हैं और उनके बयानों में गंभीर खामियां पाई गई हैं.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमांचला ने अपने फैसले में कहा कि आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोप संदेह से परे साबित नहीं हो सके हैं. ऐसे में सभी आरोपी संदेह का लाभ पाने के हकदार हैं. अदालत ने आरोपियों अंकित चौधरी उर्फ फौजी, सुमित उर्फ बादशाह, पप्पू, विजय, आशीष कुमार, सौरभ कौशिक, भूपेंद्र, शक्ति सिंह, सचिन कुमार उर्फ रैंचो, राहुल और योगेश को सभी आरोपों से बरी कर दिया.
यह मामला ब्रह्मपुरी इलाके की ‘क्राउन मेडिकोज’ नामक मेडिकल शॉप और ‘स्मार्ट लुक्स सैलून’ में कथित लूट और आगजनी से जुड़ा था. दंगों के बाद दर्ज दो एफआईआर में इन दुकानों में तोड़फोड़, चोरी और आगजनी की शिकायत की गई थी. आरोपियों पर दंगा करने, गैरकानूनी सभा में शामिल होने, चोरी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे आरोप लगाए गए थे.
हालांकि, अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए 12 गवाहों में से एक ने अदालत में बयान बदल लिया और तीन गवाह न्यायिक प्रक्रिया के दौरान अनुपस्थित रहे. सबसे अहम गवाह, जिसकी दुकान में तोड़फोड़ हुई थी, उसने पहले दावा किया था कि वह कुछ आरोपियों को पहचानता है, लेकिन जांच के दौरान उनके नाम नहीं बताए. बाद में, मुकदमा शुरू होने पर उसने उन्हीं आरोपियों के नाम लिए, जिससे उसकी गवाही पर संदेह पैदा हो गया.
कोर्ट ने गवाह के पूर्व बयानों और अदालत में दिए गए बयानों के बीच स्पष्ट विरोधाभास पाया और उसे अविश्वसनीय करार दिया. अदालत ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में अभियोजन का मामला संदेह से परे साबित नहीं हो सकता, और ऐसे में न्याय के सिद्धांतों के अनुसार आरोपियों को दोषमुक्त किया जाना चाहिए. इस फैसले के साथ अदालत ने एक बार फिर दोहराया कि संदेह का लाभ हमेशा आरोपी को मिलना चाहिए जब तक कि उसके खिलाफ आरोप पूरी तरह सिद्ध न हो जाएं.
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-भारत एक्सप्रेस
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