

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि आजादी के दशकों बाद भी महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. उनका वास्तविक सशक्तीकरण तभी संभव है जब वे बिना किसी डर के स्वतंत्र रूप से घूम सकें और सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षित महसूस करें.
कोर्ट ने कहा कि कड़े कानूनों के बावजूद महिलाओं के प्रति अपराधों की घटनाएं अपराधियों के दुस्साहस को उजागर करती हैं. उन्हें लगता है कि कानून उनके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं करेगा, जिससे वे बेखौफ होकर अपराध करते हैं.
आरोपी की दोषसिद्धि बरकरार
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने उक्त टिप्पणी आईपीसी की धारा 354 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और 509 (शब्दों व इशारों से महिला का अपमान) के तहत दोषी ठहराए गए व्यक्ति की अपील पर की. हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि इस प्रकार के अपराध यह दर्शाते हैं कि महिलाएं आज भी सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षित नहीं हैं.
कोर्ट ने कहा कि चुप्पी और निष्क्रियता अपराधियों को और अधिक सशक्त बनाती है. समाज के हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह उत्पीड़न के खिलाफ खड़ा हो और कानून के शासन को बनाए रखे. सार्वजनिक स्थानों को सुरक्षित बनाने के लिए सख्ती से कार्रवाई करनी होगी, अन्यथा महिलाओं की प्रगति केवल सतही बातें ही बनी रहेंगी.
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि व्यक्ति ने बस में उसके विरोध के बावजूद अनुचित इशारे किए, आंख मारी और थप्पड़ मारा. आरोपी ने जबरन उसे पकड़कर होठों पर चूमा और जाने से मना कर दिया.
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-भारत एक्सप्रेस
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