

केरल के राज्यपाल द्वारा विधेयकों की मंजूरी देने के मुद्दे सुप्रीम कोर्ट 6 मई को सुनवाई करेगा. मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि वह तमिलनाडु मामले में एक अन्य पीठ द्वारा दिए गए फैसले का अवलोकन करेगा. केरल सरकार का राज्यपाल के खिलाफ मामला तमिलनाडु से अलग है.
मामले की सुनवाई के दौरान केरल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील के के वेणुगोपाल ने कहा कि जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा दिए गए फैसले में विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए दिशानिर्देश और समय सीमा तय की गई है. मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केरल सरकार के वकील से पूछा कि फिर वह क्या करने का प्रस्ताव रखते है.
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल आलोचना की
क्या केरल सरकार तमिलनाडु के फैसले के मद्देनजर याचिका वापस लेना चाहती है? वही राज्यपाल की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह दलीलें देना चाहते हैं. एसजी ने कहा कि केरल का मामला तमिलनाडु के राज्यपाल के मामले के दायरे में नहीं आता है. उन्होंने फिलहाल मामले को टालने की गुजारिश करते हुए सुनवाई टालने की मांग की.
जिसपर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वह एसजी मेहता की इस मांग से सहमत है. अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने कहा कि (तमिलनाडु के राज्यपाल) इस मामले में कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जो तथ्यात्मक रूप से भिन्न है, लेकिन निर्णय शामिल नही है. सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को एक ऐतिहासिक फैसला दिया था और तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि की खिंचाई की थी.
साथ ही राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को रोकने के उनके फैसले को अवैध बताया था. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल रवि की आलोचना करते हुए, उनकी निष्क्रियता को गैर सद्भावनापूर्ण और संविधान के तहत अवैध बताया है. कोर्ट ने अपने फैसले में राष्ट्रपति और राज्यपाल की ओर से उनके विचार के लिए आरक्षित विधेयकों पर उस तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर निर्णय लेना चाहिए, जिस दिन विधेयक उन्हें भेजा गया था. केरल अपने मामले में इसी तरह के निर्देश चाहता है.
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-भारत एक्सप्रेस
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