सुप्रीम कोर्ट.
सुप्रीम कोर्ट ने रेप और हत्या के दोषी को बरी कर दिया है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ट्रायल के दौरान वकील ने ठीक से बातों को नहीं रखा और गवाहों की जिरह भी सही ढंग से नहीं रखा गया. जस्टिस एएस ओका, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने फैसला देते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 313 का अनुपालन नहीं किया गया था. इसके तहत अभियुक्त की जांच की जाती है. ऐसा इसलिए ताकि वह अपने खिलाफ साक्ष्य में दिखाई देने वाली किसी भी परिस्थिति को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट के सामने रख सके.
कोर्ट ने यह भी कहा कि हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों ने सीआरपीसी की धारा 313 की आवश्यकताओं के अनुपालन की अनदेखी की है. कोर्ट ने कहा कि यह चौकाने वाला है कि ट्रायल कोर्ट ने उस मामले में फांसी की सजा सुनवाई, जबकि बरी होना चाहिए था. ऐसे मामले में फांसी की सजा सुनाना, इस न्यायालय की अंतरात्मा को झकझोरता है. आरोपी अशोक पर 10 वर्षीय बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या का मामला दर्ज किया गया था.
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आरोप है कि बच्ची अपने चचेरी बहन जो सात साल की है, बकरी चराने गई थी. पीड़िता को जब प्यास लगी तो वह ट्यूबवेल के केबिन के पास चली गई. आरोपी ट्यूबवेल पर काम करता था. पीड़िता ने आरोपी से पीने का पानी मांगा तो आरोपी बच्ची को केबिन के अंदर ले गया और उसके साथ रेप कर उसकी हत्या कर दी. पीड़िता के चचेरी बहन ने आरोपी को पीड़िता को जबरन केबिन के अंदर ले जाते और उसके साथ बलात्कार करते हुए देखा. बाद में उसने पीड़िता के पिता को इस घटना की जानकारी दी. पिता की शिकायत पर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. 2012 में निचली अदालत ने हत्या (302), सबूत नष्ट करना(201) और 376 (बलात्कार) के तहत दोषी करार दिया था. बाद में कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई.
-भारत एक्सप्रेस
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