

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के 70 वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा देने से जुड़े विवादास्पद मामले में महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं. शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट को आदेश दिया है कि वह इस प्रक्रिया पर पुनर्विचार करे और संबंधित अर्जियों पर निष्पक्षता से विचार करे.
यह निर्देश जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने वकील रमन गांधी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया. याचिका में आरोप लगाया गया था कि हाई कोर्ट द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता के चयन में पारदर्शिता नहीं बरती गई. याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द किया जाए, जिसमें 302 में से केवल 70 वकीलों को सीनियर का दर्जा दिया गया था और 67 की अर्जियां स्थगित कर दी गई थीं.
स्थायी समिति पर उठे सवाल
यह मामला उस समय और गंभीर हो गया जब समिति के एक सदस्य, वरिष्ठ अधिवक्ता सुधीर नंदराजोग ने इस्तीफा दे दिया. उन्होंने दावा किया कि अंतिम सूची उनकी सहमति के बिना तैयार की गई थी. समिति में दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मनमोहन, न्यायमूर्ति विभु बाखरु, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा और वरिष्ठ अधिवक्ता मोहित माथुर शामिल थे.
सुप्रीम कोर्ट ने इस समिति के पुनर्गठन का निर्देश दिया है और हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को यह जिम्मेदारी सौंपी है.
पदनाम का महत्व
वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा वकीलों के लिए एक प्रतिष्ठित पहचान होती है, जो अदालती कौशल, पेशेवर योग्यता और कानूनी ज्ञान की मान्यता के तौर पर दी जाती है. यह पद वकीलों को अधिक कानूनी शुल्क लेने और विशेषाधिकार प्राप्त करने की अनुमति देता है.
करीब 3.5 साल बाद यह पदनाम प्रक्रिया दोबारा शुरू हुई थी, जिसमें बड़ी संख्या में वकीलों ने आवेदन किया था. चयन प्रक्रिया में साक्षात्कारों के बाद शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों को फुल कोर्ट मीटिंग में अंतिम निर्णय के आधार पर चयनित किया गया.
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