

दिल्ली-नोएडा टोल ब्रिज से जुड़े बहुचर्चित मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने इस मामले में दायर दो पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया है. ये याचिकाएं नोएडा टोल ब्रिज कंपनी लिमिटेड (NTBCL) और कंपनी के निदेशकों में से एक प्रदीप पूरी ने दायर की थीं.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने सुनवाई के बाद यह आदेश जारी किया. हालांकि, कोर्ट ने प्रदीप पूरी की ओर से रखे गए पक्ष को ध्यान में रखते हुए कुछ हिस्सों में मामूली बदलावों पर सहमति जताई, लेकिन NTBCL की पूरी याचिका को खारिज कर दिया.
क्या है पूरा मामला?
इस मामले की शुरुआत साल 2012 में हुई थी, जब फेडरेशन ऑफ नोएडा रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर यह सवाल उठाया था कि जब दिल्ली-नोएडा फ्लाईओवर (डीएनडी) की निर्माण लागत वसूल ली गई है, तो आम जनता से टोल टैक्स क्यों वसूला जा रहा है?
हाईकोर्ट ने जनता के हित में फैसला सुनाते हुए टोल वसूली को बंद करने का आदेश दिया था, जिसके बाद NTBCL ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले दिए गए फैसले को दोहराते हुए कहा कि नोएडा प्राधिकरण ने टोल वसूलने का अधिकार कंपनी को सौंपकर अपने अधिकारों का उल्लंघन किया है. कोर्ट ने यह भी कहा कि NTBCL को बिना सार्वजनिक टेंडर के ठेका देना पूरी तरह से अनुचित और मनमाना था.
कोर्ट के मुताबिक, नोएडा प्राधिकरण और कंपनी के बीच हुआ करार पूरी तरह गलत था, और इसके जरिए आम लोगों से करीब 100 करोड़ रुपये की अवैध वसूली की गई.
क्या दलीलें दी गईं?
प्रदीप पूरी की ओर से पेश वकील पीयूष जोशी ने दलील दी कि सीएजी रिपोर्ट में ऐसा कोई निष्कर्ष नहीं था जो टोल वसूली को अनुचित ठहराता हो. वहीं, NTBCL की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और सिद्धार्थ भटनागर ने कहा कि नोएडा प्राधिकरण ने जानबूझकर कंपनी की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया.
कंपनी ने दावा किया कि टोल वसूली बंद होने के बाद से वह पुल के रखरखाव के लिए केवल विज्ञापन राजस्व पर निर्भर हो गई है.
-भारत एक्सप्रेस
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