
घरेलू हिंसा कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट सहित देश कई अदालतों ने चिंता व्यक्त की है. सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर कई बार टिप्पणी कर चुका है. कोर्ट ने 2005 के घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के क्रियान्वयन से याचिका पर केंद्र सरकार सहित देश के सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को फटकार लगा चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2024 में आदेश दिया था कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस कानून के कार्यान्वयन पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करनी चाहिए.
कोर्ट ने कहा था कि घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का सही तरीके से पालन और कार्यान्वयन केवल केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि संबंधित राज्य सरकारों का भी कर्तव्य है. वही 8 फरवरी 2022 को एक फैसले में कोर्ट ने कहा था कि 498A (दहेज उत्पीड़न कानून) में पति के रिश्तेदारों के खिलाफ आरोप के बिना केस चलाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है.
धारा 498A और इसके दुरुपयोग पर अदालतों की टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498A के बढ़ते दुरुपयोग की रेखांकित करते हुए कहा कि इससे विवाह संबंधों में संघर्ष बढ़ रहा है. कोर्ट ने कहा धारा 498A का उद्देश्य त्वरित हस्तक्षेप के माध्यम से एक महिला पर उसके पति एवं ससुराल वालों द्वारा की गई क्रूरता को रोकना है. कोर्ट ने माना कि आईपीसी की धारा 498A जैसे प्रावधानों को पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ व्यक्तिगत दुश्मनी से निपटने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने की प्रवृति बढ़ रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना है कि धारा 498A के तहत अपराध दर्ज करने के लिए दहेज की मांग जरूरी नही है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के वकील विशाल तिवारी की ओर से दायर उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें अदालत झूठे मामलों में पति और ससुरालवालों को परेशान ना किए जाने से संबंधित दिशा निर्देश जारी करने की मांग की गई थी.
अदालतों द्वारा कानून के दुरुपयोग को रोकने के प्रयास
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अदालत इस मामले में कुछ नहीं कर सकता, समाज को ही बदलना होगा. कोर्ट ने यह भी कहा था कि ऐसे मुद्दों के लिए संसद कानून बनाती है. दिल्ली हाई कोर्ट ने 2003 में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि कई बार लड़की न सिर्फ अपने पति, बल्कि उसके कई रिश्तेदारों पर भी केस दर्ज करा देती है. कोर्ट ने कहा था कि धारा 498A शादी की बुनियाद को हिला रही है. झारखंड हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि ससुरालवालों से नाराज महिलाएं कानून के इस प्रावधान का ढाल की बजाए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर दुरुपयोग कर रही हैं.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि अगर कोई पत्नी सिर्फ अपने पति के व्यवहार को सुधारने के उद्देश्य से झूठा मुकदमा दर्ज करा रही हैं, तो यह क्रूरता की श्रेणी में आएगा.
धारा 498A और इसके दुरुपयोग पर अदालतों की टिप्पणियां
कोर्ट ने कहा कि इस तरह से किसी पर फर्जी केस दर्ज करना गलत है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा के मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि वैवाहिक मामलों में एफआईआर दर्ज होने के बाद 2 महीने के कूलिंग पीरियड तक किसी भी नामजद आरोपी की गिरफ्तारी नही होगी. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में आरोपियों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई भी नहीं कि जाएगी.
आईपीसी की धारा 498A में महिलाओं को ससुराल वालों की क्रूरता से बचाने का प्रावधान किया गया है. भारत सरकार के वकील वसीम कादरी ने बताया कि धारा 498A महिलाओं को पति और पति के रिश्तेदारों की क्रूरता से बचाने के लिए बनाया गया कानून है. इस कानून के तहत अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान किया गया है. यह धारा गैर जमानती और संज्ञेय अपराध के लिए है. घरेलू हिंसा के तहत मामला दर्ज होने पर बिना वारंट जारी किए गिरफ्तारी भी हो सकती है.
अगर इस धारा का दुरुपयोग कर किसी व्यक्ति पर केस दर्ज किया गया है और मामला झूठा साबित होता है तो उस व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह मानहानि का केस दर्ज कर सके. वही सुप्रीम कोर्ट ने वकील शशांक देव सुधी ने कहा कि आजकल 498A का दुरुपयोग ज्यादा हो रहा है. इन्होंने कहा कि अदालत को चाहिए कि वह देखे की सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया दिशा निर्देश का पालन राज्य सरकारों द्वारा किया जा रहा है या नही.
498A किन मामलों में लगती है?
अगर किसी महिला का पति अपनी पत्नी को आत्महत्या करने के लिए उकसाता है, तो 498A के तहत दोषी होगा. अगर किसी महिला का पति या उसके परिवार के अन्य सदस्य उस महिला से दहेज की मांग करता है और दहेज ना देने के कारण उसे परेशान करता है, तो उस व्यक्ति के खिलाफ धारा 498A के तहत मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही की जाती है. यदि किसी विवाहिता को संतान नहीं है और उसे ताने मारे जा रहे हैं, या मानसिक रूप से परेशान किया जा रहा है तो, दोषी व्यक्ति के खिलाफ 498A के तहत मुकदमा दर्ज किया जाएगा. यदि किसी महिला की शादी के सात साल के अंदर ही संदिग्ध हालत में मौत हो जाती है तो धारा 498A के तहत मुकदमा ना दर्ज कर दहेज एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया जाएगा.
धारा 498A का दुरुपयोग
धारा 498A के तहत पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ फर्जी मामलों में गिरफ्तारी हेतु महिलाओं द्वारा इसका दुरुपयोग किया जाता है. इन दिनों कई मामलों में धारा 498A को तनावपूर्ण वैवाहिक स्थिति से परेशान होने पर पत्नी द्वारा ब्लैकमेल करने का साधन बना लिया जाता है. इसके कारण ज्यादातर मामलों में धारा 498A के तहत शिकायत के बाद आमतौर पर अदालत के बाहर मामले को निपटाने के लिए बड़ी राशि की मांग की जाती है.
बता दें कि भारत में हर साल घरेलू हिंसा के मामले बढ़ते जा रहे है. हर साल महिलाओं के खिलाफ अपराध के जितने मामले दर्ज होते है, उनमें से 30 फीसदी से अधिक मामले घरेलू हिंसा के होते है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के रिपोर्ट के मुताबिक साल 2021 में धारा 498A के तहत देशभर में 1.36 लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे. जबकि 2020 में 1.11लाख से ज्यादा मामला दर्ज किया गया है. रिकॉर्ड के मुताबिक 2021 में निचली अदालतों में 498A के 25158 मामलों का निपटारा किया गया.
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-भारत एक्सप्रेस
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