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सुप्रीम कोर्ट ने 21 साल की मृत महिला के शव से यौन शोषण को बलात्कार मानने से किया इनकार, जानें क्या है पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार की अपील खारिज करते हुए कहा कि शव के साथ किया गया यौन शोषण भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नेक्रोफिलिया को अपराध मानने के लिए कानून में बदलाव करना संसद का कार्य है.

Supreme Court of India

सुप्रीम कोर्ट.

सुप्रीम कोर्ट ने शव के साथ किए गए बलात्कार को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने 21 साल की मृत महिला के शव से यौन शोषण को बलात्कार मानने से इनकार कर दिया है. जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कर्नाटक सरकार द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए यह फैसला दिया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा यह भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत अपराध नही है.

कोर्ट ने कहा कि वर्तमान कानून नेक्रोफिलिया को अपराध नही मानता है. इसको लेकर कानून के बदलाव करना पड़ेगा और कानून बनाना संसद का काम है. इसलिए कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले में वह हस्तक्षेप नही कर सकता. कर्नाटक हाई कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया था, जिसके खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार की अपील खारिज की

मामले की सुनवाई के दौरान कर्नाटक सरकार की ओर से पेश एडवोकेट जनरल अमर पंवार के कहा कि धारा 375 (सी) के तहत ‘शरीर’ शब्द को शव को भी शामिल करने के लिए पढ़ा जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि बलात्कार की परिभाषा के 7वें विवरण के तहत ऐसी स्थिति जहां महिला सहमति नहीं दे सकती, उसे बलात्कार माना जाएगा. इसलिए यहां भी मृत शरीर सहमति नहीं दे पाएगा.

हाईकोर्ट ने आरोपी को किया था बरी

राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने यह भी कहा कि कोर्ट को धारा 375 में शवों को शामिल करने के लिए उदारतापूर्वक व्याख्या करना चाहिए. कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा मई 2023 में दिए गए फैसले में कहा था कि नेक्रोफिलिया भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत बलात्कार या धारा 377 के तहत अप्राकृतिक सेक्स वाले अपराध के दायरे में नही आता है. इसलिए आरोपी को बलात्कार का दोषी नहीं माना जा सकता है. लेकिन हाई कोर्ट ने आरोपित को हत्या का दोषी माना. जबकि निचली अदालत ने आरोपित को आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या और आईपीसी की धारा 375 के तहत बलात्कार के लिए दोषी ठहराया था. जिसके बाद यह मामला कर्नाटक हाई कोर्ट पहुचा था.

बता दें कि हालही में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इसी तरह के एक मामले में फैसला देते हुए कहा था कि ऐसे प्रावधान केवल तभी लागू होते हैं, जब पीड़िता जीवित हो. इसमें कोई संदेह नहीं है कि आरोपी द्वारा शव के साथ किया गया बलात्कार सबसे जघन्य अपराधों में से एक हैं. लेकिन मामले का तथ्य यह है कि आज की तारीख में वह आरोपी को आईपीसी की धारा 363, 376 (3), पोक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 6 और 1989 के अधिनियम की धारा 3(2)(व) के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि बलात्कार का अपराध शव के साथ किया गया था. इन धाराओं के तहत दोषी ठहराने के लिए पीड़िता का जीवित होना जरूरी है.

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-भारत एक्सप्रेस 



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