
सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दिया है, जिसमें केंद्र सरकार को स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी से पीड़ित एक मरीज को 50 लाख रुपये की सीमा से ऊपर 18 लाख रुपये मूल्य की अतिरिक्त दवाइयां प्रदान करने का निर्देश दिया गया था. सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
कोर्ट 17 अप्रैल 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में अगली सुनवाई करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने पक्षकारों से कहा कि वे इन दवाओं का निर्माण करने वाली कंपनी से संपर्क करने की कोशिश करें, ताकि उक्त बीमारी से पीड़ित रोगियों का उपचार हो सके.
दवा कंपनियों से बातचीत का सुझाव
प्रतिवादियों के वकील ने कोर्ट को बताया कि पाकिस्तान और चीन ने दुर्भल बीमारियों के उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं की कीमत कम करने के लिए बातचीत की. सीजेआई ने पक्षों से संबंधित दवा निर्माण कंपनी से सीधे बातचीत करने की संभावना तलाशने को कहा है.
दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर भी लगी रोक
सुप्रीम कोर्ट ने 9 दिसंबर 2024 के दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दिया है, जिसमें दुर्लभ बीमारियों के ईलाज के लिए 50 लाख रुपये की सीमा को हटाने का निर्देश दिया गया था और इसे लचीला बताया था. स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी एक जेनेटिक डिसऑर्डर हैं, जो नर्वस सिस्टम और मांसपेशियों को बुरी तरह प्रभावित करता है. यह एक दुर्लभ बीमारी है. यह जिंदा पैदा होने वाले 10000 नवजात बच्चों में से किसी एक में पाया जाता है.
टाइप 1 SMA सबसे गंभीर माना जाता है, जो जन्म के शुरुआती कुछ महीनों में सामने आने लगती है. टाइप 1 SMA वाले शिशुओं में मांसपेशियों का कमजोर होना, सांस लेने, निगलने और दिमाग से जुड़ी परेशानियों के रूप में लक्षण नजर आ सकते है. SMA की जल्दी पहचान, समय पर उपचार के लिए महत्वपूर्ण है. जिससे जल्द और पॉजिटिव परिणाम देखने को मिल सकते है.
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भारत एक्सप्रेस
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