Siyasi Kissa: देश में चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव की तारीखें घोषित करने के बाद राजनीतिक दल अपनी-अपनी तैयारियों को अंतिम रूप दे रहे हैं. इस बीच देश के पहले चुनाव को लेकर तमाम अनसुने किस्से सामने आ रहे हैं, जो कि बताते हैं कि देश के पहले आम चुनाव के दौरान चुनाव आयोग को कितनी मुश्किलों से गुजरना पड़ा था.
आज जहां तकनीक रूप से देश विकसित हो चुका है और चुनावी प्रक्रिया की तमाम जटिलताएं सरल हो चुकी हैं, तो वहीं देश के गणतंत्र होने के बाद साल 1952 में पहली बार जब चुनाव का आयोजन किया गया था, तब चुनाव आयोग को खासी समस्याओं का सामना करना पड़ा था. राजनीतिक दलों के साथ आयोग के पास भी मतदाताओं तक पहुंचने के साधन सीमित थे. ऊपर से देश की करीब 85 फीसदी वोटर्स शिक्षित भी नहीं थे.
तब के मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पहले चुनाव से पहले मतदाता सूची तैयार करना आसान काम नहीं था. सबसे बड़ी मुश्किल महिला मतदाताओं के साथ होती थी, क्योंकि वे किसी को अपना नाम ही नहीं बताती थीं. जानकार कहते हैं कि उस वक्त तो महिलाएं अपना नाम तक नहीं लेती थीं. कई महिलाओं को तो अपना नाम ही नहीं मालूम हुआ करता था. उनको किसी की मां, किसी की पत्नी के नाम से पुकारा जाता था और हाल ये था कि तब महिलाओं को यही पसंद भी था.
इसके अलावा एक बड़ी मुश्किल चुनाव का प्रचार करना भी थी. आज तो सोशल मीडिया और अन्य तमाम माध्यमों से आसानी से राजनीतिक दल अपनी बात पहुंचाकर चुनाव प्रचार कर ले रहे हैं, लेकिन देश के पहले आम चुनाव में घर-घर बात पहुंचाना राजनीतिक दलों के लिए बड़ा मुश्किल काम था.
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नहीं मिल पाते थे झंडे और बैनर
जानकार कहते हैं कि उस वक्त तो झंडा, बिल्ला व बैनर भी नहीं मिल पाते थे. भाजपा के थिंक टैंक रहे केएन गोविंदाचार्य ने एक साक्षात्कार के दौरान कभी बताया था कि समर्थक जिस पार्टी के होते थे, उसका झंडा बनाने के लिए तब लोग अपना गमछा व धोती तक रंग लेते थे. सबके पास साइकिल भी नहीं होती थी. लोग पैदल ही गांव-गांव टहलते रहते थे और नेता लोग प्रचार के लिए नुक्कड़ सभाओं का सहारा लेते थे. उसमें भी 30 से 40 लोग ही शामिल हो पाते थे. वैसे भी लोगों के लिए चुनाव जैसी चीज बिल्कुल नई थी.
देश के पहले प्रधानमंत्री ने कही थी ये बात
इन चुनौतियों के बावजूद देश में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में करीब 61.16 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था और इतिहास के पन्नों पर एक नई रेखा खींच दी थी. चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था, ‘तथाकथित अशिक्षित मतदाता के प्रति मेरा सम्मान बढ़ गया है. उन्होंने सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के प्रति मेरी हर आशंका को गलत साबित किया है.’
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पहले आम चुनाव में थे 17.32 करोड़ मतदाता
चुनाव आयोग के आंकड़ों की मानें तो पहले आम चुनाव में करीब 17.32 करोड़ मतदाता देश में थे, जिसमें से 85 फीसदी मतदाता साक्षर नहीं थे. तो वहीं मतदाताओं की सूची तैयार करने के लिए करीब 16,500 लोगों को छह महीने के अनुबंध पर काम सौंपा गया था. घर-घर जाकर मतदाताओं की तलाश करना एक मुश्किल काम था. इसमें कई बार यह होता कि शहर और मोहल्ले में जिनकी पकड़ थी, उनसे पूछ लिया गया और उन्होंने जिसके नाम की पहचान कर ली, उसका नाम मतदाता सूची में शामिल कर लिया जाता था.
दिल्ली में बढ़ गए 16 गुना वोटर्स
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, पहले आम चुनाव से लेकर 16वें आम चुनाव तक दिल्ली में वोटर्स की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है और इनकी संख्या 16 गुना बढ़ गई है. आंकड़ों की मानें तो 1951 में दिल्ली में कुल 7,44,668 मतदाता थे जबकि 16वीं लोकसभा के लिए राजधानी में 1,20,60,493 मतदाता हो गए. इसमें सबसे खास बात तो ये है कि शुरुआती दो आम चुनावों 1951 व 1957 में दिल्ली की आउटर दिल्ली नामक एक सीट डबल मेंबर सीट थी. तो वहीं इस बीच सीटों की संख्या तीन से बढ़कर सात हो गई हैं.
फर्जी वोटर्स से बचने के लिए बनाई गई थी स्याही
पहले चुनाव में सबसे बड़ी मुश्किल फर्जी वोटर्स से निपटने की थी. इसको लेकर भारतीय वैज्ञानिकों ने ऐसी स्याही बनाई थी जो मतदाता की उंगली पर एक बार अगर लगा दी जाती तो पूरे हफ्ते नहीं मिटती थी. इसी स्याही का इस्तेमाल आज भी किया जा रहा है. तो वहीं पहले चुनाव में मतदान के लिए लोहे की करीब 2.12 करोड़ मतपेटियां बनाई गई थीं और करीब 62 करोड़ मतपत्र छापे गए थे. चुनाव करवाने के लिए करीब 56,000 पीठासीन अधिकारी नियुक्त किए गए थे. इनकी मदद के लिए 2.28 लाख सहायकों और 2.24 लाख पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था. इन सभी की व्यवस्था करना चुनाव आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती थी.
-भारत एक्सप्रेस