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मकर संक्रांति का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है. इस दिन सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जिससे खरमास का अंत होता है और वसंत ऋतु के आगमन की शुरुआत होती है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य को सभी ग्रहों का राजा माना गया है, इसलिए उनका गोचर बेहद खास माना जाता है.
भीष्म पितामह और मकर संक्रांति
मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व महाभारत काल से जुड़ा है. कहा जाता है कि भीष्म पितामह, जिन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, उन्होंने अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी.
महाभारत के 18 दिन के युद्ध में भीष्म पितामह ने 10 दिन तक कौरवों की ओर से युद्ध किया. उनकी वीरता और युद्ध कौशल से पांडव चिंतित थे. अंततः शिखंडी की मदद से अर्जुन ने भीष्म पितामह को धनुष छोड़ने पर मजबूर कर दिया और उनके शरीर पर कई बाण चलाकर उन्हें घायल कर दिया.
भीष्म पितामह धरती पर बाणों की शैय्या पर लेट गए. हस्तिनापुर की सुरक्षा सुनिश्चित होने के बाद ही उन्होंने अपने प्राण त्यागने का निश्चय किया. इसके अलावा उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की, क्योंकि इस दिन प्राण त्यागने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
मकर संक्रांति 2025 का शुभ मुहूर्त
इस वर्ष मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी 2025 को मनाया जाएगा. उदयातिथि के अनुसार, सूर्य देव सुबह 8 बजकर 41 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे.
हिंदू पंचांग के अनुसार, मकर संक्रांति का पुण्य काल सुबह 9 बजकर 03 मिनट से शाम 5 बजकर 46 मिनट तक रहेगा.
महापुण्य काल सुबह 9 बजकर 03 मिनट से 10 बजकर 48 मिनट तक होगा.
पर्व का महत्व
मकर संक्रांति को उत्तरायण की शुरुआत माना जाता है. इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है. लोग पवित्र नदियों में स्नान कर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इसके साथ ही तिल और गुड़ का दान करना शुभ माना जाता है.
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-भारत एक्सप्रेस
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