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Christmas Tree: क्रिसमस का त्यौहार आ चुका है. यह एक ऐसा त्यौहार है जिसे सिर्फ ईसाई धर्म के लोग ही नहीं बल्कि हर धर्म के लोग काफी धूम-धाम के साथ मानते हैं. क्रिसमस किसी विशेष देश ही नहीं बल्कि विश्व के लगभग हर देश में मनाया जाता है. क्रिसमस की तैयारी लगभग पुरी हो चुकी हैं.
इस विशेष मौके पर क्रिसमस ट्री को डेकोरेट करना बेहद खास काम माना जाता है. इस दिन क्रिसमस ट्री को लाइट्स आदि कई चीजों से डेकोरेट किया जाता है और इस ट्री के आसपास लोग क्रिसमस सेलिब्रेट करते है. लेकिन अगर आपसे यह सवाल करें कि क्रिसमस डे के दिन आखिर क्यों इसी ट्री का उपयोग किया जाता है और इस ट्री का क्या महत्व है तो फिर आपका जवाब क्या हो सकता है?. शायद इस सवाल का जवाब आपके पास नहीं हो, तो आइए आज हम आपको इस के इतिहास के बारे में बतातें है.
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क्रिसमस ट्री का इतिहास काफी ही दिलचस्प है. क्रिसमस ट्री का इतिहास ईसाई धर्म से भी प्राचीन है. ऐसा कहा जाता है कि ईसाई धर्म से पहले, साल भर हरा-भरा रहने वाले पेड़ को लोग अपने घरों में लगाते थे. इसके बाद घर पर लगाने वाले इस पेड़ की डालियों को सजाया जाता था. उनका मानना था कि ऐसे करने से लोगो का दुःख दूर होता है और उनके ऊपर जादू-टोना का कोई असर नहीं पड़ता है.
क्रिसमस ट्री से जुड़ी एक और कहानी है. ऐसा कहा जाता है कि जर्मनी में एक बच्चे को एक विशाल पेड़ के नीचे कुर्बानी दिया जाने वाला था. जब स्थानीय लोगों को पता चला तो उस विशाल पेड़ को काट दिया गया और उस स्थान पर क्रिसमस को ट्री लगा दिया गया. क्रिसमस ट्री लगाने के बाद स्थानीय लोगों उस पेड़ और स्थल को पूजा करने लगे.
जी हां, क्रिसमस ट्री को जर्मनी देश से जोड़ा जाता है और कहा जाता है कि क्रिसमस ट्री की परंपरा शुरू करने वाला देश जर्मनी ही है. ऐसी मान्यता है कि एक दिन पेड़ को बर्फ से ढके देखा गया और जब सूरज की रोशनी उस पेड़ पर पड़ी तो वह दूर से चमकने लगा. पेड़ की डालियां भी दूर से रोशनी में चमक रही थी.
इस घटना के बाद कुछ लोगों ने जीसस क्राइस्ट के जन्मदिन पर उनके सामने ट्री को लगाया और लाइट्स आदि चीजों से सजाकर प्रार्थना करने लगे. जिसके बाद से सभी लोग इस प्रक्रिया को करने लगे और देश के अन्य हिस्सों में भी यह प्रथा प्रचलित हो गई.
–भारत एक्सप्रेस
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