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Sara Khadem: ईरान में महिला खिलाड़ियों को पहनना पड़ेगा हिजाब, शतरंज की दुनिया में छाई इस मुस्लिम एथलीट को नहीं था मंजूर, स्पेन ने दी अपने यहां की नागरिकता

Sara Khadem chess player: कट्टर कानून-कायदे वाले इस्‍लामिक मुल्‍क ईरान की नामचीन महिला खिलाड़ी को अपना देश छोड़ना पड़ गया. ईरानी महिला शतरंज खिलाड़ी सारा खादेम (Sara Khadem) के नाम से मशहूर सारा सादत खादेमलशरीह को हिजाब न पहनने पर कट्टरपंथियों द्वारा धमकी दी जा रही थीं. जिसके बाद वो स्‍पेन चली गई थीं. अब स्‍पेनिश सरकार ने उन्‍हें अपने यहां की नागरिकता दे दी है.

सारा खादेम ने स्पेन जाने के बाद एल पेस न्यूज पेपर को इंटरव्यू में कहा था कि मैं पर्दे में नहीं रह सकती हूं. मुझे पर्दे में रहना अच्छा महसूस नहीं कराता है, इसलिए मैंने हिजाब न पहनने की फैसला किया है. उसके इस इंटरव्यू से इस्‍लाम मजहब के बहुत-से लोग आग-बबूला हो गए. दअरसल, सारा सादत खादेमलशरीह ने दिसंबर के अंत में कजाकिस्तान में एक कंपटीशन में बिना हिजाब के हिस्सा लिया था. इस पर ईरान में सारा का खूब विरोध हुआ. उसके घर पर प्रदर्शन हुए और उसके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट भी जारी किया गया था.

ईरानी सरकार को कोस रहे महिला संगठन
बहरहाल, सारा खादेम को स्पेनिश नागरिकता मिल गई है, अब दुनियाभर के महिला संगठन ईरानी सरकार को कोस रहे हैं, जहां पर महिलाओं को जबरन हिजाब-बुर्के में रखा जाता है. एक रिटायर्ड शतरंज रेफरी शोहरेह बयारत ने कहा कि ईरान विदेश में प्रतिस्पर्धा करने वाली महिलाओं पर हिजाब पहनने का दबाव बनाने के लिए बुरी रणनीति का इस्तेमाल करता है. पहले वहां कट्टरपंथी हिजाब न पहनने वाली औरत की निंदा करते हैं. फिर साइबर सेना के साथ हमला करते हैं और जानलेवा हमले भी करवा दिए जाते हैं.

इस इस्लामिक मुल्क में हिजाब-बुर्का पहनना अनिवार्य

बता दें कि सारा खादेम ने कजाकिस्तान में आयोजित फिडे वर्ल्ड रैपिड और ब्लिट्ज शतरंज चैंपियनशिप में हेडस्कार्फ के बिना हिस्सा लिया था, वहीं ईरान के सख्त इस्लामिक ड्रेस कोड के तहत हिजाब या बुर्का पहनना अनिवार्य है. ईरान में विरोध होने पर, सारा खादेम जनवरी में स्पेन चली गई थीं. सारा खादेम उन कई एथलीटों में से एक थीं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप के दौरान हिजाब नहीं पहनने का फैसला किया था, जब सितंबर में 22 वर्षीय महसा अमिनी की नैतिक पुलिस हिरासत में मौत के बाद ईरान में विरोध प्रदर्शन चल रहा था. 26 साल की खादेम ने रॉयटर्स को बताया था कि उसे अपने देश के खिलाफ महिलाओं के आंदोलन के समर्थन में किए गए काम पर कोई पछतावा नहीं है.

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‘मैं पर्दे में नहीं रह सकती हूं’
खादेम ने स्पेन जाने के बाद एल पेस न्यूज पेपर को इंटरव्यू दिया था. तब उन्‍होंने कहा था कि मैं पर्दे में नहीं रह सकती. इससे घुटन होती है.

-भारत एक्सप्रेस

Vijay Ram

ऑनलाइन जर्नलिज्म में रचे-रमे हैं. हिंदी न्यूज वेबसाइट्स के क्रिएटिव प्रेजेंटेशन पर फोकस रहा है. 10 साल से लेखन कर रहे. सनातन धर्म के पुराण, महाभारत-रामायण महाकाव्यों (हिंदी संकलन) में दो दशक से अध्ययनरत. सन् 2000 तक के प्रमुख अखबारों को संग्रहित किया. धर्म-अध्यात्म, देश-विदेश, सैन्य-रणनीति, राजनीति और फिल्मी खबरों में रुचि.

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