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दुनिया की इस अनोखी जगह पर डरना नहीं मरना मना है, क्योंकि मरने पर लोगों को हो जाती है सजा, जानें क्यों बना ऐसा नियम

नार्वे का लॉन्ग इयरबेन शहर आर्किट सर्किल में बसा हुआ है. ये जगह बेहद ठंडी रहती है. आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां का न्यूनतम तापमान -46 डिग्री तक चला जाता है और अधिकतम 3-7 डिग्री तक होता है.

Longyearbyen, Norway

Longyearbyen, Norway

Norway City Ban On Death: प्रकृति का नियम तो हम सभी जानते हैं जो इस धरती पर आया है उसे एक ना एक दिन दुनिया छोड़कर तो जाना ही है. लेकिन अगर हम आपसे कहें कि दुनिया में कुछ ऐसी जगह भी हैं जहां लोगों के मरने पर ही बैन लगा हुआ है, तब आप क्या कहेंगे? सुनने में आपको ये जरूर अजीब लग रहा होगा पर ये सच है. इतना ही नहीं दुनिया में कई ऐसे अजीबोगरीब कानून भी बनाए गए है जिसके बारे में लोगों को पता चलता है तो उनके होश उड़ जाते हैं.

ऐसा ही होश उड़ा देने वाला कानून एक शहर का है जहां पर सरकार ने लोगों के मरने पर ही बैन लगा दिया है. बता दें कि यहां पर जिन लोगों की मौत हो जाती है उन्हें इस जगह से हटा दिया जाता है और अगर किसी बीमारी की वजह से इंसान की मौत हो जाती है तो उसे तुरंत शहर से बाहर दूर ले जाकर दफना दिया जाता हैं. ऐसे में आज हम आपको बताएंगे की आखिर कहां है वो जगह जहां पर ऐसे अजीबोगरीब नियम बनाए गए है.

सरकार ने लोगों की मौत पर लगाया बैन

नॉर्वे के उत्तरी ध्रुव में स्थित एक ऐसी अनोखी जगह है जहां पर लोगों के मरने पर बैन लगाया गया है. इस शहर का नाम लांग इयरबेन है. माना जाता है कि यहां पर पूरे साल गजब का ठंडा रहता है. जिसकी वजह से यहां के लोग हर समय आपको स्वेटर पहने दिखाई देंगे. आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां का न्यूनतम तापमान-46 डिग्री तक चला जाता है और अधिकतम 3-7 डिग्री तक होता है. ऐसे में आप अनुमान लगा सकते हैं कि यहां का टेंपरेचर कितना भीषण होता है. यही वजह है कि सरकार ने यहां के तापमान की वजह से ये अजीबोगरीब नियम बनाया है.

1917 हुई थी आखिरी मौत

हैरान की बात तो यह है कि मई महीने से लेकर जुलाई तक यहां सूरज डूबता नहीं दिखता. यहां सूरत लगातार 76 दिनों तक रहता है. इसी वजह से नॉर्वे के इस शहर को मिडनाइट सन के नाम से भी जाना जाता है. यहां कुछ महीने सर्दी इस कदर होती है कि लोगों का खून तक जम जाता है. माना जाता है कि यहां आखिरी मौत 1917 में हुई थी. तब से लेकर अब तक यहां कोई मौत नहीं हुई है. लोगों को लगता है कि इस शहर में यमराज के आने पर भी बैन लग गया है. 1917 में हुई मौत की वजह इन्फ्लूएंजा था. जब लाश को वहीं गाड़ दिया गया था. लेकिन आपको हैरानी होगी कि ये लाश आज तक सड़ नहीं पाई है और इसमें मौजूद बैक्टीरिया भी जिंदा है.

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मरने पर लोगों को हो जाती है सजा

बता दें कि नॉर्वे की सरकार ने ये अजीबोगरीब नियम साल 1950 में बनाया था जिसके तहत इस शहर में कोई भी मर नहीं सकता था, ना ही मरे हुए लोगों को दफन किया जा सकता था. अगर कोई भी इस कानून को तोड़ने की कोशिश करता तो उसे सजा भी दी जाती है. लेकिन अगर किसी वजह से लोगों की मौत हो जाती है तो उन्हें नर्वे शहर से 2000 किमी दूर दफनाने के लिए ले जाना पड़ता था. अब लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर ऐसा नियम क्यों बनाया गया था?

क्यों बना ऐसा नियम?

अब आप सोच रहे होंगे की सरकार ने आखिर क्यों इस अजीबोगरीब नियम को बनाया है तो आपको बता दें कि यहां पर ज्यादा ठंड की वजह से ये इलाका हमेशा बर्फ की मोटी चादर से ढका रहता है. इस वजह से यहां पर जब लाश को दफनाया जाता है तो लाश सड़ती नहीं है. माना जाता है कि सदियों पुराने वायरस और बैक्टीरिया उस इलाके में सुरक्षित रहते हैं. ऐसे में इन वायरस की वजह से वहां के लोगों के लिए खतरा बढ़ सकता है. बस यही कारण है कि सरकार ने लोगों की सुरक्षा को देखते हुए ये नियम बनाया था और लोगों की लाशों को दूर जाकर दफनाने के लिए बोला था.

-भारत एक्सप्रेस 

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