केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को पीएम मोदी ने देश की जरूरत बताया है. उन्होंने कहा है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के पीछे कोई राजनीतिक मकसद नहीं है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि देश में पहली बार लोकसभा के चुनाव हुए थे तो उसके साथ ही अन्य राज्यों में विधानसभा के चुनाव भी हुए थे. आपको बताते हैं कि देश में कब से कब तक एक साथ चुनाव हुए और ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के लागू होने से भारत को क्या फायदा होगा.
भारत की आजादी के चार साल बाद यानि 1951-52 में पहली बार देश में लोकसभा चुनाव हुए. इस दौरान लोकसभा के साथ ही सभी अन्य राज्यों में विधानसभा के चुनाव भी हुए थे, ये प्रक्रिया लगातार चार लोकसभा चुनावों तक जारी रही. 1957, 1962 और 1967 में भी एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराए गए थे. हालांकि, 1967 से 1969 के बीच ये सिलसिला टूट गया और कई विधानसभाओं को भंग करना पड़ा.
साल 1971 में देश में समय से पहले लोकसभा के चुनाव कराए गए. पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा ने पूरे पांच साल का कार्यकाल किया, लेकिन चौथी लोकसभा का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही चुनाव का ऐलान कर दिया गया. इंदिरा गांधी के फैसले की वजह से समय से 15 महीने पहले (1971) में लोकसभा के चुनाव कराए गए. तब से ही देश में एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया खत्म हो गई, हालांकि कुछ राज्यों में अभी भी लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव होते हैं.
साल 2024 आते-आते एक बार फिर देश में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की मांग ने जोर पकड़ लिया है. अगर संसद में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से जुड़ा बिल पास होता है तो देश को कई बड़े लाभ हो सकते हैं. जैसे कि देश को चुनावों पर होने वाले खर्च में कटौती से छुटकारा मिलेगा. इसके अलावा जनता को बार–बार चुनाव की मार को नहीं झेलना पड़ेगा. यही नहीं, आचार संहिता के लागू होने से सरकारी कामकाज भी बाधित नहीं होंगे.
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-भारत एक्सप्रेस
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