दिल्ली हाईकोर्ट.
दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली छावनी में राजपूताना राइफल्स रेजिमेंटल सेंटर में भारतीय सेना के जवानों और आम जनता के लिए फुटओवर ब्रिज के निर्माण के लिए निर्देश मांगने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और जस्टिस तुषार राव गडेला की खंडपीठ ने याचिका का निपटारा करते हुए संबंधित अधिकारियों को फुटओवर ब्रिज की आवश्यकता का आकलन करने का निर्देश दिया है.
पीठ ने कहा कि न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है हम इस बात से सहमत नहीं हैं कि अधिकारियों को कोई विशेष निर्देश जारी किए जाने चाहिए.
प्रोटोकॉल के कारण सेना निर्माण नहीं कर सकती
एनजीओ सेंटर फॉर यूथ कल्चर लॉ एंड एनवायरनमेंट ने याचिका में न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करते हुए आरोप लगाया कि प्रतिवादी अधिकारी जन कल्याण परियोजना में देरी कर रहे हैं, जिसे विशेषज्ञों के आकलन के आधार पर आवश्यक माना गया है. याचिका में तर्क दिया गया है कि सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक चुनौतियों के साथ-साथ सेना के प्रोटोकॉल के कारण भारतीय सेना के सैनिक स्वयं फुट-ओवर ब्रिज का निर्माण करने में असमर्थ हैं, क्योंकि भूमि प्रतिवादियों के स्वामित्व में है.
2010 से मुद्दे को नजरअंदाज किया
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि ब्रिज के निर्माण के लिए जिम्मेदार वैधानिक निकायों ने 2010 से इस मुद्दे को नजरअंदाज किया है, कानून के शासन या अदालत की अवमानना के लिए कोई सम्मान नहीं दिखाया है. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यदि प्रतिवादियों ने अपने स्वयं के उद्देश्यों के लिए परियोजना में देरी नहीं की होती, तो एफओबी पहले ही बन चुका होता. उन्होंने चिंता व्यक्त की कि यदि मामले की और उपेक्षा की जाती है, तो सैनिक, उनके परिवार और जनता अमानवीय परिस्थितियों से पीड़ित होते रहेंगे.
उन्होंने कहा कि इस तरह की एक साधारण बुनियादी ढांचा परियोजना में देरी से प्रभावित लोगों के लिए अनावश्यक अपमान और कठिनाई हुई है.
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-भारत एक्सप्रेस
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