प्रतीकात्मक फोटो.
साल 1994 में सेना के एक अधिकारी के परिवार के तीन सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. हत्या के लिए जिम्मेदार दोषियाों को साल 2000 में मौत की सजा सुनाई गई थी, जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया. मामले में 8 मई, 2012 को भारत के राष्ट्रपति ने दोषी की दया याचिका स्वीकार कर ली और मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया, जब तक कि वह 60 वर्ष का न हो जाए.
अब घटना के 30 सालों बाद सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (8 जनवरी) को ओम प्रकाश उर्फ इजराइल को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया क्योंकि नवंबर 1994 में अपराध करने के समय आरोपी नाबालिग (14 वर्ष का) था.
जस्टिस एम एम सुंदरेश और अरविंद कुमार की पीठ ने मामले पर कहा,
यह ऐसा मामला है जिसमें न्यायिक मशीनरी द्वारा दोषी के किशोर होने की दलील के मामले में संवैधानिक जनादेश को पहचानने और उस पर कार्रवाई करने में लगातार विफलता के कारण गंभीर अन्याय हुआ है.
कोर्ट द्वारा हर स्तर पर अन्याय किया गया
रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने बताया कि ओम प्रकाश ने ट्रायल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट तक ट्रायल के दौरान बार-बार किशोर होने की दलील दी थी, लेकिन दस्तावेजों को नजरअंदाज करके कोर्ट द्वारा हर स्तर पर अन्याय किया गया है. पीड़ित ने अनपढ़ होने के बावजूद, इस दलील को ट्रायल कोर्ट से लेकर इस कोर्ट के सामने क्यूरेटिव याचिका के निष्कर्ष तक किसी न किसी तरह उठाया.
जस्टिस सुंदरेश ने जोर दिया कि “जब किशोर होने की दलील उठाई गई थी, तो इसे प्रासंगिक समय पर मौजूदा कानूनों के तहत निपटाया जाना चाहिए था, खासकर जब अपीलकर्ता की उम्र के बारे में मौन और स्पष्ट स्वीकृति मौजूद थी.”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
“यह एक ऐसा मामला है जहां अपीलकर्ता अदालतों द्वारा की गई गलतियों के कारण पीड़ित है. हमें सूचित किया गया है कि जेल में उसका व्यवहार सामान्य है, कोई प्रतिकूल रिपोर्ट नहीं है. उसने समाज में फिर से घुलने-मिलने का अवसर खो दिया. उसने जो समय खोया है, वह उसकी अपनी किसी गलती के बिना कभी वापस नहीं आ सकता.
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-भारत एक्सप्रेस
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