Bharat Express

Uttarayan 2023: उत्तरायण के दिन मकर संक्रांति का पर्व, खुलते हैं स्वर्ग के दरवाजे, भीष्म से इस दिन का खास नाता

Uttarayan 2023: मकर संक्रांति के दिन ही सूर्य उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करते हैं और इस तारीख से ही दिन बड़ा होने लगता है.

Makar-sankranti

मकर संक्रांति 2024 (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Uttarayan 2023: सूर्य के उत्तरायण होने पर ही मकर संक्रांति का पावन पर्व मनाया जाता है. उत्तरायण का अर्थ होता है उत्तरी भाग. पूरे साल के दौरान सूर्यउत्तरी गोलार्ध और दक्षिणी गोलार्ध में भ्रमण करते हें. यही दिन और रात की अवधि के बड़े और छोटे होने की वजह भी है.

जब सूर्य दक्षिण से उत्तर की ओर आते हैं तो पृथवी पर उत्तरी गोलार्ध में दिन बड़ा और रात छोटी होने लगती है. ऐसे में मकर संक्रांति के दिन ही सूर्य उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करते हैं और इस तारीख से ही दिन बड़ा होने लगता है.

ज्योतिष के अनुसार देखा जाए तो सूर्य जब तक मकर राशि से मिथुन राशि तक संचार करते हैं तब तक वह उत्तरी गोलार्ध में होते हैं और जब सूर्य कर्क से धनु राशि तक होते हैं तब वह दक्षिणी गोलार्ध में होते हैं.

देवलोक में उत्तरायण पर खुल जाते हैं स्वर्ग के दरवाजे

मान्यता है कि सूर्य के उत्तरायण में होते ही देवलोक में दिन का आरंभ हो जाता है. धार्मिक मान्यता है कि उत्तरायण होने पर स्वर्ग के दरवाजे खुल जाते हैं. इस लोक से देह त्यागने के बाद स्वर्ग पहुंचे जीवों को इसी समय प्रवेश मिलता है. वहीं मान्यता है कि कृष्ण पक्ष में मृत्यु को प्राप्त हुए प्राणियों को फिर से अपने कर्मों का फल भोगने के लिए पृथ्वी पर आना होता है.

महाभारत में उत्तरायण का जिक्र

उत्तरायण को लेकर महाभारत काल की एक घटना का जिक्र मिलता है. तीरों से की शैय्या पर लेटे भीष्म के बारे में कहा जाता था कि मृत्यु उनकी इच्छा के अधीन थी. लेकिन उन्होंने देह त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया.

मकर संक्रांति पर जब सूर्य उत्तरायण हुए तब भीष्म ने श्रीकृष्ण को प्रणाम करते हुए मृत्यु का वरण किया. मकर संक्रांति को लेकर मान्यता है कि जो लोग इस दिन शरीर का त्याग करते हैं. उन्हें जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है.

इसे भी पढ़ें: Magh Month 2023: माघ मास में स्नान, दान और प्रभु का ध्यान दिलाएगा जीवन में सफलता

उत्तरायण होने पर मकर संक्रांति

सूर्य के इस राशि परिवर्तन को गुजरात में उत्तरायण के नाम से ही जाना जाता है,.असम में इस पर्व को बिहू और दक्षिण भारत में पोंगल के नाम से तो देश के अन्य हिस्सों में मकर संक्रांति और खिचड़ी और दूसरे कई नामों से जाना जाता है. लेकिन अगर इस दिन को रीति रिवाज और परंपराओं के हिसाब से देखा जाए तो लगभग सभी जगह इस दिन सूर्य देव की पूजा होती है और पूजा और खानपान में तिल, गुड़, चावल का उपयोग किया जाता है.



इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.

Also Read