Railway Station and Railway Junction में क्या होता है अंतर? यहां जानें
आचार्य प्रशांत.
सनातन धर्म वैदिक है, और वेदों का मर्म है वेदांत में। धर्मसम्बन्धी किसी भी बात के मान्य और स्वीकार्य होने के लिए जो श्रुतिप्रमाण आवश्यक है, वो श्रुतिप्रमाण भी व्यावहारिक रूप से वेदांतप्रमाण ही है।
धर्म बिना ग्रंथ के नहीं चल सकता, धर्म बिना ग्रंथ के होगा तो उसमें सिर्फ लोगों की अपनी-अपनी मनमानी चलेगी। मनमानी चलाने को धर्म नहीं कहते।
अब्राहमिक पंथों के पास तो अपने-अपने केंद्रीय ग्रंथ हैं ही। भारतीय धर्मों में भी बौद्धों, जैनों, सिखों के पास भी अपने सशक्त व निर्विवाद रूप से केंद्रीय ग्रंथ हैं। ग्रंथ से ही धर्म को बल, स्थायित्व और आधार मिलता है। क्या हम धम्मपद के बिना बौद्धों की और गुरु ग्रंथ साहिब के बिना सिखों की कल्पना भी कर सकते हैं?
सनातन धर्म आज हज़ार हिस्सों में बटा हुआ है। उसके अनुयायी बहुधा भ्रमित और दिशाहीन हैं। धर्म के शत्रु सनातन धर्म की दुर्बलता का लाभ उठा कर धर्म की अवहेलना और अवमानना करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। धर्म का अर्थ रूढ़ि, मान्यता, और त्योहार बनकर रह गया है।
ऊपर-ऊपर से तो सनातनी सौ करोड़ हैं, लेकिन ध्यान से भीतर देखा जाए तो स्पष्ट ही है कि धर्म के प्राणों का बड़ी तेज़ी से लोप हो रहा है। लोग बस अब नाम के सनातनी हैं। यही स्थिति दस-बीस साल और चल गयी तो धर्म के हश्र की कल्पना भी भयावह है।
हम बिना किसी लाग-लपेट के साफ घोषणा करते हैं: धर्म को बचाने का एक मात्र तरीक़ा है, धर्म के केंद्र में उच्चतम ग्रंथ को प्रतिष्ठित करना। वो उच्चतम ग्रंथ उपनिषद हैं, और सनातनी होने का अर्थ ही होना चाहिए वेदांती होना। जो वेदांत को न पढ़ते हैं, न समझते हैं, वे स्वयं से पूछें कि वे किस धर्म का पालन कर रहे हैं।
ज्ञान की एक पूरी श्रृंखला हैं वेद, और उनके केंद्र में ज्ञान मात्र है। किसी एक व्यक्ति द्वारा लिखी गयी वो किताब नहीं है। किसी एक इंसान या इंसानों के एक समूह, या दल, या समुदाय या सम्प्रदाय का वो प्रतिनिधित्व नहीं करती। किसी एक व्यक्ति का नाम उससे जोड़ा नहीं जा सकता। व्यक्ति आए, चले गए। इतने ऋषि उसमें वर्णित हैं, उनमें से कोई ऋषि हो न हो – एक ऋषि, सहस्त्रों ऋषि – वेदों का किसी व्यक्ति विशेष से कोई संबंध नहीं। तो ज्ञान की एक पूरी परंपरा है, ज्ञान की पूजा करते हैं। इसीलिए एक बड़े लंबे, विस्तृत कालखंड में पसरे हुए हैं वेद। एक दिन या दस दिन या सौ वर्षों में भी नहीं लिख दिए गए थे वेद। उनकी हज़ारों वर्षों की यात्रा है और चूँकि उनका संबंध ज्ञान से, बोध से है, व्यक्तियों से नहीं, इसीलिए उनको अपौरुषेय भी कहते हैं। कि किसी मनुष्य की कृति मत मान लेना इनको। मनुष्य मात्र की या मनुष्य विशेष की भी संपदा मत मान लेना इनको।
तो हम कह रहे थे वेदों की एक पूरी यात्रा है, इस यात्रा में बहुत उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन वो यात्रा है निरंतर ऊर्ध्वगामी ही। वो नीचे से चलती है और एकदम ऊपर तक जाती है, ज्ञान का काम ही यही है।
उपनिषदों तक आते-आते ऋषि प्रकृति के प्रति बिल्कुल उदासीन हो जाते हैं, बल्कि यहाँ तक कह देते हैं कि, “सत्य तो प्रकृति से परे है!”
उपनिषद् हैं पूरे तरीके से वेदों के ही अंदर। वास्तव में वैदिक प्रक्रिया ही विकास लेकर के अन्ततः उपनिषदों तक पहुँचती है। और जहाँ तक मानव के अंतर्जगत की बात है, उपनिषदों के आगे की बात आज तक न सोची गयी है, न कही गयी है।
पूरे विश्व में विचार ने जहाँ कहीं भी ऊँचाइयाँ छुई हैं, उसको उपनिषदों ने किसी-न-किसी तरीके से प्रभावित किया है और भारत में तो स्पष्ट ही है कि जो भी धार्मिक सौंदर्य हम पाते हैं, उसके पीछे उपनिषदों का ही आशीर्वाद है। चाहे फिर वो बौद्ध धारा हो या भक्ति की मिठास, हैं सब उपनिषदों से ही प्रणीत। तो ये हैं उपनिषद्। इसलिए मैं बार-बार वेदान्त के महत्व की बात करता हूँ। वेदान्त में जो तीन इकाईयाँ सम्मिलित मानी जाती हैं, प्रस्थानत्रयी के नाम से उन्हें संबोधित करते हैं।
वो हैं ब्रह्मसूत्र, माने वेदान्त सूत्र, उपनिषद् और भगवद्गीता।
आचार्य प्रशांत ने कहा कि “प्रतिवर्ष 1 अक्टूबर को ‘वेदांत दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। यह वैसे भी विचित्र भूल थी कि हर छोटी-मोटी चीज़ के उत्सव के लिए साल का एक दिन निश्चित किया गया लेकिन उच्चतम, अपौरुषेय वेदांत की याद और उत्सव के लिए कोई दिन ही नहीं!
हम प्रस्ताव करते हैं कि आज के दिन आप उपनिषदों के सुप्रसिद्ध शांतिपाठ:
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
के अर्थ पर ध्यानपूर्वक मनन करें व श्लोक को कंठस्थ भी कर लें। प्रण करें कि अगले एक वर्ष में आप कम से कम चार उपनिषदों को मूल अर्थ सहित ग्रहण करेंगे।
आपका काम आसान बनाने के लिए हमने ‘घर घर उपनिषद’ नाम का प्रखर अभियान प्रारम्भ किया है। हमारा प्रण है 20 करोड़ घरों तक व्याख्या समेत उपनिषद को पहुँचाना।
अपनी आँखों के सामने धर्म का निरंतर क्षय और अपमान सहने की बात नहीं। सनातन धर्म जिस उच्चतम स्थान का अधिकारी है उसे वहाँ बैठाना ही होगा। हमारे सामने ही अगर समाज और देश से धर्म का लोप हो गया तो हम स्वयं को कैसे क्षमा करेंगे?
इस मुहिम का आरंभ भले ही एक व्यक्ति या एक संस्था द्वारा हो रहा हो पर वास्तव में यह अभियान मानवता को बचाने का अभियान है। सच तो यह है कि संपूर्ण विश्व में जहाँ कहीं भी जो कुछ भी उत्कृष्ट और जीवनदायक है उसके मूल में कहीं न कहीं वेदांत ही है। वेदांत की पुनर्प्रतिष्ठा जीवन की पुनर्प्रतिष्ठा होगी।”
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