प्रतीकात्मक तस्वीर
अक्सर यह देखा जाता है कि तनाव के कारण छात्र हों, युवा हों या कोई समझदार व्यक्ति, ऐसा क़दम उठा लेते हैं जिसके कारण उन्हें और उनके परिवार को काफ़ी पछताना पड़ता है। तनाव ग्रस्त इंसान ग़लत संगत में पड़ जाता है और ग़लत राह पर चलने लग जाता है, जैसे नशा और जुआ आदि की लत लगना। मानसिक तनाव के कारण कभी-कभी कठोर कदम उठाते हुए वो व्यक्ति आत्महत्या तक कर डालता है। आए दिन हमें ऐसी खबरें मिलती हैं जहां परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्र प्रतिस्पर्धा की दौड़ में ऐसे कदम उठाते हैं। जिन छात्रों को उनके परिवार से यदि सही संस्कार मिलते हैं वो कभी भी ऐसा कदम नहीं उठाते। वो समस्या का सामना करते हैं और उसके निदान का मार्ग खोज लेते हैं।
राजस्थान के शहर कोटा को ‘कोटा फैक्ट्री’ के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पर देश भर के छात्र ख़ुद को आईआईटी व मेडिकल में भर्ती कराने की मंशा से विभिन्न कोचिंग केंद्रों में दाख़िला लेते हैं। यह कोचिंग परीक्षाओं में छात्रों को उत्तीर्ण कराने के लिए प्रशिक्षण देते हैं। जिस भी कोचिंग सेंटर के छात्रों का नतीजा सबसे अच्छा होता है उस कोचिंग सेंटर की फ़ीस भी उसी अनुसार होती है। छात्रों को सबसे अच्छे कोचिंग केंद्र में भर्ती दिलाने के लिए उनके माँ बाप अपनी क्षमता अनुसार हर वो कोशिश करते हैं जो उन्हें अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाने में सहायक हो। परंतु अहम बात है कि क्या आजकल माँ-बाप या स्कूल बच्चों को सही संस्कार दे रहे हैं? ये वो संस्कार हैं जो शास्त्रों पर आधारित हैं। इन्हीं संस्कारों की नींव पर हमारे बच्चों का भविष्य खड़ा होता है। यदि नींव मज़बूत हो तो बड़े से बड़े तूफ़ान का भी सामना किया जा सकता है।
वृंदावन के सुप्रसिद्ध रसिक संत श्री हित प्रेमानंद स्वामी का एक वीडियो आजकल काफ़ी वायरल हो रहा है। इस वीडियो में स्वामी जी से एक टीवी पत्रकार ने पूछा कि कोटा में छात्रों द्वारा हो रही आत्महत्याओं को कैसे रोका जा सकता है? तो स्वामी जी का कहना था कि, “यदि हम अध्यात्म को नहीं समझेंगे और न ही समझाएँगे तो चाहे किसी भी पद पर पहुँच जाओ आपका पतन होना निश्चित ही है।” अध्यात्म का अर्थ समझाते हुए स्वामी जी कहते हैं कि, “धर्म के मार्ग पर चलना व कर्तव्य का बोध होना ज़रूरी है। बिना आध्यात्मिक ज्ञान के लौकिक उन्नति के प्रयास में उत्साह आना असंभव है। जब तक माता-पिता अपने बच्चों को आध्यात्मिक ज्ञान नहीं देंगे तब तक बच्चों में कठिन परिस्थितियों का सामना करने का साहस नहीं आएगा। बुरी संगत में पड़ते ही बच्चों का ख़ान-पान भी बिगड़ जाता है। जिससे उनकी स्मरण शक्ति पर असर पड़ता है। इसका नतीजा ये होता है कि बच्चे परीक्षा में सही से प्रदर्शन नहीं कर पाते और प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाते हैं। इन सबके ऊपर इस बात का दबाव भी होता है कि माता-पिता उन पर इतना पैसा ख़र्च कर रहे हैं और वो उसे व्यर्थ कर रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में वो अज्ञानतावश ग़लत कदम उठा लेते हैं।”
स्वामी जी कहते हैं कि, “यदि माता-पिता में अध्यात्म का ज्ञान हो तो वो अपने बच्चों को उत्साहित करेंगे। वो बच्चों पर दबाव नहीं डालेंगे। वो बच्चों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करेंगे कि यदि किसी कारण से उनके बच्चे परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाए तो वो घबराएँ नहीं। यदि उन्हें कोई उच्च सरकारी पद नहीं मिल पाया तो कोई बात नहीं। वो जिस भी श्रेणी में आए हैं उन्हें उसी के अनुसार कुछ न कुछ पद तो मिल ही जाएगा। यदि कुछ भी नहीं मिला तो वे अपने बच्चों को किसी न किसी रोज़गार पर लगा ही देंगे। ऐसा करने से बच्चों को यह पता रहेगा कि चाहे कुछ भी हो जाए उन्हें माता-पिता का सहारा है। ऐसे में वो कभी भी ग़लत कदम नहीं उठाएँगे। यदि हमें आत्महत्या जैसी घटनाओं को रोकना है तो इस बात पर ज़ोर देना होगा कि असफल होने से हतोत्साहित नहीं होना चाहिए। निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। यह बात केवल छात्रों पर लागू नहीं होती, किसान, व्यापारी या कोई भी अन्य जो असफल होने पर हतोत्साहित होते हैं, उन्हें सबसे पहले अपने परिवार में इस बात की चर्चा करनी चाहिए और समस्या का हल निकालना चाहिए। यदि हमारे अंदर आध्यात्मिक ज्ञान है तो कोई भी ग़लत कदम उठाने से पहले हम हमेशा ठंडे दिमाग़ से अपने परिवार में चर्चा करेंगे। चर्चा करने से कोई न कोई हल अवश्य निकलेगा।
आज के युग में हर स्कूल में, हर अध्यापक को, छात्रों से भले कुछ ही क्षण के लिए ही सही, आध्यात्मिक चर्चा अवश्य करनी चाहिए। ऐसी चर्चा से छात्रों के मन में उत्साह बढ़ेगा। वो चाहे किसी भी धर्म का क्यों न हो ऐसी चर्चा से वे कठिन परिस्थितियों का सामना करने का साहस मिलेगा। ऐसा ही कुछ हर उस क्षेत्र में होना चाहिये जहां प्रतिस्पर्धा की दौड़ में लोगों पर दबाव है और वो तनाव का कारण बना हुआ है। फिर वो चाहे सरकारी नौकरी हो, पुलिस या फ़ौज हो, बड़े कॉर्पोरेट संस्थान हों या कोई अन्य क्षेत्र हों। तनाव मुक्ति के लिए आध्यात्मिक चर्चा का मार्ग ही सबसे कामयाब रास्ता है। इसलिए हम चाहे किसी भी धर्म को क्यों न मानें हमें दिन में कुछ क्षण निकाल कर आध्यात्मिक चिंतन अवश्य करना चाहिए, चाहे किसी भी माध्यम से ही क्यों न हो। आध्यात्मिक संस्कारों और चिंतन से ही हम बड़े से बड़े तनावों से मुक्ति पा सकेंगे।
*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं
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